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Opinion: भाषा या ज़ुबान की बिगाड़, राजनेता कभी-कभी महिलाओं के बारे में अपमानजनक टिप्पणियाँ क्यों करते हैं?

बिहार विधानसभा में मंगलवार को जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश किए जाने के बाद उस पर बहस में भाग लेते हुए, नीतीश कुमार ने कहा था, “महिलाओं की शिक्षा के कारण राज्य में प्रजनन दर 4.3% से घटकर 2.9% हो गई है, क्योंकि एक शिक्षित महिला यह सुनिश्चित करने में सक्षम है कि सेक्स का मतलब सिर्फ बच्चे पैदा करना नहीं है, ये सोच  जनसंख्या को नियंत्रण में रखने में मदद करता है.

 राजनीतिक प्रवचन के क्षेत्र में, अपमानजनक टिप्पणियों के उदाहरण, विशेष रूप से महिलाओं को लक्षित करने वाले, निराशाजनक और हैरान करने वाले दोनों हो सकते हैं. महिला शिक्षा और प्रजनन दर के बीच संबंध पर नीतीश कुमार का हालिया बयान एक मार्मिक उदाहरण है.  हालाँकि इस तरह की टिप्पणियों को आलोचनात्मक दृष्टि से देखना आवश्यक है, लेकिन उन अंतर्निहित कारकों की पड़ताल करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जो इस तरह की बयानबाजी को पैदा करने में योगदान करते हैं.

 राजनेता, सार्वजनिक शख्सियत के रूप में, सामाजिक व्यवस्था और उसके ताने बाने को बनाए रखने में महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं. उनके बयान, चाहे जानबूझ कर या  अनजाने  में जनता की राय को आकार देने की ताकत रखते हैं.  नीतीश कुमार की टिप्पणी के मामले में, प्रजनन दर पर ध्यान केंद्रित करना और यह निहितार्थ कि शिक्षित महिलाएं अनियोजित गर्भधारण को रोकती हैं, कुछ राजनेताओं के बीच प्रचलित मानसिकता और दृष्टिकोण के बारे में चिंताएं पैदा करती हैं.

 ऐसी टिप्पणियों की एक संभावित व्याख्या समाजों में अंतर्निहित ऐतिहासिक पुरुष प्रधान संरचनाओं में निहित है.  पारंपरिक लिंग भूमिकाएं अक्सर महिलाओं को प्राथमिक देखभालकर्ता के रूप में चित्रित करती हैं, उसकी ज़िम्मेदारी घर के चहारदीवारी में निहित है ऐसा देखना चाहती है, और घर की सीमा के भीतर उनकी भूमिकाओं पर जोर देती हैं.  जब राजनेता ऐसे बयान देते हैं जो महिलाओं की प्रजनन क्षमताओं को कम करते हैं, तो यह गहरे बैठे लैंगिक पूर्वाग्रह को दर्शाता है जो विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति के बावजूद कायम है.

 इसके अलावा, राजनीतिक चर्चा कभी-कभी कुछ खास मतदाता जनसांख्यिकी को आकर्षित करने की इच्छा से प्रेरित हो सकती है.  समाज के भीतर रूढ़िवादी या प्रतिगामी तत्वों से जुड़ने के प्रयास में, राजनेता लैंगिक भूमिकाओं के बारे में रूढ़िवादी विचारों को मजबूत करने का सहारा ले सकते हैं.  यह रणनीति, हालांकि लैंगिक समानता की समग्र प्रगति के लिए हानिकारक है, इसे चुनावी समर्थन हासिल करने के साधन के रूप में देखा जा सकता है. 
पश्चिमी देशो में रूढ़िवादी विचारधारा की पार्टी की आज भी अच्छी पकड़ है,जैसे अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी,यूरोप में ऐसी कई पार्टियां है जो  गर्भपात, गे मैरिज की विरोधी हैं.
  नीतीश कुमार की यह टिप्पणी जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पर बहस के संदर्भ में की गई थी.  लैंगिक मुद्दों के साथ जाति की गतिशीलता का अंतर्संबंध और पूर्वाग्रहों का एक जटिल जाल बना सकता है.  राजनेता, जानबूझकर या अनजाने में, अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए ऐसे बयानों का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं, भले ही इसके लिए अपमानजनक टिप्पणियों का सहारा लेना पड़े.

 मीडिया की सनसनीखेजता और 24/7 समाचार चक्र भी ऐसे बयानों को कायम रखने में भूमिका निभाते हैं.  विवादास्पद टिप्पणियाँ सुर्खियाँ बटोरती हैं और चर्चा उत्पन्न करती हैं, जिससे राजनेताओं को वह ध्यान मिलता है जो वे चाहते हैं.  यह एक फीडबैक लूप बनाता है जहां राजनेता जनता की नजरों में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए उत्तेजक टिप्पणियां करने के लिए प्रोत्साहित महसूस करते हैं.

 इस समस्या के समाधान के लिए प्रणालीगत और सामाजिक दोनों तरह के बदलावों की आवश्यकता है.  राजनेताओं को मजबूत तंत्र के माध्यम से उनके बयानों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, और राजनीतिक दलों को अपने सदस्यों के लिए लिंग-संवेदनशील प्रशिक्षण को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिए.  इसके अतिरिक्त, एक ऐसी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए जो लिंगवादी बयानबाजी को खारिज करती है, नागरिक समाज, मीडिया और शैक्षणिक संस्थानों के सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है.

 राजनीति में महिलाओं को सशक्त बनाना लैंगिक रूढ़िवादिता को खत्म करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है.  जब महिलाएं राजनीतिक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सक्रिय भागीदार होती हैं, तो अपमानजनक टिप्पणियों की संभावना कम हो जाती है.  इसके लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व में लैंगिक समानता के प्रति प्रतिबद्धता और राजनीति में महिलाओं के प्रवेश और प्रगति में बाधा बनने वाली बाधाओं को खत्म करने की आवश्यकता है.

  नीतीश कुमार की टिप्पणी वास्तव में अपमानजनक है, यह उन चुनौतियों की याद दिलाती है जो वास्तविक लैंगिक समानता प्राप्त करने में बनी रहती हैं.  ऐसे बयानों के पीछे के मूल कारणों को समझकर और प्रतिगामी विचारधाराओं को खत्म करने की दिशा में सक्रिय रूप से काम करके, समाज अधिक समावेशी और सम्मानजनक राजनीतिक प्रवचन की ओर बढ़ सकता है जो महिलाओं की भूमिका को कम करने के बजाय उत्थान करता है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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