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मैक्रों के दोबारा राष्ट्रपति बनने से आखिर भारत क्यों है इतना खुश ?

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों दोबारा चुनाव जीत गए हैं. राष्ट्रपति पद पर उनका दोबारा चुना जाना सिर्फ फ्रांस के लिए ही नहीं बल्कि समूचे यूरोप के साथ ही भारत-फ्रांस के रिश्तों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है. उनकी प्रतिद्वंद्वी मरीन ली पेन के चुनाव हार जाने से यूरोपीय यूनियन ने तो राहत की सांस ली ही है लेकिन भारत के कूटनीतिक संबंधों के लिहाज से भी ये एक अच्छी खबर है. वैसे तो भारत और फ्रांस के सम्बन्ध पारंपरिक रूप से घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण ही रहे हैं, लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इन रिश्तों में और भी ज्यादा गर्माहट आई है.

यही वजह थी कि चुनाव नतीजे आने के तत्काल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट के जरिये राष्ट्रपति मैक्रों को बधाई देकर भारत की खुशी का इजहार किया. अपने संदेश में प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा, "मेरे मित्र इमैनुएल मैक्रों को फ्रांस के राष्ट्रपति के रूप में फिर से चुने जाने पर बधाई. मैं भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए मिलकर काम करना जारी रखने की आशा करता हूं." दरअसल, फ्रांस रक्षा के क्षेत्र में भारत का तेजी से बड़ा भागीदार बनता जा रहा है. फ्रांस का प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के मामले में भी जो रुख़ है, वह अन्य यूरोपीय देशों या अमेरिका के मुक़ाबले बहुत खुला है.

रक्षा क्षेत्र में भारत ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदे हैं. दोनों देशों के बीच हुए करार के तहत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण करके भारत में छह P-75 स्कॉर्पीन पनडुब्बियां बनाने की परियोजना पर काम भी चल रहा है. इनमें से चार पनडुब्बियां हमारी नौसेना को सौंपी जा चुकी हैं और बाकी दो इस साल बन कर तैयार हो जाएंगी. रक्षा और सुरक्षा सहयोग, अंतरिक्ष सहयोग और असैन्य परमाणु सहयोग के क्षेत्र में दोनों देशों की सामरिक साझेदारी प्रमुख आधार है.

फ्रांस,यूरोपीय यूनियन का सबसे ताकतवर देश है लेकिन उसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर हमेशा भारत का खुलकर साथ दिया है. फ्रांस ने भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता देने की भी हमेशा वकालत की है और संयुक्त राष्ट्र के सुधारों के लिए भारत ने अब तक जो भी दावे किये हैं, फ्रांस ने उसका समर्थन करना जारी रखा है. दुनिया में बढ़ते आतंकवाद को लेकर भी दोनों देशों की नीतियां समान हैं और दोनों ने ही लगातार आतंकवाद की निंदा की है.

यही नहीं, संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन (सीसीआईटी) के मसौदे पर अमल करने के लिए भी दोनों ने मिलकर काम करने का संकल्प लिया है. भारत की विदेश नीति के जानकार मानते हैं कि मैक्रों का दोबारा चुना जाना निश्चित रूप से भारत-फ्रांस संबंधों के लिए अच्छी खबर है. पिछले कुछ वर्षों में फ्रांस, विशेष रूप से हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भारत के लिए एक ठोस रणनीतिक भागीदार बन गया है.

फ्रांस भारत के लिए अत्याधुनिक सैन्य सामग्री का विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता रहा है. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पेरिस अन्य देशों की तुलना में भारत को 'रणनीतिक स्वायत्तता' की नीति के प्रति अधिक संवेदनशील है. मैक्रों के दोबारा चुने जाने से यह सुनिश्चित होगा कि भारत और फ्रांस की रणनीतिक साझेदारी और मजबूत होगी.

वैसे भी फ्रांस की कई कंपनियां रक्षा, आईटीईएस, परामर्श, इंजीनियरिंग सेवाओं, और भारी उद्योग जैसे कई क्षेत्रों में भारत मे व्यवसाय कर रही हैं.मोटे अनुमान के मुताबिक पिछले दो दशकों में फ्रांस ने हमारे यहां 900 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है और वह भारत में सातवां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है.

फ्रांस में राजदूत रह चुके पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल कहते हैं कि "भारत के दृष्टिकोण से यह बहुत ही सकारात्मक है क्योंकि मैक्रों के नेतृत्व में फ्रांस के साथ भारत के संबंधों का बहुत से क्षेत्रों में विस्तार हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी और मैक्रों के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं जो दोनों देशों के बीच रिश्ते के लिए लाभदायक है."

उनके मुताबिक चूंकि फ्रांस ने पाकिस्तान के साथ अपने रक्षा संबंध खत्म कर लिए हैं, इसलिए इससे भी भारत और फ्रांस के संबंधों को उन मुद्दों पर मदद मिलती है जिनमें दोनों देशों के समान हित हैं,मसलन कि अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य को कैसे देखा जाए. एक तरफ जहाँ जर्मनी जैसे देशों के चीन से गहरे आर्थिक सम्बन्ध हैं, वहीं फ्रांस की स्थिति वैसी नहीं है और यही वजह है कि फ्रांस का रुख़ भारत की हिन्द-प्रशांत नीति के संदर्भ में काफ़ी खुला हुआ है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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