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Explained : आज भी अमेरिका में गोरे काले के साथ कैसे भेदभाव करते हैं?

अमेरिका में श्वेतों और अश्वेतों का झगड़ा पुराना है. श्वेत खुद को अश्वेतों से बेहतर मानते हैं, जबकि अश्वेत खुद के लिए बराबरी का हक मांग रहे हैं. संविधान बराबरी की इजाजत देता भी है, लेकिन अब भी लोगों की मानसिकता नहीं बदल पाई है.

ये कहानी है अमेरिका के एक राज्य वर्जीनिया की. उस वर्जीनिया की, जहां से अमेरिका में दास प्रथा की शुरुआत हुई थी. इसी राज्य ने साल 1662 में एक कानून बनाया. ये कानून कहता था कि देश में पैदा हुए बच्चों का स्टेटस उनकी मां के स्टेटस से तय होगा. इसका मतलब ये था कि अगर मां गुलाम है, तो बच्चा भी गुलाम होगा और अगर मां आजाद है तो बच्चा भी आजाद होगा.

लेकिन वर्जीनिया में आजाद कौन था? सिर्फ श्वेत. जितने भी अश्वेत थे, सब गुलाम थे. उनकी आने वाली पीढ़ियां भी गुलाम ही पैदा होने वाली थीं. इस कानून को बने फिलहाल 350 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. ये कानून अब खत्म हो चुका है. अमेरिका में नया संविधान लागू है, जो सबको बराबरी का अधिकार देता है. इसी संविधान की बदौलत अमेरिका में अश्वेत जज, अश्वेत गवर्नर और अश्वेत राष्ट्रपति तक बन चुके हैं. लेकिन क्या इससे अश्वेत श्वेतों के मुकाबले बराबरी में आ गए हैं, इसका जवाब खोजने के लिए कुछ घटनाओं पर नज़र डालनी ज़रूरी है.

# साल 2012 में फ्लोरिडा में ट्रेवोन मार्टिन नाम के एक अश्वेत अमेरिकी की हत्या हो गई. ये हत्या की थी एक श्वेत सिक्योरिटी गार्ड जॉर्ज जिमरमैन ने. जब मामला अदालत में पहुंचा तो ज्यूरी ने जॉर्ज जिमरमैन को निर्दोष करार दिया. साथ ही ये भी आदेश दिया कि जॉर्ज की बंदूक उसे वापस कर दी जाए.

# 17 जुलाई, 2014. न्यू यॉर्क में एक अश्वेत अमेरिकी एरिक गार्नर की पुलिस की प्रताड़ना से मौत हो गई. इसके पीछे कहानी ये थी कि एरिक का किसी से झगड़ा हो रहा था. पुलिस आई और उसने एरिक को खुली सिगरेट बेचने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया. एरिक सफाई देते रहे, लेकिन पुलिसवालों ने उसे दबोच लिया और ज़मीन पर पटक गया. दम घुटने से एरिक गार्नर की मौत हो गई.

# 9 अगस्त, 2014. मिसूरी में माइकल ब्राउन नाम के एक अश्वेत की हत्या कर दी गई. हत्या 26 साल के एक पुलिस अफसर डैरेन वेल्सन ने की थी. केस चला. लेकिन मिसूरी की ग्रैंड ज्यूरी ने डैरेन वेल्सन के खिलाफ केस चलाने से इन्कार कर दिया. इसके खिलाफ अमेरिका में प्रदर्शन तक हुए, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा.

# 13 जुलाई, 2019. लॉस एंजिल्स में 17 साल की एक लड़की हन्ना विलियम्स नकली बंदूक से एक पुलिस अफसर पर निशाना लगाने की कोशिश कर रही थी. पुलिस अधिकारी ने उसे असली बंदूक मान लिया और बिना सोझे समझे हन्ना की गोली मारकर हत्या कर दी.

# और अब 25 मई, 2020. अमेरिका में अश्वेत जॉर्ज फ्लायड की हत्या होती है और पूरा अमेरिका सुलग जाता है. इसकी वजह है वो वीडियो, जिसमें जॉर्ज फ्लायड की गर्दन पर पुलिस अधिकारी जूता रखे हुए है, जॉर्ज खुद को छोड़ने की गुहार लगाते हैं और दम तोड़ देते हैं. नतीजा ये है कि अमेरिका के 40 से ज्यादा शहरों में कर्फ्यू लगा है और हजारों लोग अब तक गिरफ्तार हो चुके हैं.

ये सिर्फ उदाहरण हैं. अब इन उदाहरणों को पढ़िए और एक रिसर्च के आंकड़ों को ध्यान से देखिए. ये रिसर्च कहती है-

# वॉशिंगटन पोस्ट की साल 2018 की एक रिपोर्ट बताती है कि श्वेतों की तुलना में दोगुने अश्वेत पुलिस की प्रताड़ना का शिकार बनते हैं.

# अगर अमेरिका में श्वेत और अश्वेत की हत्या होती है तो श्वेत लोगों की हत्याओं का केस सुलझने की दर ज्यादा है.

# अगर किसी अश्वेत ने श्वेत की हत्या कर दी है तो अश्वेत को फांसी होने के चांसेज 80 फीसदी से ज्यादा हैं. इसके अलावा शायद ही कभी ऐसा मौका हो जब अपराध में अश्वेत शामिल हो और उसकी गिरफ्तारी न हुई हो.

# अगर किसी श्वेत और अश्वेत को एक ही अपराध के लिए सजा हो रही हो, तो अश्वेत की सजा श्वेतों की तुलना में 20 फीसदी ज्यादा होगी.

ये सिर्फ वो आंकड़े और उदाहरण हैं, जिनमें पुलिसवालों ने अश्वेतों पर जुल्म किए हैं. बाकी अमेरिका के श्वेतों में ये धारणा आम है कि वो अश्वेतों से बेहतर हैं, उनकी नस्ल बेहतर है और अश्वेत उनके हमेशा से गुलाम रहे हैं. यही वजह है कि अमेरिका में हर साल 10 हजार से ज्यादा नस्लभेदी मामले दर्ज किए जाते हैं और इनके शिकार सिर्फ और सिर्फ अश्वेत होते हैं. रही सही कसर इस बार अमेरिका के श्वेत राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पूरी कर दी है.

ट्रंप ने ट्विट किया है और कहा है कि लूटपाट होते ही गोलियां चलनी शुरू हो जाती हैं. ये वो नारा है, जो अमेरिका के इतिहास में अश्वेतों पर फायरिंग के लिए कुख्यात रहे मायामी के पुलिस प्रमुख वॉल्टर हैडली और चुनाव में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जॉर्ज वैलस का नारा हुआ करता था. ये नारा उस दौर का है, जब अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग ने अश्वेतों को बराबरी का हक दिलाने के लिए नागरिक आंदोलन किए थे और श्वेत सरकारों ने इस आंदोलन को कुचलने की भरपूर कोशिश की थी.

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