By: ABP News Bureau | Updated at : 06 Sep 2016 05:04 PM (IST)
नई दिल्ली: बुलेट ट्रेन आने में भले ही 7 साल लगें लेकिन रेलवे मंत्रालय जल्द ही देश में ऐसी ट्रेन लाने की तैयारी कर रहा है, जो पटरियों पर दौडती नहीं बल्कि हवा में उडती हुई नजर आएगी.
जी हां, बुलेट से भी दो कदम आग है. ये है मैग्लेव ट्रेन. एक घंटे में 500 किलोमीटर का सफर तय करने वाली मैग्लेव ट्रेन पर क्यों है पीएम मोदी की नजर. खास बात ये कि ट्रेन की इन नई तकनीक में दिलचस्पी रखने वाली कंपनियों के लिए EOI यानि एक्सप्रेशन ऑफ़ इंटरेस्ट मंगवाया था, जिसमें अमेरिका और स्विटरलैंड के अलावा भारत के 4 कंपनियों ने भी रूचि दिखाई है. कंपनियों को EOI के लिए 6 सितंबर यानि आज तक का ही मौका दिया गया था .
कैसे काम करती है है ये तकनीक? मैग्लवे ट्रेन को नाम मिला है इसकी तकनीक से, यानि मैग्नेटिक लेविटेशन तकनीक. मैग्नेटिक लेविटेशन में ट्रेन मे पटरियों और पहियों में मैग्लनेटिक फोर्स होता है. जब गाड़ी दौडती है तो ये मैग्नेटिक फोर्स के चलते ट्रेन पटरी से 1 से 6 इंच उपर उठ कर दौडती है, आसान शब्दों में कहें तो हवा में चलती है. ऐसे में फ्रिक्शन कम होता है औऱ ट्रेन को 500 किलोमीटर या इससे भी उपर की स्पीड पर रफ्तार बनाना आसान हो जाता है. यही वजह है कि इस मैगल्वे ट्रेन को हम उडती ट्रेन कह रहे हैं.
यह ट्रेन ना केवल सवारी को एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाएगी बल्कि मालवाहक भी बनेगी. रेलवे मंत्रालय के मुताबिक देश में जो तकनीक आमंत्रित की जा रही है. वो मैग्लेव टेक्निक एंट्रैक्शन तकनीक वाली होगी. रिपल्शन तकनीक पर चलने वाली ट्रेन महंगी होती है, लिहाजा इसे एंट्रैक्शन तकनीक पर चलाने की योजना है.
मैगलेव तकनीक दुनिया में कहां कहां है? मैग्लवे ट्रेन की राह में भी सबसे बडी चुनौती इसको बनाने में आने वाली लागत है. यही वजह है कि दुनिया के तमाम दिग्गज देशों ने मैग्लवे ट्रेन से परहेज ही किया है. रेल अधिकारियों की मानें तो बुलेट ट्रेन की ही तरह मैग्लवे ट्रेन बहुत खर्चीला प्रोजेक्ट है. 100 से 150 करोड रुपए में सिर्फ 1 किलोमीटर का ट्रैक बिछता है. बाकी आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं.
दुनियाभर में मैग्लेव ट्रेन की तकनीक चुनिंदा देशों के पास ही है. ये देश हैं जर्मनी, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और यूएसए. मैग्लेव तकनीक से ट्रेन चलाने का सपना जर्मनी, यूके और यूएसए जैसे कई देशों ने देखा, लेकिन तकनीकी कुशलता के बावजूद इसकी लागत और बिजली की खपत को देखते हुए ये सफल नहीं रही. दुनियाभर में कामर्शियल तरीके से ये सिर्फ तीन देशों चीन, दक्षिण कोरिया और जापान में ही चल रही हैं.
मैगलेव के आने पर भारत में क्या होगा? मैग्लेव ट्रेन अगर देश मे दौडती है तो लंबी दूरी का सफर में महज चंद घंटो में तय हो सकेगा. मसलन मैगलेव ट्रेन में बैठ आप महज 5 घंटे में दिल्ली से करीब 1400 किमीटर दूर मुंबई तक का सफर तय कर सकते हैं.
इस ट्रेन तो चलाने का जिम्मा पूरी तरह से सेलेक्टेंड कंपनी का ही है जिसमें ट्रेन संचालन से लेकर, स्टेशन, टिकटिंग, रख-रखाव सब शामिल होगा. भारतीय रेलवे इस प्रोजेक्ट में टेक्नोलॉजी पार्टनर होगा. मैग्लेव ट्रेन को लेकर रेलवे विदेशी कंपनी के साथ ज्वाइट वेंचर कंपनी भी बना सकती है मैग्लेव ट्रेन सिस्टम के लिए रेल मंत्रालय ने जो टेंडर आमंत्रित किया है, उसके मुताबिक भारत सरकार इस प्रोजेक्ट के लिए जरूरी जमीन देगी और संबंधित कंपनी को एलिवेटेड ट्रैक, डिजाइनिंग, मैग्लेव ट्रेन सिस्टम की डिजाइनिंग और डिमॉन्सट्रेशन का जिम्मा खुद उठाना पड़ेगा.
इसके लिए 200 से 500 किलोमीटर के ट्रैक के लिए टेंडर भरने वाली कंपनी को योजना देनी होगी और 10 से 15 किलोमीटर के ट्रैक पर अपने मैग्लेव ट्रेन सिस्टम को चलाकर दिखाना होगा. इस ट्रेन को 400 किलोमीटर से लेकर 500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलाया जाएगा.
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