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रूस का भारत को पूरा समर्थन, खालिस्तानी आतंकी पन्नू पर अमेरिकी आरोपों का भारत दे रहा मुंहतोड़ जवाब

भारत में चल रहे लोकसभा चुनावों  के बीच ऐसे बयान वे असंतोष फैलाने के मकसद से दे रहे हैं. उनकी चाहत है कि भारत में ढीली-ढाली, बहुमत के लिए खींचतान करती सरकार बने जिसके बाद ये अपना उल्लू सीधा कर पाएं.

हाल ही में अमेरिका ने खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू को लेकर भारत पर कई आरोप लगाए. जब भारत ने सबूत मांगे तो खुद को दुनिया का चौधरी समझने वाले अमेरिका ने कोई सबूत भी नहीं दिया. अमेरिका के आरोपों को रूस ने भारत की छवि खराब करने के साथ चुनाव के समय भारत को अस्थिर करने की कोशिश बताया है. भारत और रूस की दोस्ती बहुत पुरानी और पूरी दुनिया में मशहूर है. कहें कि दोनों देश एक-दूसरे के लिए हरेक मौसम में साथ रहे हैं, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. ऐसे में कनाडा के बाद अमेरिकी आरोपों का भारत ने तो मुंहतोड़ जवाब दिया ही है, रूस भी पुरानी दोस्ती निभाने खुलकर मैदान में आ गया है औऱ भारत के लिए बिना इधर-उधर किए बैटिंग कर रहा है. 

भारत की मजबूत सरकार और विदेश 

पिछले 10 वर्षों से भारत में स्थाई सरकार है और साथ में भारत की विदेश नीति से देश की बढ़ती साख और  वर्तमान सरकार के कामों से  कई पूंजीपति देशों की नींद उड़ गईं हैं. इस सब का कारण है कि जिस देश को पिछलग्गू राष्ट्र  के तमगे से नवाजा गया, वही देश आज बड़े देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रहा है. भारत आज दुनिया की शीर्ष पांचवीं अर्थव्यवस्था बन चुका है. अगर तरक्की की इसी रफ्तार को आंकें तो अनुमान के अनुसार भारत आने वाले 5 सालों में भारत  दुनिया की 3 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा. भारत पिछले कई सालों से सुरक्षा परिषद की सदस्यता के लिए लगातार अपना दावा पेश कर रहा है अगर भारत की अर्थव्यवस्था  लगातार 8 फीसदी की दर से बदती है और जब हम दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनते हैं तो भारत को वीटो पावर के साथ सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता मिल जाएगी, ऐसा सोचना गलत नहीं होगा. 

अमेरिका और दुनिया की चौधराहट 

अमेरिका और उसके साथी कई बड़े देश नहीं चाहते के भारत दिन दुगनी और रात चौगुनी तरक्की करे क्योंकि वो भारत को पिछलग्गू राष्ट्र की तरह ही देखना पसंद करते हैं. उनकी दिली ख्वाहिश है कि भारत उनके आदेशों का पालन करता रहे और उनकी सहूलियत के हिसाब से भारत अपनी विदेश नीति तय करे, अपना स्टैंड ले. पिछले 10 सालों में भारत ग्लोबल साउथ (यानी, दुनिया के विकासशील देश) के नेता के रूप में उभरा है , कई वैश्विक पहलों में भारत की महत्वपूर्ण  भूमिका रही है, भारत में हुआ G20 सम्मेलन  ऐतिहासिक रहा क्योंकि पहली बार सब देशों की आम सहमति से साझा बयान जारी किया गया .भारत आज तक हथियारों का केवल आयात करता था, लेकिन आज हथियारों का निर्यात कर के बड़े देशों को चुनौती दे रहा है , पिछले कुछ वर्षों में प्रवासी भारतीयों को आत्मविश्वास बढ़ा है जिसके कारण प्रवासी भारतीय भी भारत की तरक्की में अपना सहयोग दे रहे हैं . इस आत्मविश्वास के कारण ही आज भारतीय मूल का व्यक्ति ऋषि सुनक यूनाइटेड किंगडम का प्रधानमंत्री है, ये वही ब्रिटिश हैं जिन्होंने हम पर सैकड़ों सालों तक राज किया था. आज अंतरराष्ट्रीय पटलों पर भारत का चौतरफा डंका वज रहा है और अब हम आंखों में आंखे डालकर अमेरिका को भी तथ्यपरक और अपने फायदे को पहले देखकर फिर जवाब देते हैं. भारत की यही चीजें अमेरिका को हजम नहीं हो रहीं हैं . वह नहीं चाहता कि भारत एक सशक्त नेतृत्व दे . इन्हीं कारणों से भारत में चल रहे लोकसभा चुनावों  के बीच ऐसे बयान वे असंतोष फैलाने के मकसद से दे रहे हैं. उनकी चाहत है कि भारत में ढीली-ढाली, बहुमत के लिए खींचतान करती सरकार बने जिसके बाद ये अपना उल्लू सीधा कर पाएं.

