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Bastar News: ग्रामीणों ने किया सैकड़ों साल पुरानी परंपरा का त्याग, धनुष-बाण को छोड़ 'शिकार' नहीं करने की खाई कसम
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(बस्तर के ग्रामीणों ने 'शिकार' नहीं करने की खाई कसम)
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![छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में वन्य जीवों का शिकार करना आदिवासियों की परंपरा में शामिल है. यह परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है. आधुनिक काल में भी बस्तर के अंदरूनी ग्रामीण अंचलों में आदिवासियों के प्रमुख शौक में शिकार करना शामिल है. वहीं आदिवासियों के द्वारा मनाए जाने वाले अमुस त्यौहार के दौरान बस्तर में सभी ग्रामवासी शिकार प्रथा में जाते हैं और वन्यजीवों का शिकार कर देवी देवताओं को अर्पित करते हैं.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/05/31/9f494e294d648158b2a8842fee0b3a00502ae.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में वन्य जीवों का शिकार करना आदिवासियों की परंपरा में शामिल है. यह परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है. आधुनिक काल में भी बस्तर के अंदरूनी ग्रामीण अंचलों में आदिवासियों के प्रमुख शौक में शिकार करना शामिल है. वहीं आदिवासियों के द्वारा मनाए जाने वाले अमुस त्यौहार के दौरान बस्तर में सभी ग्रामवासी शिकार प्रथा में जाते हैं और वन्यजीवों का शिकार कर देवी देवताओं को अर्पित करते हैं.
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![अब इस परंपरा को बस्तर जिले के कांगेर वैली नेशनल पार्क के आसपास रहने वाले कई आदिवासी ग्रामीणों ने त्याग देने के लिए ऐतिहासिक निर्णय लिया है. आदिवासियों ने अपने गांव के देवगुड़ीयो में देवी-देवताओं के समक्ष यह प्रतिज्ञा ली है कि अब वे केवल वन्यजीवों और वन के संरक्षण और संवर्धन का कार्य करेंगे और पूरी तरह से वन्यजीवों का शिकार करना छोड़ देंगे. बस्तर हमेशा अपने खास संस्कृति, जैव विविधता और आदिवासी जीवन शैली के लिए पूरे विश्व में विख्यात रहा है. बस्तर जिले के कांगेर वैली नेशनल पार्क के चारों ओर गोंड और धुरवा जनजाति की विशाल आबादी कई सालों से निवास कर रही है.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/05/31/d3dac97fc7d9d591a6bfeae4ea1764e98de05.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
अब इस परंपरा को बस्तर जिले के कांगेर वैली नेशनल पार्क के आसपास रहने वाले कई आदिवासी ग्रामीणों ने त्याग देने के लिए ऐतिहासिक निर्णय लिया है. आदिवासियों ने अपने गांव के देवगुड़ीयो में देवी-देवताओं के समक्ष यह प्रतिज्ञा ली है कि अब वे केवल वन्यजीवों और वन के संरक्षण और संवर्धन का कार्य करेंगे और पूरी तरह से वन्यजीवों का शिकार करना छोड़ देंगे. बस्तर हमेशा अपने खास संस्कृति, जैव विविधता और आदिवासी जीवन शैली के लिए पूरे विश्व में विख्यात रहा है. बस्तर जिले के कांगेर वैली नेशनल पार्क के चारों ओर गोंड और धुरवा जनजाति की विशाल आबादी कई सालों से निवास कर रही है.
