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(Source:  Poll of Polls)

BLOG: शहीदों की मूर्तियों से राष्ट्रवाद यानि वोटों का जुगाड़

राजस्थान में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ दिंसबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में वोटों के जुगाड़ में शहीदों की मूर्तियों को भी बख्शा नहीं जा रहा है. गांवों गांवों में शहीदों की मूर्तियां लगाने के बहाने ऐसे गांवों को शहीद वोट बैंक बनाने की तैयारी हो रही है .

मोदी सरकार और बीजेपी सर्जिकल स्ट्राइक की दूसरी वर्षगांठ को जोरदार तरीके से मनाने जा रही है. इससे पहले बीजेपी की हाल ही में दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी का निचोड़ यही था कि वह मोदी सरकार के कामकाज और उग्र हिंदुत्व के साथ साथ उग्र राष्ट्रवाद को भी चुनावी मुद्दा बना रही है. असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ पॉपुलेशन (एनआरसी) को लेकर बीजेपी नेता जिस तरह से तीखे बयान दे रहे हैं उससे साफ है कि भारत में रह रहे कथित घुसपैठियों के बहाने राष्ट्रवाद को जन जन के मानस में उतारने की तैयारी चल रही है. इस मुहिम की एक प्रयोगशाला राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में चल रही है. राजस्थान में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ दिंसबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में वोटों के जुगाड़ में शहीदों की मूर्तियों को भी बख्शा नहीं जा रहा है. गांवों गांवों में शहीदों की मूर्तियां लगाने के बहाने ऐसे गांवों को शहीद वोट बैंक बनाने की तैयारी हो रही है . शेखावाटी में चूरु, झुंझुनूं और सीकर जिले आते हैं. यहां की तीनों लोकसभा सीटें पिछले चुनावों में बीजेपी ने जीती थी. यहां की कुल 21 सीटों में से बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनावों में 12 सीटें जीती थी और कांग्रेस के हाथ सिर्फ चार ही आई थी. तीन निर्दलियों में से भी दो बीजेपी के पाले में आ गये थे. शेखावाटी सेनिकों, फौजी गांवों के लिए जाना जाता है. यहां का झुंझुनूं जिला तो देश का सबसे बड़ा जिला है जिसने देश को सबसे ज्यादा सैनिक भी दिए हैं और शहीद भी. पिछले दिनों इसी जिले के दौरे के दौरान शहीदों की मूर्तियों के बहाने वोटों के जुगाड़ का गणित समझने का मौका मिला. हम झुंझूनूं जिले के टोडरवास गांव पहुंचे. यहां सिपाही बानी सिंह शेखावत की मूर्ति का अनावरण समारोह हो रहा था. यह 1971 में भारत पाक लड़ाई में शहीद हुए थे और मूर्ति का अनावरण हो रहा है 2018 में. आप भी सोच रहे होंगे के ऐसा क्यों. सवाल उठता है कि क्या ये शहीद के प्रति मोहब्बत है या फिर कहीं न कहीं वोटों की सियासत है. अनावरण समारोह में झुझूनूं की सांसद संतोष अहलावत, राज्य सैनिक कल्याण सलाहकार समिति के अध्यक्ष प्रेम सिंह बाजौर के आलावा स्थानीय बीजेपी विधायक, सरपंच और गांव के लोग मौजूद थे. मंच पर शहीद का परिवार भी बैठा था. भाषणों का दौर शुरु हुआ और बात शहीद, शहादत, देश प्रेम से होते हुए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा तक पहुंची जो इन दिनों निकाली जा रही है. इसके बाद भाषण देने की पारी आई नरेन्द्र कुमार, विधायक मंडावा झुंझुनूं की. वैसे तो यह निर्दलीय जीते थे लेकिन लिखित में वसुंधार सरकार को समर्थन दे रहे हैं. नरेन्द्र कुमार ने शहीद की शहादत के बारे में रस्मअदायगी के बाद सारा एजेंडा ही सामने रख दिया. भाषण में कहने लगे कि हाल ही में पचास हजार रुपये का किसानों का कर्जा माफी वसुंधरा की देन है, उज्ज्वला के तहत मिल रहा गैस कनेक्शन वसुंधरा की देन है, गांव में बनने वाली सीमेंट की पक्की सड़क वसुंधरा की देन है. यहां तक कि विधायक महोदय ने बच्चों को स्कूलों में मिड डे मील के तहत मिलने वाले दूध का भी जिक्र कर दिया. कहने लगे कि अब तो बात यहां तक होने लगी है कि घर का दूध ज्यादा अच्छा है या स्कूल में मिलने वाला. उन्होंने बच्चों का हाथ उठवा कर उनका समर्थन लिया. विधायक महोदय बच्चों को यह बात याद दिलाना नहीं भूले कि उन्हें पहले हफ्ते में तीन दिन दूध मिलता था लेकिन अब छह दिन मिलने लगा है और यह सब वसुंधरा राजे की देन है. बात सिर्फ एक बानी सिंह और एक मंडावा विधानसभा तक सीमित नहीं है. बानीसिंह शेखावत की तरह 1173 मूर्तियां राजस्थान