एक्सप्लोरर

राजनीतिक मसलों में हस्तक्षेप करना न्यायपालिका के लिए खतरनाक, पाकिस्तान जीता जागता उदाहरण

आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान में चीफ जस्टिस की ताकतों को वहां की शहबाज शरीफ सरकार कम करना चाहती है. इसके लिए संसद में एक बिल पेश किया गया है. इस बिल के अंदर चीफ जस्टिस की ताकतों को कम करने का प्रावधान किया गया है. पीएम शहबाज शरीफ ने कहा कि अगर चीफ जस्टिस की शक्तियों को कम नहीं किया गया तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा.

ये निश्चित तौर पर पाकिस्तानी संसद का गलत मूव है, लेकिन इसके लिए हम केवल वहां की राजनीतिक नेतृत्व को ही पूरी तरह से दोषी नहीं मान सकते हैं. चूंकि इसमें न्यायपालिका का भी उतना ही दोष है. दरअसल, वहां पर जो सुप्रीम कोर्ट है उसे संविधान अनुच्छेद 184 के तहत "मूल अधिकार क्षेत्र" दिया गया है और अनुच्छेद 184 के सब सेक्शन (3) के तहत कोर्ट जो है वह सामाजिक सरोकार या मौलिक अधिकारों के हनन करने पर स्वतः मामलों को संज्ञान में ले सकता थे. यह अब तक मुख्य न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ दिया गया था...तो ये पावर हमारे यहां भी है और अन्य देशों न्यायालयों के पास भी है.

लेकिन इसका सामान्यतः जो उपयोग कोर्ट तब करती है जब उसे लगता है कि सामाजिक स्तर पर किसी के अधिकारों का हनन हो रहा है या फिर सामाजिक सरोकार के मुताबिक यह काम होना चाहिए, तो वह कार्यपालिका को इसके जरिए निर्देशित करती थी कि कार्यपालिका जो कुछ भी उसे ठीक करने के लिए कर सकती है वो करे. जो दिशा-निर्देशिका होती है वो हर संविधान में होता है. अपने देश में भी है और पाकिस्तान में भी है और भी देशों के संविधान में हैं ... स्टेट पर जो उत्तरदायित्व फिक्स किया जाता है जिसके तहत वो मार्जिनलाइज्ड सेक्शन के लिए नीतियां बनाते हैं और इसके जरिये उसकी स्थिति में सुधार लाते हैं....तो सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जो स्वतः संज्ञान लेने वाला मामला है वो सिर्फ और सिर्फ सामाजिक सरोकार से जुड़े हुए मुद्दों के लिए होता न की राजनीतिक मुद्दों में हस्तक्षेप करने के लिए.

पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने वहां पर सुओ मोटो का इस्तेमाल पंजाब में चुनाव कराने के लिए किया. अब समस्या ये है कि वहां पर राजनीति तौर पर उथल-पुथल हुई. इमरान खान को प्रधानमंत्री के पद से हटा दिया गया. वहां पर अब तक जो कानून है वो ये है कि जितने भी प्रांतीय और राष्ट्रीय चुनाव हुए हैं वो सब एक साथ होते हैं जिसके लिए हमारे यहां बात होती रहती है...तो जब इमरान खाने के हाथों से प्रधानमंत्री का पद जा रहा था और उनको लगा कि अब सरकार गिरने वाली है तो उन्होंने सोचा कि जो सरकार आएगी वो इतनी जल्दी राष्ट्रीय चुनाव तो करवाएगी नहीं. इमरान खान ने अपना गणित बिठाते हुए पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा  की सरकार को बर्खास्त कर दिया चूंकि जब इन दो प्रांतों का चुनाव होगा तो स्वाभाविक तौर पर राष्ट्रीय चुनाव भी कराना पड़ेगा.

वहां के कानून के मुताबिक 90 दिनों के अंदर प्रांतीय चुनाव हो जाना चाहिए. लेकिन यह काम हो नहीं रहा था...तो जो पंजाब प्रांत के जो राष्ट्रपति हैं उन्होंने 8 अप्रैल को चुनाव कराए जाने की घोषणा कर दी. इस पर कोर्ट ने संज्ञान ले लिया और मुझे लगता है कि अदालत का ये मूव गलत हो गया और जो भी चीफ जस्टिस थे उनका ये बाई पार्टिशन रोल था...तो ऐसे में न्यायालय का यह दायित्व बनता है कि वह अपना दामन पाक साफ रखे और राजनीतिक मसले में हस्तक्षेप नहीं करे. चूंकि एक बार अगर न्यायपालिका का राजनीतिकरण हो गया और ये होना ही था. मेरा मानना है कि ये न्यायालय का विशुद्ध राजनीतिकरण का ही मामला है. 

