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क्या ऑस्ट्रेलियाई टीम की आदत में शामिल है ‘बेईमानी’

विश्व क्रिकेट में लंबे समय तक ऑस्ट्रेलिया की टीम का राज रहा है. टेस्ट क्रिकेट से लेकर वनडे क्रिकेट तक ऑस्ट्रेलिया की टीम ने दुनिया के हर कोने में धाक जमाई है. एक वक्त था जब ऑस्ट्रेलिया की टीम के मैदान में उतरने का मतलब होता था- सिर्फ जीत. सवाल ये है कि क्या ऑस्ट्रेलियाई टीम की इस धाक के पीछे वो ‘चालाकियां’ थीं जो केपटाउन टेस्ट में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ देखने को मिली? क्या खेलभावना के खिलाफ जाकर कंगारुओं ने सिर्फ और सिर्फ जीत के मकसद को तवज्जो दी?

विश्व क्रिकेट में लंबे समय तक ऑस्ट्रेलिया की टीम का राज रहा है. टेस्ट क्रिकेट से लेकर वनडे क्रिकेट तक ऑस्ट्रेलिया की टीम ने दुनिया के हर कोने में धाक जमाई है. एक वक्त था जब ऑस्ट्रेलिया की टीम के मैदान में उतरने का मतलब होता था- सिर्फ जीत. सवाल ये है कि क्या ऑस्ट्रेलियाई टीम की इस धाक के पीछे वो ‘चालाकियां’ थीं जो केपटाउन टेस्ट में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ देखने को मिली? क्या खेलभावना के खिलाफ जाकर कंगारुओं ने सिर्फ और सिर्फ जीत के मकसद को तवज्जो दी? क्या ऑस्ट्रेलियाई टीम को हार नहीं पचती? इन सवालों पर चर्चा करने से पहले ये बताना जरूरी है कि दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ चल रही मौजूदा सीरीज में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी कैमरन बेनक्राफ्ट ने गेंद के साथ छेड़छाड़ की.

बाद में पता चला कि इस छेड़छाड़ की जानकारी कप्तान स्टीव स्मिथ को भी थी. वो खुद भी इस रणनीति में शामिल थे. इन चालाकियों के बाद भी ऑस्ट्रेलिया को केपटाउन टेस्ट में बड़ी हार का सामना करना पड़ा. इस हार से हुई शर्मिंदगी से ज्यादा शर्मिंदगी वो ‘बेईमानी’ है जो पकड़ी जा चुकी है. आईसीसी ने मामूली सजा देकर मामले को शांत करने की कोशिश की. क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने जरूर कड़े फैसले लिए हैं लेकिन इस ‘बेईमानी’ की जड़ों में जाना बहुत जरूरी हो गया है. अब तक विश्व क्रिकेट में ऑस्ट्रेलियाई टीम ‘स्लेजिंग’ के कुख्यात थी. केपटाउन टेस्ट मैच के बाद तो टीम की नीयत पर सवाल खड़े हो गए हैं.

छेड़छाड़ के लिए नए खिलाड़ी और कोच की ‘बेईमान’ जुगलबंदी

यूं तो आज के समय में क्रिकेट मैच में मैदान में दो दर्जन से ज्यादा कैमरे लगे होते हैं, बावजूद इसके मैदान के कुछ हिस्से ऐसे होते हैं जहां कैमरे की निगाह कम ही जाती है. इसके अलावा कैमरा ज्यादातर बड़े खिलाड़ियों को ‘फोकस’ करता है, अपेक्षाकृत नए खिलाड़ियों पर भी कैमरे की नजर कम ही रहती है. गेंद के साथ छेड़छाड़ के लिए कैमरन बेनक्राफ्ट को इसीलिए चुना गया जिससे वो कैमरे की नजर से बच सकें.

कंगारुओं का प्लान ‘फुलप्रूफ’ था गलती ये हो गई कि बेनक्राफ्ट कैमरे में कैद हो गए. जैसे ही वो कैमरे की नजर में आए टीम के कोच डेरेन लीमन ने संदेश भेजकर उन्हें बचाने की कोशिश भी की. डेरेन लीमन 90 के दशक के आखिरी पांच साल से लेकर 2004-05 तक खुद खिलाड़ी रहे हैं. ये वो दौर था जब ऑस्ट्रेलिया वर्ल्ड चैंपियन टीम थी. अगर बतौर कोच वो इस तरह की ‘बेईमानी’ का हिस्सा हो सकते हैं तो ये कैसे मान लिया जाए कि बतौर खिलाड़ी वो इससे अछूते रहे होंगे. इस मामले की जांच होनी चाहिए. फिलहाल डेरेन लीमन के खिलाफ किसी भी तरह का ‘ऐक्शन’ नहीं लिया गया है. ‘उस वक्त’ क्यों नहीं लिया गया था स्टीव स्मिथ के खिलाफ ‘ऐक्शन’

बेईमानी कोई एक दिन में नहीं आती, बेईमानी एक आदत है. याद कीजिए स्टीव स्मिथ ने बैंगलोर टेस्ट मैच में क्या किया था. उन्होंने डीआरएस लेने के लिए पवेलियन की तरफ इशारा किया था. भारतीय कप्तान विराट कोहली इस बात पर भड़क गए थे. उन्होंने इस बात की शिकायत की थी. उस वक्त स्टीव स्मिथ ने माफी मांग कर काम चला लिया था. अगर उसी वक्त स्टीव स्मिथ के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई होती तो आज केपटाउन टेस्ट जैसी नौबत नहीं आती.

आज भले ही स्टीव स्मिथ पर आईसीसी ने एक मैच का बैन लगा दिया है. ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बाद उन्हें कप्तानी के पद से हटना पड़ा है. उन पर आजीवन प्रतिबंध भी लग सकता है. लेकिन ये सारे फैसले एक खिलाड़ी के खिलाफ होंगे ना कि एक टीम के खिलाफ. सवाल ये है कि जब एक टीम मिलकर ‘बेईमानी’ की रणनीति बनाती है तो क्यों ना पूरी टीम के खिलाफ कोई कड़ा फैसला लिया जाए? क्यों ना क्रिकेट के उन तमाम मैचों की फुटेज खंगाली जाए जिसमें ऑस्ट्रेलियाई टीम इसी तरह की चालाकियों के दम पर जीती थी. काम मुश्किल जरूर है लेकिन ऑस्ट्रेलियाई टीम को सबक सिखाने के लिए जरूरी है. वरना आज जो काम स्मिथ की कप्तानी में कंगारुओं ने किया है कल किसी और की कप्तानी में करेंगे.

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