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महेंद्रगिरि के लोकार्पण के साथ बढ़ी भारतीय नौसेना की मारक क्षमता, आनेवाले भविष्य की किसी चुनौती से निबटने के लिए अब हम तैयार

अरब सागर से पूर्वी अफ्रीका तक और हिंद-प्रशांत जो सीमा है, वहां जो हमारे व्यापारिक हित हैं, उनकी भी रक्षा नौसेना करती है. चाहे वह, समुद्री लुटेरों, दुश्मन देशों या फिर चीन की विस्तारवादी नीति से हो.

तकरीबन पखवाड़े भर पहले भारतीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू ने 17 अगस्त को वॉरशिप 'विंध्यगिरि' का लोकार्पण किया था. इसके साथ ही भारतीय नौसेना की क्षमता में काफी वृद्धि हुई थी. दरअसल, दुनिया के साथ भारत को भी यह समझ में आ रहा है कि अब सामरिक और रणनीतिक चालों का केंद्र हिंद-प्रशांत महासागर का ही क्षेत्र बनेगा. चीनी विस्तारवादी रवैए और तानाशाही ने वैसे भी इस इलाके में तनाव पहले से ही फैला रखा है. भारत इसी को ध्यान में रखकर अपनी तैयारी कर रहा है और 1 सितंबर को मुंबई के मजगांव डॉक से ऐसे ही एक और शक्तिशाली वॉरशिप महेंद्रगिरि को भी राष्ट्र को समर्पित कर दिया गया. यह भारतीय नौसेना के प्रोजेक्ट17ए का सातवां ऐसा वॉरशिप था. नौसैनिक इसे अब तक के वॉरशिप में सबसे खतरनाक और शक्तिशाली मान रहे हैं. भारत की नौसैनिक क्षमता लगातार दुनिया के सबसे घातक आक्रामक और रक्षात्मक वॉरशिप के शामिल होने से लगातार बढ़ रही है. 

शक्तिशाली और खतरनाक युद्धपोत

इन युद्धपोतों की एक विशेषता यह भी है कि ये शत्रुओं के रडार सिस्टम को चकमा दे सकती हैं, जो कॉम्बैट एयरक्राफ्ट या सर्विलांस के और किसी सिस्टम पर लगा हो. इनको तकनीकी भाषा में प्रोजेक्ट 17ए अल्फा फ्रिगेट्स कहते हैं और ऐसे सात युद्धपोत बने हैं. इसमें से चार एमडीएल ने बनाए हैं, जबकि तीन गार्डन रीच शिपबिल्डर्स नाम की कंपनी ने बनाए हैं. इसका मतलब यह है कि भारतीय नौसेना अब 'मेक इन इंडिया' का पूरा इस्तेमाल कर खुद को समृद्ध कर रहे हैं. वैसे भी, आंकड़ों के हिसाब से देखें तो भारतीय नौसेना सबसे अधिक 'आत्मनिर्भर' है. नौसेना में यह प्रतिशत 70 फीसदी तक है, जबकि सेना के दो अन्य अंगों की अब भी विदेशी साजोसामान पर काफी निर्भरता है, भले ही वह कम हो रही हो. प्रोजेक्ट 17ए फ्रिगेट्स प्रोजेक्ट 17 (शिवालिक क्लास) फ्रिगेट्स का  ही एक क्लास है, जिसमें बेहतर स्टील्थ फीचर्स, उन्नत हथियार, सेंसर और प्लेटफ़ॉर्म प्रबंधन सिस्टम हैं. एडवांस्ड स्टील्थ फ्रिगेट्स का डिज़ाइन भारतीय नौसेना के लिए तकनीकी रूप से उन्नत युद्धपोतों को डिजाइन करने में युद्धपोत डिजाइन ब्यूरो की ताकत को भी दिखाता है.