ऐसे में न्यायालय के ऊपर से तो जनता का भरोसा उठता ही है और किसी भी देश की पॉलिटिकल लीडरशिप यह चाहती है कि वह न्यायालय को अपने कब्जे में रखे...तो ये न्यायालय और कार्यपालिका के बीच में टकराव चलता रहता है. ये कभी जुडिशियल ओवररीच और आउटरीच का ब्लेम लगाते हैं, न्यायपालिका कहती है कि हम हस्तक्षेप करते हैं क्योंकि पॉलिटिकल लीडरशिप एक्शन नहीं लेती है...और उनका एक्शन नहीं लेना एक वैक्यूम क्रिएट करती है जिसे हम भरने का काम करते हैं...तो ऐसे में न्यायपालिका को बहुत ही फूंक-फूंक कर कदम रखने की जरूरत होती है. वो सोशल और क्लचरल मैटर में जहां तक हो सके हस्तक्षेप करे लेकिन उसे वैसे मुद्दों में दखलंदाजी नहीं करना चाहिए जहां पर राजनीतिकरण होने का ज्यादा स्कोप हो. यहां मुझे लगता है कि पाकिस्तान के न्यायपालिका ने खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार लिया है. उसने पॉलिटिकल लीडरशिप को एक मौका दे दिया कि आप क्यों हस्तक्षेप कर रहे हैं. तो इसलिए पाकिस्तान की मौजूदा शाहबाज शरीफ सरकार ने संसद में बिल लाकर न्यायपालिका के पावर को क्रश करने का काम किया है.

इस बिल के आने से पहले की तरह सिर्फ अकेले चीफ जस्टिस अब निर्णय नहीं ले पाएंगे. उसे अब कलेक्टिव डिसीजन मेकिंग में ट्रांसफॉर्म कर दिया गया है...तो ये एक तरह से प्रशंसनीय भी है. लेकिन मुझे ये भी लगता है कि ये देश और समाज के हित में नहीं है. ये कहीं न कहीं न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर कुठाराघात है. मैं इसको इस संदर्भ में देखता हूं कि न्यायपालिका ने भी गलती की और वहां की पॉलिटिकल लीडरशिप का तो कुछ जवाब ही नहीं है.

वहां पॉलिसी के लिए लड़ाई नहीं होती है, देश की तरक्की के लिए लड़ाई नहीं होती है बल्कि सीट के बंदरबांट और अथॉरिटी में बने रहने के लिए पावर और पॉलिटिक्स का उपयोग बहुत होता है. देखिये, इस तरह के बिल से सरकार का न्यायपालिका में दखलअंदाजी बढ़ जाएगी और फिर वो उसे अपने हिसाब से चलाना शुरू करेगी. न्यायालय के पास जो ये लिवरेज था कि वो सोशल और इकॉनोमिक मुद्दे पर हस्तक्षेप कर सकती थी अब वो अकेले चीफ जस्टिस के लिए कर पाना मुश्किल है. उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि आप सड़क पर जा रहे हैं और बेवजह की जाम की स्थिति है, ट्रैफिक पुलिस अपना काम नहीं कर रही है.

पॉलिटिकल लीडरशिप भी कुछ नहीं देख रही है और परमानेंट एग्जीक्यूटिव भी डिफंक्ट है तो ऐसे में एक रास्ता था कि अगर उधर से कोई जज महोदय गुजरते हों तो वो इस पर स्वतः संज्ञान ले सकते थे लेकिन अब ऐसी अवस्था में उन्हें पहले अब सरकार से निवेदन करना होगा कि इस समस्या के समाधान के लिए कोई कमेटी गठित करें जजों की फिर वो इस मामले को देखेंगे तो कहने का मतलब है कि ये पूरी तरह से ब्यूरोक्रेटाइज हो गया. न्यायपालिका का भी जब ब्यूरोक्रेटाइजेशन हो जाए तो फिर तो देश के अंदर कुछ बचा ही नहीं फिर तो पॉलिटिकल लीडरशिप की मनमानी चलेगी.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

