मुलायम से मिलने के बाद नीतीश कुमार ने अखिलेश यादव की जिम्मेदारी भी तय कर दी?
Uttar Pradesh Politics: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुलायम सिंह और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से यह मुलाकात कितना सफल हो पाएगी यह तो समय ही तय करेगा.

Uttar Pradesh Politics: बिहार के सीएम नीतीश कुमार दिल्ली में विपक्ष के कई नेताओं से मुलाकात की है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले विपक्ष को एकजुट करने का जिम्मा इस बार नीतीश कुमार ने लिया है. इसी कड़ी में नीतीश सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव से मिलने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल भी पहुंचे.
दरअसल बिहार में आरजेडी के साथ नई सरकार बनाने के बाद उनकी पार्टी जेडीयू की ओर से नीतीश कुमार को पीएम पद का दावेदार बनाने की बातें कही जा रही हैं. नीतीश कुमार की भी सक्रियता इसके बाद बढ़ गई है.
लेकिन विपक्ष को एकजुट करने की कवायद तभी सफल हो सकती है जब नीतीश को यूपी में समाजवादी पार्टी का साथ मिले. अनुभव के आधार पर नीतीश कुमार भले ही अखिलेश से वरिष्ठ हों लेकिन जनाधार अखिलेश यादव का ज्यादा है.
बता दें कि बिहार में जैसे ही नीतीश के पीएम पद की दावेदारी पर बात उठी तो सपा नेता अखिलेश ने उसी समय कहा था कि प्रधानमंत्री पद का दावेदार तो यूपी से ही होना चाहिए.
लेकिन 6 सितंबर को मुलायम सिंह यादव से मिलने के बाद अखिलेश के साथ नीतीश कुमार अस्पताल से बाहर निकलकर मीडिया के सामने ऐलान करते हैं कि उत्तर प्रदेश में महागठबंधन का नेतृत्व अखिलेश करेंगे. उनके इस बयान के भी कई मायने हैं. क्या नीतीश कुमार ने मुलायम सिंह से मिलकर अखिलेश यादव की भूमिका उत्तर प्रदेश की परिधि में खुद ही तय कर दी है.
नीतीश की दावेदारी पर क्या है सपा का रुख
सपा प्रवक्ता प्रदीप भाटी से जब नीतीश की दावेदारी पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा 'हमारी पार्टी का स्टैंड है कि 2024 से पहले सभी विपक्षी दल बैठकर बात करें और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पर जिस भी नाम पर सहमति बने सभी उसका समर्थन करें.'
भाटी ने कहा, 'आगामी लोकसभा चुनाव में नौजवान, किसान, लोकतंत्र, संविधान और गरीब विरोधी सरकार को उखाड़ फेंकना है. जनता अब धीरे-धीरे जागरुक हो रही है. जिस तरह से बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ है वैसे ही केंद्र में भी बदलाव का समय आ गया है और हम ऐसी हर कोशिश का समर्थन करते हैं'. यानी सपा साथ आने की बात तो कर रही है लेकिन सीधे तौर पर नीतीश के पीएम पद की दावेदारी की बात पर अभी हामी भरती नजर नहीं आ रही है.

