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कश्मीर देश का अटूट अंग, जल्द से जल्द हों चुनाव ताकि लोग चुन सकें अपनी पसंदीदा सरकार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार (7 मार्च) को कश्मीर की यात्रा पर थे. उन्होंने वहां 5000 करोड़ रुपए से अधिक की कई सारी योजनाओं का शिलांयास किया, लोकार्पण किया. इनमें सैकड़ों योजनाएं पर्यटन क्षेत्र की हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्रा को एक तबका जहां ऐतिहासिक बता रहा है, वहीं दूसरा तबका ऐसा भी है, जो इस यात्रा का रिस्पांस ठंडा बता रहा है. वह कश्मीर यात्रा पर थे, जम्मू कश्मीर के लोगों को नरेंद्र मोदी पर यकीन था कि उन्होंने जितने भी वादे किए, वो पूरे होंगे.  जो दावे किए थे कि आर्टिकल 370 के हटने के बाद से कश्मीरी पंडितों को वापस से बसाने का काम सरकार द्वारा किया जाएगा.  सारे वादे खोखले साबित हुए.

वापसी कहां हुई कश्मीरी पंडितों की? 

जम्मू में कश्मीरी पंडित अभी भी काफी परेशानी का सामना कर रहे है. भाजपा दावा करती थी कि हम फिर से कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में बसाने का काम करेंगे लेकिन जबसे आर्टिकल 370 हटा तबसे कोई कश्मीरी पंडित वापस नहीं आया है और न ही उनके लिए किसी प्रकार के पैकेज का एलान किया गया. साथ ही इतने सालों में कोई रोजगार भी नहीं मिला. दावा किया  गया था कि 370 हटने के बाद आतंकवाद खत्म होगा. यह तो गुलाम नबी आजाद ने भी कहा है कि पत्थरबाजी भले कम हुई है, लेकिन सेलेक्टिव किलिंग बढ़ी है, लेकिन आतंकवाद अभी भी है. हाल ही में पुंछ और राजौरी में आतंकवादी हमले हुए जहां निहत्थे सैनिकों को मारा गया, वो शहीद हो गए. जब गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे, तब जम्मू प्रोविएंस में 0 प्रतिशत की मिलेंटेंसी थी, लेकिन आज जम्मू में भी मिलेंटेंसी बढ़ चुकी है. 

कश्मीर में अभी भी सेलेक्टिव किलिंग

भाजपा एक दावा करती थी, कि जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए 370 हटाना जरूरी है. गुलाम नबी आजाद के दौर में कश्मीर एशिया का सबसे लार्जेस्ट ट्यूलिप गार्डन बना,  तब आर्टिकल 370  था और जिले बने, मेडिकल कॉलेज बने, रेलवे का प्रोजेक्ट भी उसी समय बना, फोर लेन का प्रोजेक्ट तब शुरू हुआ जब 370 था. डेवलपमेंट करने में 370 कभी अड़चन नहीं था. दावा किया गया था कि आतंकवाद बढ़ने में 370 सबसे बड़ा कारण है, उसमें भी वादे और दावे दोनों झूठे साबित हुए क्योंकि अभी भी आतंकवाद जिंदा है, सेलेक्टिव किलिंग्स हुए, निहत्थे माइग्रेंट लेबर चाहें वो बिहार का हो या झारखंड के हो. अभी हाल ही में एक पंजाब का माइग्रेंट वर्कर मारा गया. सेलेक्टिव किलिंग अभी भी है. गुरुवार को पीएम नरेंद्र मोदी कश्मीर गए थे, तो वहां भी ज्यादातर सरकारी कर्मचारी थे. वहां के लोग यह उम्मीद कर रहे थे कि नरेंद्र मोदी कुछ ऐलान करेंगे, लेकिन फिर से एक बार कश्मीर के लोगों को रुसवा करने का काम किया गया है. 

प्रधानमंत्री तो पूरे देश के 

प्रधानमंत्री सबके प्रधानमंत्री है, अगर कल को ये रैली भाजपा की रैली होती तो यह कहा जाता कि लोग भाजपा के लिए जमा हुए है लेकिन इसमें अधिकतम लोग सरकारी कर्मचारी थे, जिसमें आंगनबाड़ी की महिलाएं, आशवर्कस, डीडीएस थे, सरपंच थे, जो अलग- अलग समुदाय या पार्टी से ताल्लुक रखती थी. इसे भाजपा का पब्लिक रैली नहीं कहा जा सकता, इसमें सभी लोगों को शामिल किया गया था. नरेंद्र मोदी ने भी कोई राजनीति से जुड़ा बयान नहीं दिया, जम्मू या फिर कश्मीर की बात हो इसमें लोगों का शामिल होना निश्चित था. क्योंकि सभी दलों के लोग वहां पर थे. मुजफ्फर बेग की धर्मपत्नी जो कि डीडीसी की चेयरमैन है, उन्होंने कहा कि बीजेपी की रैली नहीं थी. भाजपा रैली करार दे रही है ये उनकी अपनी मर्जी है, लोकतांत्रित देश है कुछ भी कह सकते है, कुछ भी बोल सकते है.

