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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

रूस में पुतिन वही जो चीन में हैं शी जिनपिंग, विरोध को दबाना फितरत पर भारत-रूस की दोस्ती सदाबहार

रूस के बारे मे जितनी भी खबरें आजकल हैं, वे अंतर्विरोधों से भरी हैं. दो साल से रूस और यूक्रेन का युद्ध चल रहा है, फिर भी रूस की अर्थव्यवस्था ठीक-ठाक है, लेकिन वहां की राजनैतिक स्थिति फिलहाल ठीक नहीं है. एलेक्सी नवेलनी जो कि वहां के विपक्षी नेता माने जाते थे, उनकी मृत्यु हो गई है और उनकी मृत्यु को संदिग्ध माना जा रहा है. उनके बाद पुतिन के विरोध की कमान एलेक्सी की पत्नी ने संभाली है. हालांकि, पुतिन लगातार ताकतवर बनकर ही उभरते रहे हैं. अभी उनके बीमार होने की भी खबर आई. कई बार वह बीमारी रहस्यों में भी घिरी रही, लेकिन पुतिन ही सारी बाधाओं को हटाते हुए रूस के सबसे शक्तिशाली शासक बनकर उभरते रहे हैं.  

व्लादीमिर पुतिन लगभग तानाशाह ही 

पुतिन और रूस का राजनीतिक तंत्र देखें तो यह बिल्कुल सर्वविदित है कि पुतिन का रूस के शासन पर पूरा कब्जा है. ऑटोक्रेसी (अधिनायकवाद) के मामले में या डिक्टेटरशिप (तानाशाही) के मामले में तुलना की जाए तो पाया जाएगा कि जोसेफ स्टालिन ने 29 साल तक मॉस्को पर शासन किया और वह बहुत बड़े तानाशाह थे और 1953 तक उन्होंने शासन किया. उन्होंने सभी बाधाओं को और राजनीतिक विरोध,  प्रतिरोध या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाते हुए यह किया. व्लादिमीर पुतिन पॉलिटिशियन नहीं हैं, एक सोल्जर हैं. वह केजीबी के बड़े अधिकारी और स्पाई चीफ भी रह चुके हैं. किसी भी तरह की मानवता या  दया की पुतिन से उम्मीद करना गलत बात होगी और जिस तरह जोसेफ स्टालिन ने रशिया पर 29 साल तक रूल किया, एक राजा की तरह, डिक्टेटर की तरह. मॉस्को को 2000 से लेकर 2024 तक व्लादिमीर पुतिन ही शासित कर रहे हैं और 24 वर्षों तक वह प्रेसिडेंट और प्राइम मिनिस्टर के विभिन्न पदों पर रहे हैं. अब कॉन्स्टिट्यूशन में यह बदलाव भी लाया गया है कि अगले छह वर्ष तक व्लादिमीर पुतिन ही रूस के प्रेसिडेंट रहेंगे. 

रूस में चुनाव का केवल दिखावा

एक या दो महीने में जो चुनाव हैं, वह पूरी तरीके से एक दिखावे की कसरत होगी, जिसको कम्युनिस्ट पार्टी और जुंटा और ड्यूमा करवाएगी. व्लादिमीर पुतिन बिल्कुल शी जिनपिंग की राह पर हैं और जैसा उन्होंने किया है, जब तक वे ही ताउम्र चीन पर शासन करेंगे, वैसे ही व्लादिमीर पुतिन की भी यही मंशा है, यही इनकी रणनीति है कि जब तक इनकी मृत्यु नहीं होती प्रधानमंत्री के पद पर वही काबिज रहेंगे.  जहां तक नवेलनी की बात है, रूस कम्युनिस्ट तानाशाही के अंतर्गत एक ऐसा देश रहा है जो कि वहां पर कोई भी खुली आवाज, वैकल्पिक आवाज या प्रतिरोध की आवाज, बच नहीं पाती है. नवेलनी ऐसे पहले उदाहरण नहीं है कि उनको उनको बुरी तरीके से परेशान किया गया. नवेलनी ब्रिटेन और अमेरिका में भी रहे है, वहां पर उनको विष देने की भी खबरे हैं. यह एक तरीके की परंपरा है, जो 24 वर्षों से ही नहीं जब से जारशाही खत्म हुई है रूस में, तब से प्रतिरोध की आवाज को दबाने की ये रणनीति वहां के राष्ट्राध्यक्ष अपनाते रहे हैं.

