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Decision Review System: क्या होता है DRS, इसके लिए कितना समय है निर्धारित, एक क्लिक में मिलेगी पूरी जानकारी

डीआरएस के क्या नियम हैं, इंडियन प्रीमियर लीग में 1 टीम कितने DRS ले सकती है. डिसीजन रिव्यू सिस्टम के लिए किन तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसी कुछ जानकारियां इस खबर में दी जा रही हैं.

Decision Review System: आईपीएल 2022 में शनिवार को 61वां मुकाबला कोलकाता नाइट राइडर्स और सनराइजर्स हैदराबाद के बीच खेला जा रहा है. KKR ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला लिया. कोलकाता की पारी के दौरान रिंकू सिंह डीआरएस लेना चाहते थे पर अंपायर ने उन्हें मना कर दिया. अंपायर अनिल चौधरी ने बताया कि अब समय बीत चुका है. इसके बाद अंपायर और रिंकू सिंह के बीच काफी चर्चा हुई. हालांकि नॉन स्ट्राइकर छोर पर बिलिंग्स ने रिव्यू का इशारा किया था पर नियम के तहत स्ट्राइकर छोर के बल्लेबाज़ को रिव्यू का इशारा करना पड़ता है. डीआरएस के क्या नियम हैं, आईपीएल में 1 टीम कितने DRS ले सकती है. ऐसी कुछ जानकारियां इस खबर में दी जा रही हैं.

15 सेकंड का समय दिया जाता है
डीआरएस का फुल फॉर्म है डिसीजन रिव्यू सिस्टम होता है. इसके तहत अगर किसी टीम या खिलाड़ी को लगता है कि अंपायर का फैसला गलत है तो वह फील्डिंग के दौरान कप्तान और बल्लेबाजी के दौरान स्ट्राइकर छोर पर खड़ा बल्लेबाज हाथ से टी का निशान बनाकर रिव्यू ले सकता है. इसके लिए 15 सेकंड का समय दिया जाता है. इसके बाद थर्ड अंपायर फिर से पड़ताल कर फैसला देते हैं. यदि मांग सही होती है तो थर्ड अंपायर ऑन फील्ड अंपायर के निर्णय को बदल देते हैं. ऐसे में DRS भी खत्म नहीं होता, लेकिन अगर खिलाड़ियों की मांग गलत साबित होती है, तब डीआरएस खर्च हो जाता है.

डीआरएस का नियम भी बदला
आईपीएल के नए नियमों के मुताबिक अब एक टीम के पास चार डीआरएस होते हैं. दो का इस्तेमाल बल्लेबाजी और दो डीआरएस का इस्तेमाल गेंदबाजी के दौरान किया जा सकता है. इसका मतलब है कि एक डीआरएस बर्बाद होने पर भी टीमों के पास एक डीआरएस बचा रहता है. हालांकि पहले आईपीएल में एक टीम को सिर्फ 2 डीआरएस मिलते थे.

डीआरएस के लिए तीन तकनीकों का सहारा लिया जाता है

  • हॉक-आई तकनीक
  • हॉट-स्पॉट तकनीक
  • अल्ट्राएज तकनीक

हॉक-आई तकनीक
इस तकनीक का इस्तेमाल एलबीडब्ल्यू के डिसीजन पर किया जाता है. इसके जरिए यह अनुमान लगाया जाता है कि गेंद पिच पर गिरने के बाद कहां जाती. क्या इस गेंद का संपर्क स्टंप से होता, या फिर नहीं. इस तकनीक में पहले दिखाया जाता है कि गेंद कहां टप्पा खाई और इसके बाद कितना कांटा बदला. अगर यह गेंद बल्लेबाज के पैर से नहीं टकराती तो उसी एंगल के साथ गेंद कहां जाती.

हॉट-स्पॉट तकनीक 
यह एक्सरे की तरह तकनीक होती है. इसमें गेंद बल्ले पर जहां टकराती वहां पर सफेद निशान बन जाता है. गेंद अगर बल्ले का किनारा लेकर गई है तो इसको देखने के लिए अंपायर इस तकनीक का प्रयोग करता है. गेंद अगर बल्ले पर टकराती है या फिर जहां भी टकराती है वहां पर सफेद रंग का गोला नजर आ जाता है.

अल्ट्राएज तकनीक
इसमें अल्ट्राएज और वीडियो के माध्यम से यह देखा जाता है कि गेंद बल्ले पर लगी है या नहीं. अल्ट्राएज तकनीकि स्टंप माइक के जरिए आवाज सुनती है और एकदम हल्की आवाज भी पकड़ लेती है. ऐसे में बल्ले का महीन किनारा लगने पर भी इस तकनीक के जरिए आउट या नॉटआउट का फैसला हो जाता है. कैच आउट के लिए या यह पता करने के लिए कि गेंद बल्ले से लगी है या नहीं, इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है.

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