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हिंद प्रशांत क्षेत्र में सामरिक पकड़ बनाना चाहता है जर्मनी, उसकी विदेश नीति में भारत महत्वपूर्ण

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी के ऊपर कई प्रतिबंध लग गए थे.  उन्होंने खुद भी रणनीतिक मुद्दों पर ज्यादा दखलअंदाजी करने पर रोक लगा ली थी. लेकिन अब जब जर्मनी बदल रहा है.

जर्मन चांसलर पहली बार भारत यात्रा पर आ रहे हैं. इस संदर्भ में उनकी भारत यात्रा काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि जर्मनी बदल रहा है. जर्मनी का अपना चिंतन है, विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर वो बदल रहा है. चूंकि आज का जो जर्मनी है वो एक महत्वपूर्ण राजनीतिक रोल दुनिया में प्ले करना चाहता है. हमने पिछले कुछ समय से देखा है कि जर्मनी ने भारत के साथ आत्मीयता बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, भारत और जर्मनी के संबंध हमेशा से अच्छे रहे हैं, लेकिन उसमें रणनीतिक गहराई होती है वो नहीं थी. क्योंकि जर्मनी ज्यादातर आर्थिक मामलों में सुदृढ़ रहने की कोशिश करता था. उसका एक रणनीतिक विजन था वो बहुत लिमिटेड था. 

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी के ऊपर कई प्रतिबंध लग गए थे.  उन्होंने खुद भी रणनीतिक मुद्दों पर ज्यादा दखलअंदाजी करने पर रोक लगा ली थी. लेकिन अब जब जर्मनी बदल रहा है और वह चाहता है कि न सिर्फ जर्मनी बल्कि यूरोपियन यूनियन जिसका कि वह आर्थिक तौर पर सबसे महत्वपूर्ण प्लेयर है, तो जर्मनी भारत की तरफ बहुत ज्यादा तवज्जो दे रहा है. 

इस साल दो बार चांसलर का भारत दौरा

अभी दिसंबर में ही जर्मन विदेश मंत्री भारत दौरे पर आईं थीं और ये भी उनकी पहली भारत यात्रा थी. इस दौरान उन्होंने दोनों देशों के बीच नए संबंधों की नींव रखी और जब जर्मन चांसलर आएंगे और ये भी बड़ा महत्वपूर्ण है कि वे इस साल दो बार भारत आएंगे. एक बार तो अभी आएंगे और एक बार वे जी-20 की मीटिंग में आएंगे. तो ये जो दौर है भारत और जर्मनी के रिश्तों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होने वाला है.

एंजेला मर्केल जो थीं वो बहुत ही अंतर्मुखी लीडर थीं. उन्होंने जर्मनी की जो विदेश नीति थी उसको भी बहुत इनवर्ड लुकिंग बना दिया था.  अभी चूंकि काफी ऐसे एपिसोड हो गए हैं. अंतरराष्ट्रीय जो संदर्भ है वो बदल रहा है. उसके चलते जर्मनी के पास अब वो लग्जरी नहीं है कि वो इन मुद्दों पर नहीं सोचे. क्योंकि यूक्रेन वॉर हो रहा है, चीन के साथ हालात बदलते जा रहे हैं. जर्मनी ये चाह रहा है कि वो हिंद-प्रशांत में अपना उसका रोल हो या यूरोप में, जो उसे नई तरीके से अपनी सिक्यूरिटी देखनी है, उसमें वह पीछे न रह जाए...तो हमने देखा है कि मर्केल के बाद चांसलर ओलाफ शोल्ज ने जो लगातार निर्णय लिए हैं वो बहुत महत्वपूर्ण है. 

उसमें उन्होंने न सिर्फ एक इंडो पैसिफिक को अपना केंद्र बिंदु बनाया बल्कि ये बात भी कही कि भारत एक बड़ा रोल प्ले करेगा अंतरराष्ट्रीय ऑर्डर में और इसे इससे जोड़ा कि जर्मनी भी अब वापस से अपने लिए एक नई पहचान बना रहा है. जर्मनी ने ये बोला कि वह अगले साल में तकरीबन 100 बिलियन डॉलर खर्च करेगा. एक पावरफुल स्टेट ऑफ द आर्ट मिलिट्री बनाएगा और क्योंकि जर्मनी यूक्रेन संकट के बाद अपने आप को एक नए यूरोपियन पावर के रूप में देख रहा है. 

