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विरोध तो होना ही था... मुसलमानों से जुड़े नीतिगत निर्णय तो दूर, बातें तक करने से बचते थे राजनेता, UCC पर बात कर पीएम ने दिया ये साफ संकेत

यूनिफॉर्म सिविल कोड पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहली बार इस तरह का बड़ा बयान दिया है. इसमें उन्होंने कहा कि जिस तरह परिवार के दो अलग सदस्यों के लिए दो नियम नहीं हो सकते ठीक इसी तरह दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा. केवल पीएम नरेन्द्र मोदी ही नहीं बल्कि आजाद भारत के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री के साथ-साथ बीजेपी के किसी बड़े नेता ने सिर्फ यूनिफॉर्म सिविल कोड ही नहीं बल्कि हिन्दू-मुस्लिम समस्या, मुस्लिम समस्या, देश में तुष्टिकरण की राजनीति से लेकर संपूर्ण भारत में नीति के स्तर पर आजादी के पहले जो कल्पना थी, उसकी बाधाएं क्या थीं, समस्याएं क्या हैं, और कैसे उनका इतने व्यापक तरीके से समाधान होगा, कार्यकर्ताओं के साथ संवाद या कहें कि आम बोलचाल की भाषा में पीएम ने पहली बार इस तरह से बातें रखीं.

मैंने पूरे अपने जीवन में इस तरह के विस्तृत, व्यापक, मुखर और तुली हुई भाषा में इन सब विषयों पर बातें करते हुए किसी से नहीं सुना था. असल में भारत के विभाजन के साथ हमारे देश की मानसिकता ये हो गई थी कि खासकर मुसलमानों से जुड़ी कोई भी बातें हों, जैसे- सामाजिक, मजहबी, सांस्कृतिक पर बोलो ही नहीं. नीतिगत निर्णय की बातें तो काफी दूर की बात थी.

मुसलमानों पर नहीं होती थी चर्चा

इस कारण अगर कोई भी समस्या है, अगर कोई चुनौती है उस समाज की, तो उस पर चुप्पी साध ली जाएगी तो वो समस्या और विकराल होती जाएगी और यही भारत में हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण से ये स्पष्ट कर दिया है कि नरेन्द्र मोदी सरकार की नीति चुप्पी साधे रहने से बाहर आने की तो पहले ही हो गई थी, जो कुछ हमारे देश के पूर्वजों ने और संविधान निर्माताओं ने मुस्लिम समस्याओं के समाधान और भारत के वास्तविक संविधान और कानून के समक्ष समानता का जो विचार किया था, उसको साकार करने का निर्णय कर चुकी है.

प्रधानमंत्री अगर ये बोल रहे हैं कि समान नागरिक संहिता पर मुसलमानों को बरगलाया जा रहा है और वे अगर उसके फायदे गिना रहे हैं तो इसका अर्थ स्पष्ट है कि  अब ये सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड संसद से पारित करवा कर साकार करने जा रही है. ये आज के उनके प्रश्नोत्तर कार्यक्रम से साफ हो गया है. इस पर अब किसी को कोई संदेह नहीं रहना चाहिए.

चुनाव में बनेगा बड़ा मुद्दा

भारत में मुसलमान एक बड़ा मुद्दा रह हैं. वो चाहे उनको वोट बैंक बनाकर रहा हो या फिर आरएसएस-बीजेपी से भयभीत कराने का रहा हो. चुनाव में हमेशा राजनीति के ये मुद्दे रहे हैं. लेकिन एक तरह से मुसलमानों के अंदर जो सामाजिक सुधार की जरूरत थी और उनसे संबंधित कानूनी और संवैधानिक आवश्यकता है, उस दिशा में मुखर होकर पीएम मोदी ने साहस और निर्भीकता से कदम उठाने की बात की. 

तीन तलाक की पीएम मोदी ने चर्चा की. एक साथ तीन तलाक मुसलमानों की ही समस्या रही है, उसका दूसरे समाज से कोई लेना-देना नहीं रहा है. उन्होंने उस पर भी कहा कि कैसे समाज को बरगलाया गया है. ठीक उसी तरह बरगलाया जाएगा. यूसीसी का विरोध तो होना ही था. यूनिफॉर्म सिवि कोड का तो पहले से ही विरोध होता आ रहा है.

जहां तक इसके राजनीतिक मुद्दे की बात है, उसके पहले ये जानना जरूरी है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड केवल आरएसएस, जनसंघ, बीजेपी, हिन्दू महासभा के एजेंडा में ही नहीं था बल्कि भारत के सभी कम्युनिस्ट पार्टियों ने यूनिफॉर्म सिविल कोड की एक स्वर से मांग की थी.

लोहिया भी चाहते थे यूसीसी

समाजवादियों में भी एक धारा रही है, डॉक्टर राम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं का, जिन्होंने यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात की है. लेकिन, वोट बैंक की राजनीति थी. मुसलमानों को ये भय करने के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब आपके मजहब में हस्तक्षेप हो जाएगा, आपके ऊपर हिन्दुओं के कानून लागू कर दिए जाएंगे, इसलिए आपको उन कानून से बचाने के लिए आपके साथ खड़े ताकि वोट मिले, इसके लिए मुसलमानों से झूठ बोलकर लंबे समय तक बरगलाया गया. 

आज कम्युनिस्ट पार्टियां इस मामले पर चुप हो गई हैं. उनका कोई बयान नहीं आ रहा है. समाजवादी विचारधारा से निकलीं पार्टियां जो डॉक्टर राममनोहर लोहिया को अपना आदर्श मानती है, वो चाहे आरजेडी हो, समाजवादी पार्टी हो, जनता दल यू हो, ऐसी सभी पार्टियां यूसीसी के खिलाफ खड़ी हैं.  ये उनके अपने ही एजेंडे के विरुद्ध है. मुसलमानों को तुष्ट करते हुए उनका वोट लेने की रानजीति संबंधी आचरण रहा है. इसलिए इसका विरोध तो होगा ही.

ये तो स्प्ष्ट हो गया था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड आ रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री इतने मुखर तरीके से विपक्ष को इसके लिए निशाना बनाएंगे और इसकी इतने व्यापक व्याख्या करेंगे इसकी उम्मीद नहीं थी. इसलिए विपक्ष का गुस्सा स्वभाविक है. लेकिन साफ हो गया है कि आने वाले विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव में ये मुद्दे लोगों के दिमाग में होगा और इसके आधार पर लोग वोट देने का फैसला करेंगे.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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