बच्चों के लिए कितना खतरनाक है कोरोना का वायरस?
कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया में अब तक 44 लाख से भी ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं. मौतों का आंकड़ा 3 लाख तक पहुंचने वाला है.

कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए दुनिया के तमाम देशों ने अपने-अपने यहां लॉकडाउन किया. स्कूल-कॉलेज तक बंद कर दिए गए, दफ्तर बंद हो गए, उद्योग-धंधे ठप कर दिए गए और पब्लिक-प्राइवेट ट्रांसपोर्ट तक को रोक दिया गया, ताकि कोरोना का संक्रमण कम से कम हो सके. इस पूरी कवायद को करते हुए करीब-करीब दो महीने से ज्यादा का वक्त बीत गया है. और अब शायद ही दुनिया का कोई देश है, जो लॉकडाउन में इतनी सख्ती को बर्दाश्त कर सकता है. लिहाजा अब लॉकडाउन में ढील दी जा रही है, फैक्ट्रियां खोली जा रही हैं, पब्लिक ट्रांसपोर्ट कुछ जगह खुल गए हैं और कुछ जगहों पर खोले जाने के लिए नियम-कायदे बन रहे हैं.
इन सबके बीच दुनिया के कुछ देशों में अब स्कूल-कॉलेज भी खुल गए हैं. हालांकि लोग इस बात को लेकर थोड़े से आशंकित हैं कि स्कूल जाने की वजह से बच्चों को कोरोना का संक्रमण हो सकता है. बच्चों के लिए कोराना वायरस कितना खतरनाक है, इसको एक आंकड़े से समझा जा सकता है. चीन, इटली और अमेरिका में अब तक जितने भी कोविड 19 के केस पाए गए हैं, उनमें बच्चों की संख्या 2 फीसदी से भी कम है. और यहां बच्चों से मतलब 18 साल से कम उम्र के बच्चों से है.
अब तक जिन बच्चों में इस कोरोना का संक्रमण पाया गया है, उनमें संक्रमण की तीव्रता ज्यादा उम्र वाले लोगों के मुकाबले कम है. यानि कि बच्चे कोरोना से प्रभावित तो हैं, लेकिन उस खतरनाक स्तर पर नहीं हैं जितना ज्यादा उम्र के लोग हैं. कोरोना की वजह से गंभीर रूप से बीमार हुए बच्चे या फिर कोरोना की वजह से जान गंवाने वाले बच्चों की संख्या भी बेहद ही कम है. हालांकि इस आंकड़े के आधार पर ये बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता है कि बच्चों में कोरोना संक्रमण होने का खतरा औरों के मुकाबले कम है. बच्चों में संक्रमण कम होने की एक वजह ये भी हो सकती है कि इस महामारी की शुरुआत में ही दुनिया भर के स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए थे और बच्चों को उनके घरों में ही रहने के लिए कह दिया गया था.
हालांकि चीन के शेनजेन शहर में हुए एक सर्वे में पाया गया है कि 10 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों में कोरोना संक्रमण का खतरा उतना ही ज्यादा है, जितना एक दूसरे वयस्क को है. वहीं दक्षिण कोरिया, इटली और आइलैंड की रिपोर्ट कहती है कि बच्चों में संक्रमण का खतरा औरों के मुकाबले कम है. अब ये दोनों सर्वे मिले-जुले नतीजे पेश कर रहे हैं, लेकिन आंकड़े ये ज़रूर बता रहे हैं कि इस महामारी में बच्चों पर असर कम पड़ा है.
तो क्या बच्चे का शरीर बीमार होने पर किसी वयस्क की तुलना में अलग तरह से प्रतिक्रिया देता है. इसके लिए बीमारी को समझना होगा. आम तौर पर किसी भी संक्रामक बीमारी का कर्व यू शेप का होता है, जिसकी वजह से कम उम्र के लोगों और ज्यादा उम्र के लोगों में संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है. लेकिन कोविड 19 वायरस का कर्व यू शेप का नहीं है.
छोटे बच्चों यहां तक कि नवजात में भी इसके संक्रमण का खतरा बेहद कम है और अगर किसी को संक्रमण हुआ बी है तो उसका स्तर बहुत कमजोर है. एक थ्योरी ये कहती है कि बच्चों के फेफड़ों में ACE 2 की मात्रा कम होती है, जिसके जरिए कोरोना का वायरस शरीर के अंदर दाखिल होता है. वहीं दूसरी थ्योरी ये कहती है कि बच्चों का इम्यून सिस्टम इस वायरस के खिलाफ बहुत तेज प्रतिक्रिया देता है और इसके असर को खत्म कर देता है.
ये सब थ्योरी हैं और इन पर प्रैक्टिकल चल रहा है. लेकिन कोई भी शख्स अपने बच्चे को लेकर रिस्क नहीं ले सकता है. इसलिए वो बच्चों पर कोरोना के प्रभाव को समझने की भरपूर कोशिश कर रहा है. अब स्कूल खुलने वाले हैं, तो बच्चे घर से बाहर निकलेंगे. छोटे बच्चों को तो ये भी नहीं पता होगा कि सोशल डिस्टेंसिंग होती क्या है. इसलिए अब चुनौती बच्चों से ज्यादा हमारे सामने है कि हम कैसे उन्हें सुरक्षित रख सकते हैं.
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Source: IOCL























