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Happy Independence Day 2022: प्रयटकों के लिए खुशखबरी, 15 अगस्त तक इन ऐतिहासिक इमारतों की फ्री में करें सैर, देखें तस्वीरें

(गुजरात के खूबसूरत स्मारक, फोटो क्रेडिट- गुजरात टूरिज्म)

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भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने 5 अगस्त से 15 अगस्त तक सभी टिकट वाले स्मारकों में मुफ्त प्रवेश की घोषणा की है. संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, यहां पांच एएसआई स्मारकों की सूची दी गई है जिन्हें आप गुजरात में स्वतंत्रता दिवस तक यानी 15 अगस्त तक मुफ्त में देख सकते हैं.
भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने 5 अगस्त से 15 अगस्त तक सभी टिकट वाले स्मारकों में मुफ्त प्रवेश की घोषणा की है. संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, यहां पांच एएसआई स्मारकों की सूची दी गई है जिन्हें आप गुजरात में स्वतंत्रता दिवस तक यानी 15 अगस्त तक मुफ्त में देख सकते हैं.
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रानी की वाव,पाटन: पाटन में बनी 'रानी की वाव' को देखकर आप दुनिया के सातों अजूबे भूल जाएंगे. इस बावड़ी को इतने सुंदर तरीके से बनाया गया है कि आप इसकी बारीक कारीगरी को देखकर एकदम हैरान रह जाएंगे. रानी की वाव सरस्वती नदी के तट पर स्थित है. यह गुजरात के सबसे पुराने और बेहतरीन बावड़ियों में से एक है. कमाल की बात ये है कि ये आज की बहुत अच्छी हालत में है. 2014 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में इसे सूचीबद्ध किया था. अहमदाबाद से 150 किमी उत्तर में रानी की वाव को मारू गुर्जरा स्थापत्य शैली में बनाया गया है जो जटिल तकनीक की महारत को दर्शाता है. 
रानी की वाव,पाटन: पाटन में बनी 'रानी की वाव' को देखकर आप दुनिया के सातों अजूबे भूल जाएंगे. इस बावड़ी को इतने सुंदर तरीके से बनाया गया है कि आप इसकी बारीक कारीगरी को देखकर एकदम हैरान रह जाएंगे. रानी की वाव सरस्वती नदी के तट पर स्थित है. यह गुजरात के सबसे पुराने और बेहतरीन बावड़ियों में से एक है. कमाल की बात ये है कि ये आज की बहुत अच्छी हालत में है. 2014 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में इसे सूचीबद्ध किया था. अहमदाबाद से 150 किमी उत्तर में रानी की वाव को मारू गुर्जरा स्थापत्य शैली में बनाया गया है जो जटिल तकनीक की महारत को दर्शाता है. 
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बौद्ध गुफाएं, जूनागढ़: जूनागढ़ जिले में तीन गुफाएं हैं जो अब केशोद हवाई अड्डे के माध्यम से हवाई मार्ग से जुड़ी हुई हैं. मोदीमठ के पास ही 'बाबा प्यारे' गुफाएं हैं. इसके उत्तरी समूह में चार गुफाएं हैं. खपरा कोडिया गुफाएं गुफा समूहों में सबसे सीधी हैं. अभिलेखों के आधार पर पुरातत्वविदों ने गुफाओं का अनुमान तीसरी या चौथी शताब्दी का लगाया है. उपरकोट में बौद्ध गुफाएं जामी मस्जिद के उत्तर-पश्चिम में स्थित सबसे महत्वपूर्ण गुफाएं हैं. निचली मंजिल में उत्कृष्ट नक्काशीदार खंभे हैं जिनकी डिजाइन सातवाहन कला के साथ-साथ विदेशी ग्रीको-सीथियन प्रवृत्तियों से प्रेरित लगती है. कहा जाता है कि गुफाओं के ये समूह दूसरी या तीसरी शताब्दी के हैं.
बौद्ध गुफाएं, जूनागढ़: जूनागढ़ जिले में तीन गुफाएं हैं जो अब केशोद हवाई अड्डे के माध्यम से हवाई मार्ग से जुड़ी हुई हैं. मोदीमठ के पास ही 'बाबा प्यारे' गुफाएं हैं. इसके उत्तरी समूह में चार गुफाएं हैं. खपरा कोडिया गुफाएं गुफा समूहों में सबसे सीधी हैं. अभिलेखों के आधार पर पुरातत्वविदों ने गुफाओं का अनुमान तीसरी या चौथी शताब्दी का लगाया है. उपरकोट में बौद्ध गुफाएं जामी मस्जिद के उत्तर-पश्चिम में स्थित सबसे महत्वपूर्ण गुफाएं हैं. निचली मंजिल में उत्कृष्ट नक्काशीदार खंभे हैं जिनकी डिजाइन सातवाहन कला के साथ-साथ विदेशी ग्रीको-सीथियन प्रवृत्तियों से प्रेरित लगती है. कहा जाता है कि गुफाओं के ये समूह दूसरी या तीसरी शताब्दी के हैं.