बीजेपी का क्या कहना है
वहीं उत्तर प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी नीतीश कुमार और अखिलेश यादव की मुलाकात पर कहते हैं कि, अखिलेश जी का गठबंधन बनाने के मामले में ट्रैक रिकॉर्ड काफी खराब है. यूपी विधानसभा चुनाव में उन्होंने पहले कांग्रेस से गठबंधन किया, लेकिन वो टूट गया. लोकसभा चुनाव में उन्होंने बसपा से गठबंधन किया मगर वो भी टूट गया, इसके बाद सुभासपा, केशव देव मौर्या की पार्टी से गठबंधन किया लेकिन हर बार की तरह गठबंधन की गाठें खुल गईं. उन्होंने कहा, सच्चाई तो ये है कि अखिलेश यादव गठबंधन के लिए फिट नहीं हैं. राकेश त्रिपाठी आगे कहते हैं कि अब वो नीतीश कुमार के साथ मिलकर संभावनाएं तलाश रहे हैं. ये तीसरा मोर्चा बनाने की जो कोशिश की जा रही है उसमें कोई वैचारिक समानता नहीं है और कोई कॉमन मिनिमम प्रोग्राम नहीं है, साथ ही इसका कोई आधार नहीं है, इसलिए इस तरह का कोई भी गंठबंधन केवल कल्पना मात्र बनकर रह जाएगा.
उत्तर प्रदेश का गणित
वहीं उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव 2019 में वोट शेयरिंग की बात की जाए तो बीजेपी को सबसे ज्यादा 49.98 फीसदी वोट के साथ सबसे अधिक मत हासिल हुए थे. जबकि बहुजन समाज पार्टी को 19.43 और समाजवादी पार्टी को 18.11 प्रतिशत वोट मिले. वहीं 2022 विधानसभा की बात करें तो यहां भी बीजेपी ने बाजी मारते हुए 41.3 प्रतिशत वोट हासिल किए. जबकि समाजवादी पार्टी ने पहले से बेहतर प्रदर्शन करते हुए 32.1 फीसदी लोगों का मत हासिल किया. लेकिन बसपा यहां काफी पीछे रह गई, जिसको महज 12.9 फीसदी ही वोट मिले.
वोटरों को साथ लाने की चुनौती
हालांकि आगामी लोकसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य उत्तर प्रदेश को लेकर ये भी देखना होगा कि हाल ही में आजमगढ़ और रामपुर जैसी पारंपरिक सीटों लोकसभा उप चुनाव में हुई हार भी एक फैक्टर के रूप में काम कर सकती है. इसके साथ ही सपा और उसके गठबंधन के साथियों को अपने खोए हुए वोटरों को भी साथ लाने की चुनौती होगी.

बिहार का गणित
अगर बिहार में लोकसभा चुनाव 2019 में वोट शेयरिंग की बात की जाए तो बीजेपी को सबसे ज्यादा 23.58 फीसद वोट हासिल हुए थे, वहीं तब एनडीए का हिस्सा रही जेडीयू को 21.81 फीसदी और राजद को 15.36 फीसदी वोट मिले थे. वहीं 2020 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 19.46, राजद को सबसे जायादा 23.11 और जेडीयू को 15.39 फीसदी वोट हासिल हुए थे. लेकिन अब राजद और जेडीयू के साथ आने से बिहार में कितना बदलाव होगा यह देखने वाली बाद होगी.
तीसरा मोर्चा संभव?
बता दें कि समय-समय पर तीसरे मोर्चा बनाने और उसको एकजुट करने की मांग उठती रही है, लेकिन दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस हमेशा इस मोर्चे को नकारती रही हैं. बीजेपी और कांग्रेस की इसकी अपनी वजहें रही हैं. मगर अब न पहले जैसी स्थिति रही है और न पहली वाली मजबूत कांग्रेस है. ऐसे में केंद्र से लेकर ज्यादातर बड़े राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की जमीन को खिसकाने के लिए कांग्रेस को भी तीसरे मोर्चे में शामिल होना पड़ेगा. यही वजह है कि सीएम नीतीश कुमार ने दिल्ली दौरे पर आने के बाद सबसे पहले कांग्रेस के पू्र्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की और विपक्ष को एकजुट करके मजबूत करने की मांग रखी. सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी की भी इसपर सहमति है, लेकिन समय आने पर इसका खुलासा किया जाएगा.
किससे मिल चुके हैं नीतीश
वहीं इसके बाद नीतीश कुमार ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी.राजा, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल, जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी, इनेलो अध्यक्ष चौधरी ओम प्रकाश चौटाला के बाद समाजवादी पार्टी के संयोजक मुलायम सिंह यादव से मुलाकात कर चुके हैं. वहीं 7 सितंबर को नीतीश कुमार एनसीपी प्रमुख शरद पवार की मुलाकात तय है. जिस जोर-शोर से नीतीश विपक्ष को एकजुट करने में लगे हुए हैं, अगर ऐसा करने में वो सफल हो जाते हैं तो बीजेपी के लिए 2024 का चुनाव मुश्किल हो सकता है.

दरअसल, देश की सभी राजनीतिक पार्टियों की नजरें उत्तर प्रदेश (80) और बिहार (40) पर टिकी हुई हैं क्योंकि यही दो प्रदेश ऐसे हैं जहां से अकेले 120 लोकसभा की सीटें आती हैं. ऐसे में नीतीश और अखिलेश यादव की मुलाकात महत्वपूर्ण हो जाती है. वहीं बिहार में विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल और जेडीयू के गठबंधन के बाद बिहार में ये दोनों पार्टियां बीजेपी पर भारी पड़ सकती हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से सभी समीकरणों को साधने के लिए राज्य की पार्टियों को खुले मन से साथ आना होगा.
Source: IOCL





















