By: ABP News Bureau | Updated at : 02 Jun 2016 06:53 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने एक मई 2009 के अपने आदेश में गुजरात दंगों के सभी बड़े मामलों की सुनवाई करने पर लगे अपने स्थगन आदेश को हटा दिया. इसके बाद 11 फरवरी 2009 के अपने एक और आदेश के तहत सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ इन मामलों की जांच बल्कि अदालत में उनकी प्रगति पर निगाह रखने का भी आदेश एसआईटी को दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 26 अक्टूबर 2010 के अपने एक और आदेश में बाकी आठ मामलों में फैसले सुनाने का आदेश तो दे दिया, लेकिन गुलबर्ग सोसायटी कांड मामले में फैसला सुनाने पर रोक लगाई यानी इस मामले की सुनवाई तो चल सकती थी, लेकिन फैसला नहीं सुनाया जा सकता था.
इस बीच जाकिया जाफरी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दाखिल की गई, जिसमें न सिर्फ गुलबर्ग सोसायटी कांड बल्कि पूरे 2002 दंगो के लिए राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रिमंडल के कई साथियों और राज्य के वरिष्ठ नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों सहित कुल बासठ लोगों को जिम्मेदार ठहरा डाला. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एसआईटी ने याचिका में उठाये गये मुद्दों की जांच की, जिस दौरान एसआईटी के सदस्य ए के मल्होत्रा ने 27 और 28 मार्च 2010 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी से भी लंबी पूछताछ की. इस पूछताछ के दौरान मोदी ने इस बात से साफ इंकार किया कि 28 फरवरी 2002 के दिन एहसान जाफरी की तरफ से उन्हें मदद के लिए फोन किया गया, जैसा आरोप कुछ दंगा पीड़ितों और एनजीओ की तरफ से लगाया जाता रहा था. पूरी जांच के बाद एसआईटी की तरफ से जांच अधिकारी हिमांशु शुक्ला की तरफ से इस मामले में अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई, जिसे 26 दिसंबर 2013 को अदालत ने मंजूर कर लिया.
इस बीच गुलबर्ग सोसायटी कांड में अदालती कार्यवाही का दौर चलता रहा. विशेष अदालत के जज के तौर पर पहले बीयू जोशी ने इस मामले की सुनवाई की, जिनकी नियुक्ति गुजरात हाईकोर्ट ने सात मई 2009 के अपने आदेश के तहत की थी. जनवरी 2011 में इस मामले में सुनवाई पूरी भी हो गई, लेकिन उसी महीने उनका तबादला हो गया, जिसके बाद बी जे ढांढा को इस मामले की सुनवाई के लिए नियुक्त किया गया. ढांढा की अदालत में भी इस मामले की सुनवाई हुई, लेकिन फैसला पर स्टे लगे रहने के दरमियान ही 31 अगस्त 2013 को वो भी रिटायर हो गये. ढांढा के बाद गुजरात हाईकोर्ट की तरफ से के के भट्ट को इस मामले की सुनवाई की जिम्मेदारी सौंपी गई, लेकिन भट्ट भी तीस सितंबर 2014 को रिटायर हो गये. उसके बाद इस मामले के नये जज के तौर पर 17 अक्टूबर 2014 को पी बी देसाई की नियुक्ति हुई, जो फिलहाल अहमदाबाद के प्रिसिपल सिविल व सेसन जज भी हैं. देसाई की अदालत में गुलबर्ग कांड मामले की सुनवाई तो पूरी हो गई, लेकिन फैसले का इंतजार लंबा ही रहा. आखिरकार 22 फरवरी 2016 के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कह दिया कि अगले तीन महीनों में इस मामले में फैसला सुना दिया जाए. इसके बाद इस मामले की सुनवाई करने वाले जज पी बी देसाई ने 2 जून 2016 की तारीख फैसला सुनाने के लिए मुकर्रर कर दी. इस तरह गुलबर्ग सोसायटी दंगा कांड, जो अदालती रिकार्ड में मेघाणीनंबर पुलिस स्टेशन सीआर नंबर 67 बटा 02 के तौर पर जाना जाता है, उसमें चौदह साल बाद फैसला सुनाने का वक्त आया है. पहले तीन जजों को फैसला सुनाने का मौका तो नहीं मिला, लेकिन चौथे जज के तौर पर पी बी देसाई के पास ये मौका आया है.
इस मामले में कुल 68 लोगों के सामने चार्जशीट फाइल हुई, जिसमें से चार नाबालिग हैं. दो लोगों को खुद अदालत ने आरोपी बनाया. नाबालिग आरोपियों के मामले में जुवेनाइल कोर्ट में कार्यवाही चल रही है. जिन 66 लोगों के सामने विशेष अदालत में मामला चला, उनमें से पांच की मौत ट्रायल के दौरान ही हो गई. ऐसे में जज पी बी देसाई कल इस मामले के इकसठ आरोपियों के सामने फैसला सुनाएंगे, जिसमें से एक के जी एर्डा भी हैं, जो दंगे के वक्त उसी मेघाणीनगर पुलिस थाना के इंस्पेक्टर थे, जिसकी जद में गुलबर्ग सोसायटी आती है. इन आरोपियों में से नौ जेल के अंदर हैं, छह फरार हैं, जबकि बाकी जमानत पर हैं.
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