एलेक्सी थे पुतिन के सबसे बड़े विरोधी 

रूस में एलेक्सी नवेलनी का परिवार ही एक तरह से पुतिन का मुख्य विरोधी खेमा है. एलेक्सी नवेलनी की मां को पहले ही अंदेशा था कि उनके बेटे की मृत्यु होने वाली है और 'गार्जियन' ने जिस तरह से रिपोर्ट किया उसके हिसाब से यह कहा गया था कि 'एडवांस डेथ नोटिस' उनकी फैमिली और उनकी मां को दे दिया गया था, उन्हें पहले ही पता चल गया था कि साइबेरिया के जिस जेलखाने में उन्हें कैद गया है, वहां पर शायद उनकी आखिरी सांसें छूट जाएंगी. सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी मृत्यु कैसे हुई, यह अभी भी मीडिया में और सिविल सोसाइटी में स्पष्ट नहीं हुआ है. शुरुआती खबरों की मानें तो उसमें यह पाया जाएगा कि उनके शरीर पर चोट के निशान हैं. हालांकि, वे हल्के घावों के निशान हैं और साथ में छाती पर कार्डिएक अरेस्ट के बाद रिवाइव करने का प्रयास किया गया. चेस्ट पर लगातार पंपिंग की गई, यह दिखता है, लेकिन उनको शारीरित चोट पहुंचाई गयी, उनको चोट दी गयी, ऐसे कई आक्षेप सामने आ रहे हैं.

स्वतंत्रता की राह में नवेलनी 

उनकी मां और फैमिली को पता था कि एलेक्सी नवेलनी एक तरीके से स्वाधीनता और प्रतिरोध की राह में कुर्बान हो गया. जिस तरीके से जूलियस असांजे को दबाया जा रहा है, जिस तरीके से पहले एक प्रतिरोध को अमेरिका ने दबाया. एक तरीके से जब लोग राज्य के खिलाफ जाते हैं तो उनको दबाया जाता है, प्रतिरोध को दबाया जाता है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो व्लादिमीर पुतिन पर चोट भी बहुत बड़ी होने वाली है, क्योंकि उनका परिवार और उनका जीने का अलग अंदाज, राजनीति और डिप्लोमैसी पुतिन के शासन के ऊपर हमला करेंगे. आगे इस बात को देखें तो एक तरीके से दो साल तक जिस तरीके से यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की और पुतिन ने, यूक्रेन और रूस ने एक दूसरे को 'स्टेलमेट' में बांधे रखा है, उसमें भी रूस-यूक्रेन के युद्ध में यूक्रेन के कमजोर हो जाने के बाद हालात बदलेंगे. तीन दिनों पहले यूक्रेन का एक शहर अवदिव्का नाम का है, वहां पर छह महीने से घोर लड़ाई चल रही थी, वहां से ज़ेलेंस्की ने अपने सिपाहियों को हटा लिया है. तो, एक तरीके से एलेक्सी नवेलनी की मृत्यु, विरोध का दबाना और रूसी सेना को सफलता, भले ही थोड़ी सी मिलना,  इन चीजों की वजह से व्लादिमीर पुतिन और ताकतवर बनकर उभरेंगे.

भारत-रूस की दोस्ती सदाबहार 

भारत और रूस का डिप्लोमैटिक और रणनीतिक अलायंस है. यदि इतिहास में देखा जाए तो शुरू से ही पाकिस्तान भारत के खिलाफ सयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव लाता रहा है और भी देश लाते रहे है, साथ में इस्लामिक देश भी प्रस्ताव लाते रहे हैं. उसमें अमेरिका ने हर समय भारत को सपोर्ट नहीं किया. वहीं रूस भारत का सदाबहरा दोस्त रहा है. रूस ने वीटो किया और पाकिस्तान के उन घातक प्रस्तावों को निरस्त करवाया.  1971 में इंदिरा गांधी ने इंडिया-पाकिस्तान के युद्ध के पहले एक फ्रेंडशिप हार्मनी  साइन किया. जिसकी वजह से रूस और न्यू दिल्ली एक दूसरे के दोस्त बनकर, उभरकर सामने आए. शीतयुद्ध के समय से ही रूस भारत का सहयोगी रहा है और भारत भी रूस के साथ रहा है. भारत और रूस के बीच जो अच्छे संबंध है, वो कभी भी खत्म नहीं होंगीे अब तो भारत अमेरिका और फ्रांस से भी फाइटर जेट और बाकी युद्धक सामान इत्यादि ले रहें है. भले ही रूस के हथियारों के आयात में कमी पायी गई हो, पर अभी भी भारत का सबसे बड़ा रक्षा सामानों का निर्यातक रूस ही है. यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध को लेकर भारत ने बड़े ही शानदार तरीके से यह बताया कि यूक्रेन का युद्ध हमारे लिए कड़ी रस्सी है, इसमें भारत ना ही अमेरिका को सपोर्ट करता है और न ही रूस को. भारत ने बड़े ही संयोजित तरीके से इस चीज को अपनाया, जिसकी वजह से भारत और रशिया के बीच के संबंध अच्छे बनेंगे. हालांकि, कहीं न कहीं एक चिंता यह भी है कि जिस तरह से व्लामिदीर पुतिन उत्तर कोरिया के तानाशाह के साथ आए, किम जोंग उन जिस तरह चीन और रूस गए और दोनों के संबंध प्रगाढ़ हो रहे हैं, कहीं न कहीं भारत को संभल कर कूटनीति परिपक्वता से अपने कदम रखने की आवश्यकता है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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