BLOG: सत्ता भूगोल बदलने के साथ नहीं बदलता मर्द- NRI पतियों की मारी पत्नियां और उनका अंतहीन दर्द
ऐश्वर्य राय ने फिल्म प्रोवोक्ड में अपनाया था? 2006 की प्रोवोक्ड किरणजीत आहलूवालिया की सच्ची कहानी पर आधारित थी, जिसकी लीड किरदार ने 10 साल तक अपने पति के शोषण के तंग आकर 1989 में उसे जिंदा जला दिया था. पर ऐसी चीज़ें बाकी की औरतें करें, ये सही नहीं है. सामाजिक स्तर पर ये कोई रास्ता भी नहीं है. रास्ता यही है कि आप अपने दिमागी कचरे को साफ करें और औरतों को अपने बराबर का समझें.
औरतें संस्कारी कैसे बनती हैं. शादी करा दो, पति संस्कारी बना ही देगा. 1997 में अनिल कपूर-श्री देवी की फिल्म जुदाई में कैसे उर्मिला मातोंडकर शादी करते ही संस्कारी बन जाती हैं. शॉर्ट स्कर्ट से सीधे साड़ी लपेट लेती हैं. पब्लिक खुश! लेकिन अगर शादी के बाद लड़की न सुधरे, तो पति-परिवार मिलकर उसे ठोक-बजाकर संस्कारी बना सकता हैं. आप अपने दिमागी कचरे को साफ करें और औरतों को अपने बराबर का समझें. न देवी, न राक्षसनी. सिर्फ एक इंसान. अपने जैसी हाड़ मांस वाली-उन्हीं सपनों और हकीकत वाली, जैसे आप खुद हैं.
यूं डेटा देखने से तो ऐसा लगता है, एनआरआई लड़के सिर्फ टॉर्चर करने के लिए शादियां करते हैं. कुछ दिन पहले विदेश राज्य मंत्री वी.के.सिंह ने संसद में बताया था कि पिछले तीन सालों में एनआरआई पतियों से परेशान चार हजार से ज्यादा औरतों ने गुहार लगाई है. कोई दहेज के लिए सताई जाती है, किसी की आए दिन पिटाई होती है, कई के पति ही उनका रेप करते हैं. खराब बर्ताव तो कोई बड़ी बात नहीं है. वॉशिंगटन में भारतीय दूतावास के हवाले से यह खबर भी मिली थी कि ऐसी शिकायत करने वाली अधिकतर औरतें पंजाब, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात की हैं. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत एनआईपीसीसीडी भी इसकी पुष्टि करता है. इस संस्थान ने कुछ साल पहले ऐसी औरतों पर एक अध्ययन किया था जिन्हें उनके पतियों ने छोड़ दिया है.
अब सरकार एक ऐसा तरीका अपनाना चाहती है जिससे इन औरतों की मदद की जा सके. यूं विदेश मंत्रालय ऐसी औरतों की काउंसिलिंग करता है और उन्हें कानूनी मदद भी देता है- पैसे भी दिए जाते हैं. लेकिन यह तो शिकायत दर्ज कराने के बाद की सहायता है. प्रवासी भारतीय पतियों और उनके मम्मी-पापा का तो कुछ नहीं बिगड़ता. 2017 में विदेश मंत्रालय ने एक पैनल बनाया था जिसका काम यह बताना था कि एनआरआई पतियों के शोषण का शिकार बीवियों की मदद कैसे की जाए. पैनल ने सिफारिश की थी कि ऐसे पतियों का सबसे पहले पासपोर्ट जब्त होना चाहिए या उसे रद्द कर दिया जाना चाहिए. ऐसे मामलों को प्रत्यर्पण संधियों में भी शामिल किया जाना चाहिए. यह सिफारिश यह देखते हुए की गई थी कि अक्सर उन लड़कों के खिलाफ लीगल केस सिर्फ इसलिए नहीं किए जा सकते क्योंकि वे भारत लौटने से ही इनकार कर देते हैं. कुछ सिफारिशें महिला और बाल विकास मंत्रालय ने भी की थीं. उसके एक पैनल ने कहा था कि एनआरआई औरतों को दो पासपोर्ट दिए जाने चाहिए जिनमें से एक में उनकी शादी का प्रूफ हो. अक्सर एनआरआई पति विदेश पहुंचते ही बीवी का पासपोर्ट अपने पास रख लेता है.
एक्सपर्ट्स की मानें तो एनआरआई लड़कों के प्रति हमारा विशेष आग्रह भी लड़कियों को मुसीबत में डालता है. ललचाई आंखों से सात समुंदर पार के सपने देखना हमारे यहां आम बात है. सत्या नडेला और सुंदर पिचाई की कहानियां आंखों के सामने साकार होने लगती हैं. पढ़ने के लिए लड़के का सिलेक्शन विदेश में हो गया तो मानो हाथों में लड्डू आ गए. विदेशी यूनिवर्सिटी पहुंचे तो वa मेरिट में सबसे ऊपर. लड़का बाहर गया तो मम्मी-पापा राजा! उधर लड़का सेट हुआ, इधर मम्मी-पापा ने उसके लिए लड़की तलाशनी शुरू की. लड़का सेट क्या हुआ, लाइफ पार्टनर भी सेट कर ली. पर मम्मी-पापा की अपनी सेटिंग भी चलती रहती है. समता देशमाने जैसे सोशलॉजिस्ट कहते हैं कि लड़के अपने मम्मी-पापा को खुश करने के लिए शादियां कर लेते हैं लेकिन बीवी के साथ सेट होने की उनकी कोई मंशा नहीं होती. दिक्कत वहीं से शुरू होती है.
फिर भारतीय परवरिश का स्टाइल भी अनोखा ही है. बच्चों के हर फैसले में बड़े-सयानों की दखल बनी रहती है. लड़कों को अपनी मर्जी से चलाने के आदी बड़े-सयाने लड़के के बीवी को भी अपनी मर्जी से चलाना चाहते हैं. इधर लड़का भी चाहता है कि बीवी उसकी मर्जी से चले. कुल मिलाकर बीवी की हालत खराब हो जाती है. उसकी अपनी मर्जी स्वाहा हो जाती है. क्या मर्द सत्ता भूगोल बदलने के साथ बदलता है? बिल्कुल नही! आप सात समुंदर पार हों, या नदिया पार- सोचते वैसे ही हैं. औरतों को कंट्रोल करना चाहते हैं, उसकी देह और आजादी पर कुंडली जमाए बैठना चाहते हैं. चिल्लपों मचाते हैं, जब औरत उनकी गुंडई से डरती नहीं. ऐसा होता है तो भेड़ियो की तरह उन पर लपकते हैं.
यूं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज संसद के शीतकालीन सत्र में एनआरआई पतियों की यातना से बीवियों को बचाने वाला एक विधेयक लाने वाली थीं. लेकिन फिलहाल इस पर कोई बात नहीं की गई. ज्यादा जरूरी काम बाकी बचे थे, आरक्षण, नागरिकता वगैरह के. उनसे निपटा गया. औरतों की सुध बाद में ली जाएगी. वे कहां जाएंगी. आपके इर्द-गिर्द घूमती रहेंगी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार और आंकड़े लेखक द्वारा व्यक्तिगत तौर पर दिए गए हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्तियों के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार हैं.)