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सूर्य मंदिर, मोढेरा: ये मंदिर मेहसाणा जिले के मोढेरा में स्थित है. ये गुजरात की सबसे पुरानी मंदिर है, कहा जाता है कि इसे 1026-27 ईस्वी पूर्व में बनाया गया था. इसका निर्माण राजा भीमदेव प्रथम (1022-1063 ई.) के शासनकाल के दौरान हुआ था. बता दें, इस मंदिर में नृत्य उत्सव के लिए एक अलग से स्थान बनाया गया है जहां हर वर्ष पर्यटन विभाग द्वारा एक वार्षिक आयोजन कराया जाता है.
सूर्य मंदिर, मोढेरा: ये मंदिर मेहसाणा जिले के मोढेरा में स्थित है. ये गुजरात की सबसे पुरानी मंदिर है, कहा जाता है कि इसे 1026-27 ईस्वी पूर्व में बनाया गया था. इसका निर्माण राजा भीमदेव प्रथम (1022-1063 ई.) के शासनकाल के दौरान हुआ था. बता दें, इस मंदिर में नृत्य उत्सव के लिए एक अलग से स्थान बनाया गया है जहां हर वर्ष पर्यटन विभाग द्वारा एक वार्षिक आयोजन कराया जाता है.
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चंपानेर में स्मारक: अपनी प्राचीन हिंदू और जैन वास्तुकला, मंदिरों और विशेष जल संरक्षण प्रतिष्ठानों के साथ, पंचमहल जिले में चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व पार्क 16वीं शताब्दी का है. चंपानेर वडोदरा से 50 किमी की दूरी पर और पावागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित है. यहां बता दें, 1484 में, महमूद बेगड़ा ने किले पर कब्जा कर लिया था और इसका नाम बदलकर मुहम्मदाबाद कर दिया था. पावागढ़ के शीर्ष पर देवी दुर्गा के अवतार कालिका माता को समर्पित एक मंदिर है और इसे शक्तिपीठ माना जाता है. इसकी खूबसूरत तस्वीरों को देखकर आप हैरान हो जाएंगे.
चंपानेर में स्मारक: अपनी प्राचीन हिंदू और जैन वास्तुकला, मंदिरों और विशेष जल संरक्षण प्रतिष्ठानों के साथ, पंचमहल जिले में चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व पार्क 16वीं शताब्दी का है. चंपानेर वडोदरा से 50 किमी की दूरी पर और पावागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित है. यहां बता दें, 1484 में, महमूद बेगड़ा ने किले पर कब्जा कर लिया था और इसका नाम बदलकर मुहम्मदाबाद कर दिया था. पावागढ़ के शीर्ष पर देवी दुर्गा के अवतार कालिका माता को समर्पित एक मंदिर है और इसे शक्तिपीठ माना जाता है. इसकी खूबसूरत तस्वीरों को देखकर आप हैरान हो जाएंगे.
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अशोकन शिलालेख, जूनागढ़: सम्राट अशोक के शिलालेखों को पाली भाषा में ब्राह्मी लिपि में गिरनार पर्वत की तलहटी में ग्रेनाइट के शिलाखंड पर उकेरा गया है. जब अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया और हिंसा का त्याग किया तो उन्होंने पत्थर में खुदी हुई शिलालेखों को पश्चिम में वर्तमान अफगानिस्तान में कंधार, पूर्व में आधुनिक बांग्लादेश और दक्षिण में आंध्र प्रदेश तक सभी जगहों पर रखा था.
अशोकन शिलालेख, जूनागढ़: सम्राट अशोक के शिलालेखों को पाली भाषा में ब्राह्मी लिपि में गिरनार पर्वत की तलहटी में ग्रेनाइट के शिलाखंड पर उकेरा गया है. जब अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया और हिंसा का त्याग किया तो उन्होंने पत्थर में खुदी हुई शिलालेखों को पश्चिम में वर्तमान अफगानिस्तान में कंधार, पूर्व में आधुनिक बांग्लादेश और दक्षिण में आंध्र प्रदेश तक सभी जगहों पर रखा था.

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