पहले इसे नौसेना प्रारूप निदेशालय (डायरेक्टोरेट ऑफ नेवल डिजाइन)  कहा जाता था. नौसेना की 'आत्मनिर्भरता' को मजबूत करने के लिए युद्धपोतों हेतु इन-हाउस डिजाइन ब्यूरो बनाया गया, जो बिना किसी बाहरी मदद के युद्धपोत का उत्पादन कर सकता है. साथ ही, यह भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भी बढ़ावा देगा. महासागरों में बढ़ती उपस्थिति के साथ ही अन्य देश भी, खासकर जो खाड़ी के देश हैं, भारत से अपनी नौसैनिक क्षमता बढ़ाने के लिए लगातार व्यापार करेंगे. यह भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार और सामिरक क्षमता को भी बढ़ावा देगा. प्रोजेक्ट 17ए का पहला फ्रिजेट 2019 में लांच हुआ था और केवल चार वर्षों में दो भारतीय कंपनियों ने सातवें फ्रिजेट को भी लोकार्पित कर दिया. यह हमारी सामरिक और वैज्ञानिक क्षमता का परिचायक है. अब जब सभी सातों फ्रिजेट समंदर में तैनात हैं, तो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में किसी भी दुश्मन की हिम्मत नहीं होगी कि वह भारत के हितों को नुकसान पहुंचाए. भारत के नौसैनिक वाणिज्य और दक्षिण चीन सागर में रणनीतिक महत्व के ठिकानों की सुरक्षा अब आसान हो गयी है. यहां तक कि मलक्का से हिंद महासागर में होनेवाली किसी आंतरिक आवाजाही को अगर भारत रोकना चाहे, तो अब यह भी संभव है. 

भारत है अब बड़ी सामुद्रिक शक्ति

समय जिस तरह बदल रहा है, आनेवाले समय में महासागर पर कब्जे की ही लड़ाई होगी और चीन इसको समझते हुए पहले ही से भारत को लगातार घेरने की कोशिश करता रहा है. उसके साथ ही भारत भी बीते एक दशक से अपनी प्रतिरक्षा को लेकर चौकस हुआ है. इसी को आगे बताते हुए सैन्य मामलों के विशेषज्ञ और मनोहर पर्रीकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के फेलो ओमप्रकाश दास कहते हैं, "अरब सागर से पूर्वी अफ्रीका तक और हिंद-प्रशांत जो सीमा है, वहां जो हमारे व्यापारिक हित हैं, उनकी भी रक्षा नौसेना करती है. चाहे वह, समुद्री लुटेरों से हो, दुश्मन देशों या फिर चीन की विस्तारवादी नीति से हो. जहां तक पाकिस्तान की बात है, तो वह तेजी से इस समय अपनी नौसेना का विकास कर रहा है. वह खासकर कॉर्बेट्स और फ्रिगेट्स पर जोर दे रहा है और कहा जा रहा है कि जिस रफ्तार से वह बढ़ रहा है, वह अगले दस से पंद्रह वर्षों में बहुत कुछ पा लेगा. चीन अपने तीसरे एयरक्राफ्ट-कैरियर पर काम कर रहा है, उसने पनडुब्बियां और पोत तैनात कर रखे हैं.

भारत के संदर्भ में देखें तो उसे घेरने की कोशिश कर रहा है, जिबुती में तो चीन का नौसैनिक अड्डा ही होगा. आनेवाले समय में पूरा ध्यान हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर ही आएगा. नौसेना सिर्फ रक्षा के लिहाज से ही अहम नहीं है, हम जानते हैं कि मालाबार एक्सरसाइज जैसे जो दूसरे एक्सरसाइज हैं, क्वाड है, आसियान है, उससे भारतीय नौसेना की रीच बढ़ी है". जाहिर है कि भारत को चीन के उस नए मैप का भी ख्याल रखना होगा, जिसके तहत वह पूरे दक्षिण चीन सागर को अपना बता रहा है. भारत को मलक्का से होनेवाले व्यापार को बचाने के लिए चौकन्ना होना पड़ेगा. भारत इस दिशा में प्रयासरत भी है. महेंद्रगिरि से पहले नीलगिरि, हिमगिरि, तारागिरि, उदयगिरि और विंध्यगिरि भी लोकार्पित हो चुके हैं. ये सातों युद्धपोत ब्रह्मोस से भी लैस हैं और ये किसी भी एंटी-शिप मिसाइट, फाइटर एयरक्राफ्ट, हेलिकॉप्टर और क्रूज मिसाइल से अपनी रक्षा कर सकते हैं, पनडुब्बी से बच सकते हैं. यह आनेवाले दिनों में शक्ति के समीकरणों को साधेगा और बदलेगा भी. 

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