वैश्विक राजनीति पर वर्चस्व

यह विश्व की राजनीति पर वर्चस्व की लड़ाई है और ये बहुत आगे तक जाएगी. अमेरिका फिलहाल वैश्विक राजनीति पर अपनी पकड़ खो चुका है  उसको रूस ने भी चुनौती दी है. ऐसे में तीसरा देश भारत जो आर्थिक, राजनीतिक, सैनिक शक्ति के तौर  पर मजबूत है, साथ में वो ग्लोबल साउथ का नेता भी है ऐसे में पश्चिमी दशों को ये बातें पच नहीं रहीं. ऐसे में भारत को सीमित करने की कोशिश हो रही है. कई दशकों से रुस और भारत अच्छे मित्र रहे हैं. कश्मीर के मुद्दे पर रूस भारत का समर्थन करता रहा है, साथ ही रूस पाकिस्तान को आतंकवादियों का पालन-पोषण करने वाले राष्ट्र की तरह देखता है.  बांग्लादेश की पाकिस्तान से आजादी में रूस ने भारत का समर्थन किया था. संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता के लिए भी रूस हमेशा भारत के समर्थन में रहा है. परमाणु परीक्षण के बाद भारत को रूस का साथ मिला था, जब अमेरिका और उसके साथी देशों ने कई तरह के प्रतिबंध भारत पर लगाए. रूस ने अपनी कई रक्षा तकनीक भारत के साथ शेयर कीं हैं.  भारत और रूस कई संयुक्त उद्यम कर रहे हैं, ब्रह्मोस मिसाइल उसका एक उदाहरण है. रूस भारत का एक पुराना और समय की कसौटियों पर खरा उतर चुका मित्र है. रूस चाहता है कि भारत मजबूत बने, अपने पैरों पर खड़ा हो जिससे पूंजीपति देशों के स्वार्थ पूरे न हों और साथ में भारत इन बड़े देशों की आंख में आंख डालकर बात करे. 

भारत और रूस की दोस्ती

रूस भी भारत को अपना मित्र मानता है और भारत ने भी रूस का महत्वपूर्ण मुद्दों पर साथ दिया है. जैसे, हाल में पूरे विश्व ने रूस-यूक्रेन युद्ध के ऊपर रूस पर कई प्रतिबंध लगाए थे वहीं भारत बदस्तूर रूस के साथ खड़ा रहा और वैश्विक मंचों पर पश्चिमी देशों के पैरोकारों ने प्रधानमंत्री मोदी से लेकर विदेश मंत्री  जयशंकर से  खुलकर पूछा कि भारत रूस का साथ क्यों दे  रहा है? इन सवालों के जबाबों का सार था कि भारत पहले अपने राष्ट्रीय हित का पालन करेगा. भारत अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के साथ परोक्ष रूप से रूस का समर्थन करता है और तमाम प्रतिबंधों के बाद भी रूस से तेल खरीद के इसे दिखा भी रहा है. हालांकि, रूस से तेल खरीद कर भारत ने यूरोप की भी मदद की है, लेकिन वह अर्थशास्त्र का अलग विषय हो जाएगा. हमारे विदेश मंत्री हालांकि एक बार इसके बारे में बता भी चुके हैं. भारत के साथ व्यापार जारी रहना भी एक कारण है कि रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों का कोई असर नहीं हो रहा है और यही बदलती हुई भू-राजनीति है. इन आरोपों और पश्चिमी देशों की बदहजमी के पीछे कुछ सालों में हुई भारत की ब्रांडिंग,आर्थिक विकास,नई विदेश नीति और सत्ता में एक स्थायी सरकार का होना है.

डॉक्टर अमित सिंह ने जेएनयू से इंटरनेशनल रिलेशन में पीएचडी करने के बाद चार साल भारतीय नौसेना के थिंक टैंक के साथ काम किया. फिलहाल, वह JNU में अंतरराष्ट्रीय संबंधों एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विषयों को पढ़ाते हैं और एसोसिएट प्रोफेसर हैं.
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