जर्मनी की विदेश नीति में काफी बदलाव

जर्मनी ने अपनी विदेश नीति में काफी कुछ बदलाव लाने की कोशिश की है, जिससे की वो भारत जैसे लाइक माइंडेड देश हैं, उनके साथ उनकी घनिष्ठता बढ़े तो एंजेला मर्केल और आज के लीडरशिप में बहुत फर्क है. दोनों के समय में बहुत फर्क है. एंजेला मर्केल के समय में जिस तरह का वैश्विक माहौल था और आज के समय में जिस तरह के अंतरराष्ट्रीय संबंध हैं उनमें बहुत फर्क हैं और इसलिए हम जर्मनी का एक नया रोल देख रहे हैं.

भारत को जर्मनी दो-तीन तरह से देख रहा है. एक तो यह है कि भारत में जब जर्मन विदेश मंत्री आईं थीं तो उन्होंने कहा था कि भारत एक राइजिंग इकोनॉमिक पावर है.. और आज के हालात में एक ब्रिज बिल्डर बनने का एक नया रोल है. मौका है तो उस लिहाज से आज की उस लीडरशिप के हिसाब से जर्मनी भारत को महत्व दे रहा है. दूसरा आर्थिक और सामरिक तौर पर भारत बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत आज विश्व में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है और जर्मनी ने भारत के साथ जो मोबिलिटी पैक्ट किया था. वो इस बात को लेकर किया है कि भारत के जो प्रोफेशनल्स हैं वो आराम से जर्मनी जा पाएं और जर्मनी की ग्रोथ में अपना हिस्सा दे पाएं.  सामरिक तौर पर जर्मनी अपना हिंद-प्रशांत में पकड़ बनाना चाहता है और हिंद प्रशांत में जो सेंट्रल पिलर है अभी भारत है. 

वह चाहता है कि भारत के साथ घनिष्ठ संबंध हों उसके. अंततः मल्टीलेटरल सिस्टम में भारत और जर्मनी काफी समय से काम करते रहे हैं. एक ग्रुप ऑफ फोर है जो यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में रिफॉर्म की बात करता है जिसमें जर्मनी, जापान, भारत और ब्राजील है. हमेशा से इन चारों देशों की मांग रही है कि जो यूएन सिक्योरिटी काउंसिल है जो 1945 के बाद बनी थी और उसमें जो बड़े देश बैठे हैं और उनके पास विटो पावर है उस स्ट्रकचर में बदलाव आए तो भारत और जर्मनी मल्टीलेटरल सिस्टम में एक साथ काम करते रहे हैं. 

भारत के साथ बढ़ती नजदीकियां

आगे भी ये मल्टीलेटरल सिस्टम में काम करेंगे क्योंकि वर्तमान में मल्टीलेटरल सिस्टम कमजोर पड़ते नजर आ रहे हैं...तो कई ऐसे मुद्दे हैं मल्टीलेटरलिज्म का हो, आर्थिक हो, सामरिक हो, क्लाइमेट चेंज या पर्यावरण का मुद्दा है जिसमें जर्मनी के पास कटिंग एज तकनीक है. क्योंकि भारत इस समय क्लाइमेट चेंज को बहुत तवज्जो दे रहा है तो दोनों में साझेदारी का महत्व बहुत बढ़ जाता है. जर्मनी इसलिए भारत को एक नए तरीके से समझने की कोशिश कर रहा है और अपनी विदेश नीति में भारत को एक नया मुकाम दे रहा है.

दोनों देशों का भविष्य तो इस समय काफी उज्जवल है. अगर हम वैश्विक संदर्भ को देखें तो इस समय जर्मनी यूरोपियन यूनियन के केंद्र में है. वह न सिर्फ रूस के साथ एक कंपटीटिव स्पेस में है बल्कि चीन के साथ भी हिंद-प्रशांत में भी जर्मनी को यूरोपियन यूनियन ने जर्मनी को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बताया है और यूरोपियन यूनियन में जो चीन को लेकर काफी समय से पॉजिटिव सेंटिमेंट था वो अब निगेटिव बनता जा रहा है. वैश्विक आर्थिक मंच पर भारत की भूमिका बढ़ रही है. भारत एक ग्लोबल इन्वेस्टमेंट का हब बनता जा रहा है. भारत एक महत्वपूर्ण व्यापार साझेदार के रूप में खड़ा हो रहा है तो उसको देखते हुए दोनों ही देश एक-दूसरे के साथ घनिष्ठता बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं. आगे आने वाले समय में मुझे नहीं लगता है कि दोनों ही देशों के बीच कोई ऐसी समस्या है जिससे कोई बड़ी समस्या खड़ी कर सकती है तो भविष्य अच्छा लग रहा है इस समय..

हर्ष वी. पंत ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के नेशनल वाइस प्रसिडेंट हैं. इसके साथ ही, वे किंग लंदन कॉलेज के किंग इंडिया इंस्टीट्यूट में इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर हैं. 
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