में लगाई जानी है. इनमें 1962, 1965 और 1971 के शहीदों के साथ साथ नक्सली हमलों में शहीद हुए अर्धसैनिक बलों के शहीद शामिल हैं. अकेले झुझंनु में 452 मूर्तियां लगाने का काम चल रहा है. झंझुनूं के ही खुडानिया गांव के मूर्तिकार वीरेन्द्र सिंह शेखावत मूर्तियां बनाने में लगे हैं. वह बताते हैं कि अब तक 30-35 मूर्तियां लग चुकी हैं और सौ बनकर तैयार हैं. उन्हें तेजी से मूर्तियां बनाने को कहा गया है. मूर्तियां सैनिक कल्याण बोर्ड लगवा रहा है और वसुंधरा राजे सरकार हर शहीद परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने जा रही है. यह सारा काम दिसंबर में होने वाले विधान सभा चुनाव से पहले पूरा कर लेने का लक्ष्य रखा गया है. प्रत्येक मूर्ति पर एक से डेढ़ लाख का खर्च आता है जिसे राज्य सैनिक कल्याण सलाहकार समिति के अध्यक्ष प्रेम सिंह बाजौर खुद उठा रहे हैं क्योंकि सरकारी खर्च से शहीद की मूर्ति नहीं बनवाई जा सकती. उनका कहना है कि करीब 25 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. वह कांग्रेस के आरोपों को सिरे से नकारते हैं लेकिन मानते हैं कि अगर अच्छा काम करने से वोट मिलता है तो इससे किसी को दिक्कत क्या है. बाजौर का कहना है कि शेखावाटी के अलावा पूरे राज्य में इस तरह की मूर्तियां लगाई जा रही है और हाल ही में सिरोही जिले के शिवगंज में गौरव यात्रा के दौरान खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ऐसी ही एक मूर्ति का अनावरण कर चुकी हैं. एक सड़क का नाम भी शहीद के नाम पर रखा गया है. हमारे देश में नेताओं और महापुरुषों की मूर्तियों को लेकर हमेशा से राजनीति भी होती रही है और चुनावों में फायदा भी उठाया जाता रहा है लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जबकि शहीदों की मूर्तियों को लेकर राष्ट्रवाद की नई परिभाषा गढ़ी जा रही हो और चुनाव में वोटों की उम्मीद भी की जा रही हो. लेकिन इसका उल्टे एक सच यह भी है कि 1999 के करगिल के युद्ध के समय शहीदों के परिवार वालों के साथ किए गये वायदे तक पूरे नहीं हुए हैं. भले ही राज्य में कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर बीजेपी की. दरअसल करगिल पहला यु्द्ध था जब शहीदों के शव उनके गांव तक पहुंचाएं गये. इससे पहले तो शहीद का दाह संस्कार वहीं कर दिया जाता था और घऱ पर बेल्ट और वर्दी ही आती थी. शव आए तो राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ और तब मूर्तियां लगाने का चलन भी शुरु हुआ. ऐसी मूर्तियों के अनावरण पर आने वाले सत्तारुढ़ दल के बड़े नेता बड़े बड़े वायदे करके जाने लगे लेकिन बहुत से गांवों में आज भी स्कूल का नाम शहीद के नाम पर नहीं हुआ है. जहां नाम हुआ भी है वहां बोर्ड की मार्कशीट पर शहीद का नाम स्कूल के साथ लिखा हुआ नहीं आ रहा है. कुछ शहीद परिवार उस जमीन पर कब्जे की बात करते हैं जो उन्हें तब शहीद पैकेज के तहत इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र में मिली थी. शहीद के नाम पर हो रही राजनीति की एक बड़ी मिसाल जयपुर से पचास किलोमीटर दूर जयसिंहपुरा गांव है. यहां शेखावटियों की ढाणी का एक अर्ध सैनिक बल का जवान प्रकाशचंद मीणा 13 मई 2012 को छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले में शहीद हुआ. लेकिन उस शहीद की मूर्ति नेता के इंतजार में पांच साल तक सफेद कपड़ों में ढकी रही. दो दो मुख्यमंमत्री समय नहीं निकाल सके. दिसंबर 2013 तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत थे. वह नहीं आ सके. उसके बाद वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनी लेकिन वह भी समय नहीं निकाल सकी. आखिरकार पांच साल के इंतजार के बाद शहीद के पिता ने धमकी दी कि अगर 13 मई 2017 तक कोई नेता नहीं आया तो वह खुद ही मूर्ति का अनावरण कर देंगे. बात स्थानीय अखबारों में छपी , स्थानीय चैनलों में आई. शहीद के पिता श्रीकृष्ण मीणा बताते हैं कि इस पर बीजेपी के स्थानीय नेता शर्मसार हुए और क्षेत्र के सांसद और केन्द्र सरकार में मंत्री राज्यवर्दनसिंह राठौड़ ने समय निकाला. एक शेर याद आता है. कौन याद रखता है अंधेरे वक्त के साथियों को, सवेरा होते ही चिराग बुझा देते हैं लोग. (नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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