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![यहां आज भी ग्रामीण पुरातन पद्धति से बनाए बांस के घरों में रहकर जंगलों से मिलने वाली साक और कंदमूल पर निर्भर रहते हैं. साथ ही वन्यजीवों का शिकार करते हैं. लेकिन अब इस इलाके के आसपास के गांव के ग्रामीणों ने और गुड़िया पदर गांव के ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है और सभी ने अब शिकार बंद करने की कसम खा ली है. कांगेर वैली नेशनल पार्क के डायरेक्टर धम्मशील गणवीर ने बताया कि इस इलाके के अधिकतर आदिवासियों ने अपने तीर धनुष समर्पित कर दिए हैं. ऐसा उन्होंने इसलिए किया है ताकि जंगल की फूड चेन और जैव विविधता बनी रहे. साथ ही विलुप्त हो रहे वन्य जीव और वन के संरक्षण और संवर्धन का काम अच्छे से हो सके.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/05/31/d45ae7d4b8d21c2a6d801ed2deabe304a786c.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
यहां आज भी ग्रामीण पुरातन पद्धति से बनाए बांस के घरों में रहकर जंगलों से मिलने वाली साक और कंदमूल पर निर्भर रहते हैं. साथ ही वन्यजीवों का शिकार करते हैं. लेकिन अब इस इलाके के आसपास के गांव के ग्रामीणों ने और गुड़िया पदर गांव के ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है और सभी ने अब शिकार बंद करने की कसम खा ली है. कांगेर वैली नेशनल पार्क के डायरेक्टर धम्मशील गणवीर ने बताया कि इस इलाके के अधिकतर आदिवासियों ने अपने तीर धनुष समर्पित कर दिए हैं. ऐसा उन्होंने इसलिए किया है ताकि जंगल की फूड चेन और जैव विविधता बनी रहे. साथ ही विलुप्त हो रहे वन्य जीव और वन के संरक्षण और संवर्धन का काम अच्छे से हो सके.
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![इसलिए गुड़िया पदर गांव के करीब 120 ग्रामीण और उसके आसपास के कई ग्रामीणों ने अपने गांव के देवी देवताओं के सामने शिकार बंद करने की कसमें खाई है. ग्रामीणों के इस फैसले के बाद पूरे बस्तर जिले में उनकी जमकर तारीफ हो रही है. बकायदा ग्रामीणों ने अपने तीर धनुष को त्याग कर अपने देवी-देवताओं के सामने रखकर शिकार बंद करने की कसम खा ली है.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/05/31/7eda4b5b4ad9d97183786cb1d93bcaf62e7bf.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
इसलिए गुड़िया पदर गांव के करीब 120 ग्रामीण और उसके आसपास के कई ग्रामीणों ने अपने गांव के देवी देवताओं के सामने शिकार बंद करने की कसमें खाई है. ग्रामीणों के इस फैसले के बाद पूरे बस्तर जिले में उनकी जमकर तारीफ हो रही है. बकायदा ग्रामीणों ने अपने तीर धनुष को त्याग कर अपने देवी-देवताओं के सामने रखकर शिकार बंद करने की कसम खा ली है.
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![हाल ही में अपने बस्तर प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दरभा ब्लॉक के मंगलपुर गांव का दौरा किया था. इस दौरान भूपेश बघेल की मौजूदगी में भी एक मंदिर के सामने गुड़िया पदर गांव के लगभग 120 ग्रामीण और आसपास के कई ग्रामीणों ने शपथ ली कि अब वे कभी वन्य जीवों का शिकार नहीं करेंगे. बकायदा ग्रामीणों ने अपनी देवगुड़ी में शपथ ली कि देवी मां अनुमति दो कि हम जानवरों की बलि नहीं दें. हम सालों से चली आ रही अपने पूर्वजों की इस प्रथा को खत्म करना चाहते हैं और इसके बाद ग्रामीणों ने अपने तीर कमान ग्राम देवी के सामने अर्पित कर दिए.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/05/31/50008bddfd7e7255a744ca0ddb7190996a920.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
हाल ही में अपने बस्तर प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दरभा ब्लॉक के मंगलपुर गांव का दौरा किया था. इस दौरान भूपेश बघेल की मौजूदगी में भी एक मंदिर के सामने गुड़िया पदर गांव के लगभग 120 ग्रामीण और आसपास के कई ग्रामीणों ने शपथ ली कि अब वे कभी वन्य जीवों का शिकार नहीं करेंगे. बकायदा ग्रामीणों ने अपनी देवगुड़ी में शपथ ली कि देवी मां अनुमति दो कि हम जानवरों की बलि नहीं दें. हम सालों से चली आ रही अपने पूर्वजों की इस प्रथा को खत्म करना चाहते हैं और इसके बाद ग्रामीणों ने अपने तीर कमान ग्राम देवी के सामने अर्पित कर दिए.
Published at : 31 May 2022 05:15 PM (IST)
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उमेश चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकारCommentator
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