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BLOG: कांग्रेस के नेता अपने बयानों से कब तक कुल्हाड़ी में पैर मारते रहेंगे?

ऐन चुनाव के वक्त जब कांग्रेस के दिग्गज नेता या उसके नामवर समर्थक देश से जुड़े भावनात्मक और नाजुक मुद्दों पर बयान देते हैं, तो आम आदमी और पार्टी शुभचिंतकों के मन में यही सवाल उठता है कि इन नेताओं और समर्थकों के रहते हुए कांग्रेस को दुश्मनों की क्या जरूरत है? बहुतों को चचा गालिब का यह शेर भी याद आ जाता होगा- "ये फित्ना आदमी की खाना-वीरानी को क्या कम है, हुए तुम दोस्त जिसके दुश्मन उसका आसमां क्यों हो."

कांग्रेस के बयानबहादुर जब तक यह घिसी-पिटी सफाई देते हैं कि उनका यह मतलब नहीं था या उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है. लेकिन तब तक जो नुकसान होना था, हो चुका होता है. ताजा मामला इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के प्रमुख सैम पित्रोदा का है. सैम पित्रोदा ने पिछले दिनों पाकिस्तान के बालाकोट में हुई वायुसेना की कार्रवाई को लेकर एक इंटरव्यू में कहा था कि क्या हमने सच में हमला किया था? क्या सच में 300 आतंकी मारे गए थे? और इस पर विवाद मचने के बाद वह ट्वीट कर रहे हैं, "मैं हैरान हूं कि मेरे एक इंटरव्यू को लेकर इस तरह प्रतिक्रिया, चर्चा और संवाद देखने को मिला. यहां तक कि भारत के प्रधानमंत्री और उनके कुछ मंत्रियों ने भी ट्वीट कर दिए. उन्होंने जो कहा है, वह झूठ है."

सैम पित्रोदा भले की कांग्रेस की सरकार द्वारा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पद्मभूषण से सम्मानित किए जा चुके हों. लेकिन लगता है कि उन्हें बदली हुई भारतीय राजनीति की समझ नहीं है. अब न तो अटल-आडवाणी वाली बीजेपी है, न कांग्रेस के अच्छे वाले दिन! यह मोदी-शाह वाली बीजेपी है, जो जरा सी वाइड गेंद पाते ही चौका-छक्का जड़ देती है. अंपायर (जनता) नो बाल (गलतबयानी) का इशारा करे, इसके पहले ही वह गेंद (मुद्दे) को बाउंड्री के बाहर (पाकिस्तान) पहुंचा देती है. इसलिए अब सैम पित्रोदा कितनी भी नैतिकता भरी बातें करें कि हमेशा सच की जीत होती है, आप कुछ देर के लिए कुछ लोगों को बेवकूफ बना सकते हैं, लेकिन हमेशा सभी लोगों को बेवकूफ नहीं बना सकते. मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो उन पर निशाना साध ही दिया है कि सुरक्षाबलों को नीचा दिखाना विपक्ष की आदत है. पीएम के इस बयान के बाद पूरा सोशल मीडिया उन पर टूट पड़ा.

यह सच है कि विपक्ष में होने या एक सामान्य नागरिक होने की हैसियत से भी सरकार के किसी भी निर्णय या नीति को लेकर सवाल पूछना जनता का लोकतांत्रिक अधिकार है. लेकिन समझदार लोग मौके की नजाकत देखते हुए ही मुंह खोला करते हैं. यह भी सच है कि विपक्षियों के बयान को ले उड़ना सत्ता में बैठे लोगों का भी लोकतांत्रिक अधिकार है. बीजेपी अपनी इसी स्थिति का लाभ उठाती है. सवाल यह है कि विपक्षी नेता उसे ये सुनहरी मौके उपलब्ध कराते ही क्यों हैं?

बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस में आए नवजोत सिंह सिद्धू ने अभी पिछले दिनों जब पुलवामा हमले को लेकर कहा कि चंद लोगों की वजह पूरे देश को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, तो इसे पाक समर्थक बयान साबित कर दिया गया और दर्शकों के दबाव में सिद्धू को कपिल शर्मा का शो तक छोड़ना पड़ा. देश की नब्ज को समझे बिना मुंह खोलने पर इसी तरह लेने के देने पड़ जाते हैं. सिद्धू का बयान ऐसे समय आया, जब फिदायीन हमले में 44 जवानों की शहादत के बाद भारत शोक में डूबा था और बदला लेने की मांग कर रही जनता के मन में पाकिस्तान के प्रति गहरा आक्रोश था.सिद्धू की यह बात ठीक थी कि दोनों देशों के बीच विवाद सिर्फ बातचीत से हल हो सकता है लेकिन पाकिस्तान को क्लीन चिट देना कहीं से उचित नहीं था.

अपने बड़बोले नेताओं के बयानों के चलते कांग्रेस पहले भी कई बार मुसीबत में घिर चुकी है. 2014 के आम चुनाव के ठीक पहले मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेस के सभास्थल के बाहर कहा था कि अगर मोदी यहां चाय बेचने आते हैं तो कांग्रेस उनका स्वागत करेगी. बीजेपी उनके इस बयान को ले उड़ी थी और पूरे देश में चायवाले की चाय पे चर्चाओं का तूफान उठा दिया गया. सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया द्वारा दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम 'एक शाम बाबरी मस्जिद के नाम' में शिरकत करते हुए उन्होंने विद्वता झाड़ी- "राजा दशरथ एक बहुत बड़े राजा थे, उनके महल में 10 हजार कमरे थे, लेकिन भगवान राम किस कमरे में पैदा हुए ये बताना बड़ा ही मुश्किल है." अंधे को क्या चाहिए- दो आंखें! बीजेपी उनके इस बयान को ले उड़ी और कांग्रेस को राम मंदिर का सबसे बड़ा विरोधी करार दे दिया. गुजरात विधानसभा के ऐन पहले मणिशंकर ने मोदी की राजनीति को 'गंदा' कहा, तो बीजेपी ने उसका 'नीच' शब्द में रूपांतर करके चुनाव का माहौल ही बदल दिया.

कांग्रेस के एक और बयानवीर दिग्विजय सिंह के बाटला हाउस मुठभेड़ पर किए गए शक का कैसा उल्टा असर हुआ था, यह तो सबको मालूम ही है. भारत के दुश्मनों और आतंकवादियों के नाम के सामने जी या साहब लगाना दिग्विजय की पुरानी आदत है, जिसका हर छोटे-बड़े चुनाव में कांग्रेस को भारी खामियाजा भुगतना पड़ा है. सैम पित्रोदा का ताजा बयान बताता है कि कुल्हाड़ी पर खुद ही पैर दे मारने का सिलसिला अभी कांग्रेस में थमा नहीं है.

बात ऐसे बयानों को पब्लिक डोमेन में उछालने और उन्हें लोगों के मन में बसा देने की क्षमता की भी है. सुब्रमण्यम स्वामी, गिरिराज सिंह, साक्षी महाराज जैसे अनगिनत बीजेपी के नेताओं और खुद पीएम मोदी की तरफ से भी बड़े विवादास्पद बयान आते रहे हैं. लेकिन उन पर कांव-कांव मचाने की मशीनरी कांग्रेस के पास नहीं है. उल्टे अपनी प्रचार मशीनरी के दम पर बीजेपी कांग्रेस के हमले को भी कटघरे में खड़ा करने में सफल हो जाती है. इसीलिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का व्यंग्य में ही आतंकी सरगना हाफिज सईज के नाम में जी लगाना जी का बवाल बन गया और बीजेपी के दिग्गज रविशंकर प्रसाद द्वारा असावधानीवश जी लगा देने के बावजूद किसी ने नोटिस तक नहीं लिया. आखिर कांग्रेस अपने नेताओं को पब्लिक डोमेन में बोलने की कोचिंग क्यों नहीं कराती? या ऐसे बयान दिलवाने के पीछे कांग्रेस की कोई सोची-समझी रणनीति है?

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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