View More

ओपिनियन

Sponsored Links by Taboola
Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

दो प्लेन, एक राष्ट्रपति… दुनिया देखती रह गई, पुतिन की सीक्रेट फ्लाइट का भेद दिल्ली पहुंचकर खुला!
दो प्लेन, एक राष्ट्रपति… दुनिया देखती रह गई, पुतिन की सीक्रेट फ्लाइट का भेद दिल्ली पहुंचकर खुला!
कठुआ: फूल-माला लेकर लड़कीवाले कर रहे थे इंतजार, बारात की कार हुई हादसे का शिकार, दूल्हा समेत 3 की मौत
फूल-माला लेकर लड़कीवाले कर रहे थे इंतजार, बारात की कार हुई हादसे का शिकार, दूल्हा समेत 3 की मौत
US Cuts Work Permit: वर्क परमिट को लेकर ट्रंप का बड़ा फैसला, भारतीयों पर लटकी तलवार, जानें क्या होगा इससे?
वर्क परमिट को लेकर ट्रंप का बड़ा फैसला, भारतीयों पर लटकी तलवार, जानें क्या होगा इससे?
UP AQI: नोएडा-गाजियाबाद नहीं थम रहा जहरीली हवा का कहर, घुट रहा दम, आज भी हालत 'बेहद खराब'
नोएडा-गाजियाबाद नहीं थम रहा जहरीली हवा का कहर, घुट रहा दम, आज भी हालत 'बेहद खराब'
ABP Premium

वीडियोज

सुंदर बच्चियों की 'सीरियल किलर' LADY !  | Sansani | Crime News
India में दिख गया मोदी-पुतिन के 'दोस्ती का दम'...छा गई कार वाली 'केमेस्ट्री'
व्यापार से वॉर तक ये दोस्ती कितनी दमदार ?, देखिए सबसे सटीक विश्लेषण । Punit India Visit
Bharat ki Baat: भारत में दिखा 'दोस्ती का दम', पुतिन का जबरदस्त वेलकम! | Putin India Visit
पुतिन दौरे पर राहुल का 'डिप्लोमेसी बम'...दावे में कितना दम? । Sandeep Chaudhary । Putin India Visit

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
दो प्लेन, एक राष्ट्रपति… दुनिया देखती रह गई, पुतिन की सीक्रेट फ्लाइट का भेद दिल्ली पहुंचकर खुला!
दो प्लेन, एक राष्ट्रपति… दुनिया देखती रह गई, पुतिन की सीक्रेट फ्लाइट का भेद दिल्ली पहुंचकर खुला!
कठुआ: फूल-माला लेकर लड़कीवाले कर रहे थे इंतजार, बारात की कार हुई हादसे का शिकार, दूल्हा समेत 3 की मौत
फूल-माला लेकर लड़कीवाले कर रहे थे इंतजार, बारात की कार हुई हादसे का शिकार, दूल्हा समेत 3 की मौत
US Cuts Work Permit: वर्क परमिट को लेकर ट्रंप का बड़ा फैसला, भारतीयों पर लटकी तलवार, जानें क्या होगा इससे?
वर्क परमिट को लेकर ट्रंप का बड़ा फैसला, भारतीयों पर लटकी तलवार, जानें क्या होगा इससे?
UP AQI: नोएडा-गाजियाबाद नहीं थम रहा जहरीली हवा का कहर, घुट रहा दम, आज भी हालत 'बेहद खराब'
नोएडा-गाजियाबाद नहीं थम रहा जहरीली हवा का कहर, घुट रहा दम, आज भी हालत 'बेहद खराब'
मिचेल स्टॉर्क ने हरभजन सिंह को भी पीछे छोड़ा, बनाया ये खास रिकॉर्ड
मिचेल स्टॉर्क ने हरभजन सिंह को भी पीछे छोड़ा, बनाया ये खास रिकॉर्ड
नंदमुरी बालकृष्ण की 'अखंडा 2' की रिलीज टली, शो से कुछ घंटे पहले प्रीमियर भी हुआ कैंसिल, मेकर्स ने जारी किया बयान
नंदमुरी बालकृष्ण की 'अखंडा 2' की रिलीज टली, शो से कुछ घंटे पहले प्रीमियर भी कैंसिल
भारत डायनेमिक्स लिमिटेड में निकली इन पदों पर भर्ती, ये कैंडिडेट्स कर सकते हैं अप्लाई; इतनी देनी होगी फीस
भारत डायनेमिक्स लिमिटेड में निकली इन पदों पर भर्ती, ये कैंडिडेट्स कर सकते हैं अप्लाई; इतनी देनी होगी फीस
मकान मालिकों की मनमानी पर लगाम, अब इतने महीने से ज्यादा सिक्योरिटी नहीं ले सकेंगे
मकान मालिकों की मनमानी पर लगाम, अब इतने महीने से ज्यादा सिक्योरिटी नहीं ले सकेंगे
Embed widget