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ये बागी है...ये 'दागी' है, फिर भी यूपी दिल्ली की 'चाबी' है!
जिस यूपी ने नेहरू परिवार को सत्ता के शिखर पर पहुंचाया उसी यूपी ने उसी वक्त उनके मुखर विरोधी राम मनोहर लोहिया को भी जन नेता के रूप में स्थापित किया. राजनीति की लेबोरेटरी कहे जाने वाले यूपी ने ही चंद्रशेखर जैसे आक्रामक तेवर वाले नेता को लोकतंत्र के मंच का सिरमौर बनाया.

प्रतीकात्मक तस्वीर
गुलामी की जंजीर में जकड़े भारत को आजाद होने का पहला बुलावा उत्तर प्रदेश के मेरठ से आया. स्वाधीन भारत की परिकल्पना के साथ 'गोरी हुकूमत' के खिलाफ मुठ्ठी तानने वाले नायक मंगल पांडे की विद्रोही आवाज ने दासता स्वीकार कर चुकी जनमानस को जगा दिया. आजादी की पहली पाठशाला उत्तर प्रदेश की धरती पर ही खुली और स्वाधीनता के बाद आज भी यहां की सियासत देश को दिशा देती चली आ रही है. शायद यही वजह है कि सियासी गलियारों में यह कहावत आम है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी यूपी से होकर जाती है.
वैसे तो देश के तमाम राज्यों के सियासत का एक अपना खासा महत्व है लेकिन यह कहावत यूपी के पाले में कैसे आ गई, इस पर चर्चा करना लाजिमी है. यह संयोग ही है कि आजाद भारत में अब तक 15 प्रधानमंत्री हुए हैं जिनमें 9 का वास्ता उत्तर प्रदेश से रहा है. अब सियासत का पहिया 2018 से घूमाकर 1947 तक ले जाया जाए तो इस सफर में यह कहावत आपको वास्तविकता की शक्ल लेती दिखाई पड़ेगी.
चाहे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू हों, या मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी..दोनों का रिश्ता गंगा के इस मैदानी भूभाग से है. नेहरू के बाद, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, वीपी सिंह, चंद्र शेखर और अटल बिहारी वाजपेई...ये तमाम पूर्व प्रधानमंत्रियों का संबंध यूपी से रहा है. हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेई और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म स्थल यूपी नहीं है लेकिन देश के शीर्ष पद पर आसीन होने के लिए इन्होंने यूपी को ही अपनी कर्मभूमि चुना. अब ये आंकड़े ही देश की सियासत में यूपी की महत्ता को दर्शाने के लिए काफी हैं लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती.
जिस यूपी ने नेहरू परिवार को सत्ता के शिखर पर पहुंचाया उसी यूपी ने उसी वक्त उनके मुखर विरोधी राम मनोहर लोहिया को भी जन नेता के रूप में स्थापित किया. राजनीति की लेबोरेटरी कहे जाने वाले यूपी ने ही चंद्रशेखर जैसे आक्रामक तेवर वाले नेता को लोकतंत्र के मंच का सिरमौर बनाया. 1967 में पहली बार कांग्रेस की सत्ता को बड़ा झटका देने वाले नेता के तौर पर चौधरी चरण सिंह उभरे थे और उन्होंने एकमात्र परिवार की राजनीति को चुनौती दी थी.
यूपी के पानी और हवा में सियासत घुली हुई है जिसमें हर विचारधारा की खुशबू आसानी से महसूस की जा सकती है. उत्तर प्रदेश ने राजनीतिक मीमांसा की स्थली... बात सिर्फ देश को प्रधानमंत्री देने तक सीमित नही.. बल्कि आज़ादी की लड़ाई का बिगुल फूंकने वाले दीवानों से लेकर... देश की राजनीति को पूरे तौर पर बदल देने वाले राम मंदिर आंदोलन तक... उत्तर प्रदेश ने देश की राजनीति को हिला कर रख दिया.
देश की राष्ट्रीय राजनीति में अभिभावक की भूमिका निभाने वाले यूपी ने अपने राज्य के भीतर भी कई ऐसे सियासी अध्याय गढ़े जिसे आने वाली कई सदियों तक पढ़ा और समझा जाएगा. समाज में हाशिए पर खड़े समुदाय के अंदर राजनीतिक चेतना और सत्ता में हिस्सेदारी की वकालत करने में भी यूपी ने अहम भूमिका निभाई. आजाद भारत के इतिहास में जब भी दलित चेतना और दलित उत्थान का जिक्र होगा, यूपी में मायावती के उभार को समझे बिना यह अधूरा रहेगा. हाशिए और दबे कुचले सामाजिक पृष्ठभूमि वाली मायावती को सूबे का मुखिया बनाकर न सिर्फ यूपी ने दलित चेतना को नया आयाम दिया बल्कि एक महिला सशक्तिकरण का जोरदार उदाहरण देश के सामने रखा. लोहिया के बाद सिर पर 'लाल टोपी' सजाकर देश को समाजवाद से मुलायम सिंह यादव परिचय कराते रहे. हालांकि हुक्मरान बनते ही वह सेवक से स्वामी की मुद्रा में आते चले गये.
होली पर ठंडई और दिवाली पर मिठाई बांटने की तहजीब का नमूना पेश करने वाले यूपी ने सांप्रदायिकता का दंश भी झेला है. बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ यूपी के दामन पर सांप्रदायिकता का ऐसा दाग लगा जिसने यूपी की छवि को धूमिल कर दिया. यह घटना आने वाले कई सदियों तक यूपी के गौरवशाली इतिहास पर धब्बा बनी रहेगी. जहां एक तरफ यूपी को सांप्रदायिकता की दीमक ने काट खाया, वहीं सूबे ने जातिवाद की वीभत्स वेदना झेली.
यूपी की सियासत में आप संपूर्ण क्रांति से लेकर सैफई महोत्सव की फिल्मी नाइट का सफर खूब चटखारे के साथ पढ़ेंगे. यूपी ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की सादगी से मायावती के नोटों की माला तक देखी. चलते चलते आपको शास्त्री जी की सादगी से जुड़ा एक किस्सा बताते हैं... एक बार उनके घर पर सरकारी विभाग की तरफ से कूलर लगवाया गया. जब उन्हें इस बारे में पता चला तो उन्होंने परिवार से कहा, 'इलाहाबाद के पुश्तैनी घर में कूलर नहीं है. कभी धूप में निकलना पड़ सकता है. ऐसे आदतें बिगड़ जाएंगी.'
फिलहाल योगी आदित्यनाथ सूबे की कमान संभाल रहे हैं. यूपी अपनी पहली स्थापना दिवस मना रहा है. कैलेंडर में 2018 शुरू हो चुका है लेकिन नजरे 2019 पर हैं. ये देखना दिचलस्प होगा कि सियासत को अपने इशारों पर नचाने वाली यूपी क्या गुल खिलाती है?
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नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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