शंकराचार्य की पहाड़ी हो या कोई भी स्थान, उसे कश्मीर के लोगों ने अभी तक प्रोटेक्ट किया है जो एक प्रोपेगेंडा सालों से फैलाया जाता था कि यहां मंदिरों को डिमोलिश किया गया, मंदिरों को तोड़ा गया, यहां कश्मीर के मुसलमान ने सब किया गया, लेकिन ऐतिहासिक तथ्य यह है कि कश्मीरियों ने उनकी रक्षा की. आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता. आतंकवादियों ने धार्मिक, मजहबी उनपर भी अटैक किया था. उस वक्त पाकिस्तान की बैंकिंग थी उनको कुछ दिखता नहीं था. महात्मा गांधी ने अपने स्टेटमेंट में कहा था कि अगर मुझे 1947 में जब देश आजाद हुआ था तो उम्मीद की किरण कश्मीर से नजर आ रही थी. इसलिए कश्मीर के लोग आपसी भाईचारे पर यकीन करते हैं और हिंदू, मुस्लिम, सिख या फिर ईसाई सभी आपस में यहां मोहब्बत से रहते हैं.

कश्मीरियों ने दीं खूब कुर्बानियां

प्रधानमंत्री किसी भी मंदिर में पूजा कर सकते है, वहां प्रार्थना कर सकते हैं. चाहे दूर से या नजदीक जाकर कर सके. उसमें किसी को भी कोई दिक्कत या आपत्ति नहीं होनी चाहिए. जहां सरकार ने अच्छा काम किया है उसकी सराहना भी कि गई है. गुलाम नबी आजाद ने स्टेमेंट दिया कि कश्मीर में जो पत्थरबाजी होती थी उसमें कमी आई है. कहा जाता है कि पहले कश्मीर ऐसा था वैसा था, क्योंकि इतिहास को देखें तो कश्मीर के लोग जिसमें मेन स्ट्रीम पार्टी के 20000 का आंकड़ा सामने है, उसे कोई चैलेंज नहीं कर सकता. 20 हजार लोग देश के लिए कुर्बान हुए है जो कि कश्मीरी मुसलमान हैं. जितने भी पुलिस के जवान कुर्बानी दे रहे हैं वह भी कश्मीर के है. आज सीआरपीएफ और बाकी जितने भी सिक्योरिटी फोर्सज की विंग्स है उसमें कश्मीरी मुसलमान ही देश के लिए कुर्बानी दे रहे है. उसमें यह धारणा बनाना कि कश्मीरी पहले पाकिस्तान के प्रति हमदर्दी रखते थे वो गलत है. क्योंकि पहले भी आतंकवाद का मुकाबला सभी पार्टियां मिल जुलकर करती थी. 

कश्मीरियों ने इस देश के लिए बहुत सी कुर्बानीयां दी है. 1947 में जब कबायली ने हमला किया था उस समय कुछ कश्मीरी मुसलमानों ने उनका सामना किया और देश का साथ दिया. कश्मीर ने हिंदुस्तान की आर्मी का स्वागत किया. ये ऐतिहासिक तथ्य है कश्मीर के लोगों को हमेशा से देश के लिए हमदर्दी रही है. ये कहना कि कश्मीर पाकिस्तान में था या चीन में था, कश्मीर हमेशा से देश का अटूट अंग रहा है. कुछ लोग ते जो प्रोपोगेंडा फैलाते थे उनको हर सरकार में जब गुलाम नवी आजाद थे उस वक्त भी आतंकवाद का मुकाबला किया गया. चुनाव होना चाहिए क्योंकि यहां लोकल लोगों को वही हक मिलना चाहिए, उनको वही राइट मिलना चाहिए, जो बाकी राज्यों या बाकी के देश के राज्यों में लोगों को मिलते हैं. कश्मीर देश का अटूट अंग है तो इसलिए यहां चुनाव होने चाहिए ताकि लोग अपनी पसंद से अपने लोगों को चुने और सरकार अच्छे से चल सके.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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