By: एबीपी न्यूज़ | Updated at : 14 Aug 2020 02:40 PM (IST)
15 अगस्त के दिन देश के प्रधानमंत्री तिरंगा झंडा फहरा कर राष्ट्र के नाम अपना संबोधन देते हैं. देश के नाम इस अहम दिन पर तिरंगा झंडा अपना खास महत्व रखता है. आज जिस तरह तिरंगा रूप है क्या पहले भी वैसा ही था? हमारे देश के राष्ट्रीय ध्वज के बनने की क्या कहानी रही इसके पीछे एक दिलचस्प इतिहास रहा है.
भारत के राष्ट्रीय ध्वज शीर्ष पर केसरिया रंग की क्षैतिज पट्टी होती है, जो बीच में सफेद और गहरे हरे रंग के बराबर अनुपात में बांटी गई है. ध्वज की चौड़ाई की लंबाई का अनुपात 2:3 है. सफेद पट्टी के केंद्र में एक नीले रंग का च्रक है जिसमें 24 तिल्लियां हैं. इस प्रतीक को सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ से लिया गया है.
15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी से कुछ दिन पहले 22 जुलाई 1947 को आयोजित संविधान सभा की बैठक के दौरान भारत के राष्ट्रीय ध्वज के वर्तमान स्वरूप को अपनाया गया था. इसके बाद यह 26 जनवरी, 1950 को संप्रभु गणतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया. ध्वज में तीन रंग के होने की वजह से इसे 'तिरंगा' भी कहते हैं.
आज हम भारत के राष्ट्रीय झंडे को जिस तरह से देख रहे हैं, शुरुआत में यह ऐसा नहीं था. यह जानना बहुत ही दिलचस्प होगा कि कैसे हमारा राष्ट्रीय ध्वज अपने पहले प्रारूप से कई बदलावों का रास्ता इख्तियार करते हुए अपने वर्तमान स्वरूप में आया है. इसकी शुरुआत हमारे राष्ट्रीय संघर्ष के दौरान के दौरान हुई थी. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का जो स्वरूप आज है वह झंडे के विकास की एक लंबी कड़ी के कई पहलुओं से गुजर कर संभव हो पाया. हमारे राष्ट्रीय ध्वज के विकास में कुछ ऐतिहासिक मील के पत्थर हैं जिन्होंने अलग-अलग झंडे को अलग-अलग रंग और पहचान दी.
1. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का पहला स्वरूप स्वदेसी आंदोलन के दौरान अपनाया गया था. पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 में पारसी बगान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता (कोलकाता) में फहराया गया था. यह ध्वज तीन रंगे का था, जिसमें हरे, पीले और लाल रंग की पंट्टियां थीं. इन पट्टियों में कुछ प्रतीक दर्शाएं गए थे. हरे रंग की पट्टी में आठ कलम के फूल, लाल रंग की पट्टी में चांद और सूरज और बीच में पीले रंग की पट्टी में देवनागरी लिपि में 'वंदे मातरम्' लिखा हुआ है.
2. मैडम भीखाजी कामा द्वारा साल 1907 में पेरिस में भारत के कुछ क्रांतिकारियों की मौजूदगी में फहराए गए ध्वज को दूसरा राष्ट्रीय ध्वज मानते हैं. यह भी पहले ध्वज की ही तरह था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी का रंग केसरिया था और कमल के बजाए सात तारे सप्तऋषि प्रतीक थे. नीचे की पट्टी का रंग गहरा हरा था जिसमें सूरज और चांद अंकित किए गए थे.
3. साल 1917 के होम रूल आंदोलन की आड़ में तीसरे राष्ट्रीय ध्वज को रूप दिया गया. इस ध्वज में पांच लाल और चार हरी क्षैतिज पट्टियां थीं. जिसके अंदर सप्तऋषि के सात सितारे थे. बांयी और ऊपरी किनारे पर यूनियन जैक भी मौजूद था. एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था.
4. साल 1921 में विजयवाड़ा में हुए भारतीय कांग्रेस कमीटी के सत्र एक झंडे का इस्तेमाल किया गया जिसे चौधा राष्ट्रीय ध्वज कहा गया. तीन रंगों की पट्टियों में गांधीजी के चरखें के प्रतीक को दर्शाया गया था. इस झंडे में तीन रंग- सफेग रंग के अलावा लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है.
5. साल 1931 में अपनाया गया राष्ट्रीय ध्वज हमारे आज के राष्ट्रीय ध्वज के स्वरूप के बहुत करीब था. इस झंडे में तीन रंग- केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टियां थीं. सफेद पट्टी के बीचों-बीच गांधी जी के चरखा का प्रकीक बनाया गया था.
6. राष्ट्रीय ध्वज का वर्तमान स्वरूप 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा की झंडा समिति की तरफ से लिया गया. इस समिति के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद थे.
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