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घर में पूजा-पाठ करना-करवाना गलत नहीं, तो नमाज़ पढ़ना कैसे गैरकानूनी हो गया?

अपनी आंखों पर लगे किसी भी धर्म के पहने चश्मे को उतारकर जरा ईमानदारी से ये सोचियेगा कि जब हमारे यहां किसी घर में सत्यनारायणजी की कथा होती है या फिर हनुमान चालीसा का पाठ होता है या फिर श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी का ही अखंड पाठ रखा जाता है और उसमें आसपास के 25-30 पड़ोसी भी जुट जाते हैं और वे सामूहिक रूप से आराधना करते हैं तो क्या पुलिस उनके ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज करती है? तमाम खोजबीन के बाद भी आपको आज तक ऐसा एक भी वाकया नहीं मिलेगा. तो फिर आख़िर ऐसा क्यों होता है कि किसी घर में नमाज़ पढ़ने वाले 26 लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करने में पुलिस जरा भी देर नहीं लगाती?

दरअसल, मामला किसी भी धर्म से जुड़ा हो लेकिन पुलिस-प्रशासन के लिये वह संवेदनशील ही होता है लिहाजा ऐसा कोई भी कदम उठाते वक़्त प्रशासन को ये ख्याल रखना होता है कि जल्दबाजी में उठाये गए उसके किसी कदम से समाज में साम्प्रदायिक माहौल कहीं और खराब न हो जाये. लेकिन लगता है कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद स्थित गांव दूल्हेपुर के एक घर में सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ने वाले 26 लोगों पर मुकदमा दर्ज करने में पुलिस ने कुछ जरूरत से ज्यादा ही तेजी दिखा दी.

जाहिर है कि इस मामले पर राजनीति भी होनी ही थी, जो हुई भी. AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी से सवाल भी किया तो वहीं अन्य मुस्लिम नेताओं ने भी पुलिस की कार्रवाई को गलत ठहराया. लेकिन सवाल ये है कि निजी संपत्ति पर नमाज़ पढ़ने या पूजा-पाठ करने को लेकर क्या कोई अलग-अलग नियम हैं. कानून के जानकारों के मुताबिक ऐसा कुछ भी नहीं है और देश का कानून सबके लिए समान है.

ये मामला सामने आने के बाद कुछ मुस्लिम नेता इस बात को लेकर मुद्दा बना रहे हैं कि लोग घर में नमाज पढ़ रहे थे तो इसमें आखिर क्या दिक्कत है? लिहाजा, ये जानना जरूरी है कि घर में नमाज पढ़ने को लेकर आखिर कानून क्या कहता है. मुरादाबाद के कांठ के एसडीएम जगमोहन गुप्ता के मुताबिक, "निजी संपत्ति में अकेले नमाज पढ़ना गलत नहीं है. परिवार के साथ भी नमाज पढ़ सकते हैं लेकिन इस तरह सामूहिक नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती है. परिवार से बाहर के लोग और ज्यादा संख्या में लोग घर में नमाज पढ़ने के लिए जुटते हैं तो इसके लिए पुलिस-प्रशासन से इजाजत लेने की जरूरत होती है. एक परिवार के लोग घर में नमाज पढ़ सकते हैं फिर चाहे परिवार में 7-8 लोग ही क्यों न हों लेकिन इधर-उधर से लोग इकट्ठा होकर किसी के घर में नमाज पढ़ने जाएं तो बिना अनुमति ये ठीक नहीं है. क़ानूनी रूप से निजी संपत्ति पर सामूहिक नमाज़ नहीं पढ़ सकते हैं. इसके लिए मस्जिद है."

मुरादाबाद के मामले में अभियुक्त बनाए गए उस गांव के वाहिद अली ने मीडिया के आगे विस्तार से अपनी बात बताई है जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसमें गलती आख़िर किस तरफ से हुई है. वाहिद के मुताबिक, "हमारे गांव में न तो मस्जिद है और न ही मंदिर. गांव में सैफ़ी और धोबी बिरादरियों के दस-बीस ही लोग रहते हैं. 24 अगस्त को हमारे ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करा दी गई लेकिन हमें मालूम नहीं कि ये रिपोर्ट किस आधार पर हुई है. हमने कोई सामूहिक नमाज़ अदा नहीं की है. तीन जून 2022 को जब हमने एक घर में नमाज़ अदा की थी तो गांव में हिन्दू संगठन से संबंध रखने वाले लोगों ने इस पर आपत्ति जताई थी. पुलिस भी गांव में आई और हमें प्रशासन ने बुलाया था. जब बात हुई तो तीन जून के बाद हमनें गांव में कोई सामूहिक नमाज़ ही अदा नहीं की लेकिन 24 अगस्त को हमारे ख़िलाफ़ जो रिपोर्ट दर्ज हुई वो ग़लत है हमें मालूम भी नहीं कि आख़िर किस वजह से ये रिपोर्ट दर्ज कर ली गई."

इस मामले के मुख्य शिकायतकर्ता चंद्रपाल सिंह का कहना है कि, "मुस्लिम लोग नमाज़ पढ़ते हैं. नमाज़ तो पहले भी पढ़ी थी सामूहिक रूप से, एक डेढ़ महीने पहले भी पढ़ी थी, हमने उसका वीडियो भी बना लिया था." मुस्लिम पक्ष की दलील के जवाब में वे कहते हैं, "ऐसा है कि अगर नहीं पढ़ी है तो मौलाना तो हैं वहां पर. ये भी लिखकर दे दें कि हमने तीन जून को ही नमाज़ पढ़ी है उसके बाद हमने कोई नमाज़ पढ़ी ही नहीं. जब आपत्ति है तो चार दीवारी में सामूहिक नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती है." उनके मुताबिक गांव में कोई मंदिर नहीं है ऐसे में यहां के हिंदू भी दूसरे गांव में पूजा करने जाते हैं.

गौरतलब है कि 24 अगस्त को ये मामला सामने आने के बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया था कि, "मुझे यकीन है कि अगर किसी पड़ोसी ने 26 दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ हवन किया होता, तो वह पूरी तरह से स्वीकार्य होता. हालांकि तकरीबन हफ्ते भर तक साम्प्रदायिक माहौल को खराब करने की चिंगारी भड़काने वाले इस मामले में सुकून की बात ये है कि मुरादाबाद के एसएसपी हेमंत कुटियाल ने मंगलवार को कहा कि मामले में जांच की गई थी लेकिन कोई प्रमाण न मिलने की वजह से अब इस केस को बंद कर दिया गया है. पर, सवाल ये है कि इस गलती का कसूरवार कौन है और उसे सजा कौन देगा?

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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