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इंहेलेशन थेरेपी से आसानी से कर सकते हैं अस्थमा को कंट्रोल
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अस्थमा और इसकी उपचार पद्धति के बारे में विभिन्न भ्रांतियों को दूर करते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि इंहेलेशन थेरेपी इसके उपचार का सबसे कारकर और प्रभावी तरीका है. राष्ट्रीय राजधानी स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के पुल्मोलोजी व निद्रा विकार विभाग के प्रमुख डॉ. रनदीप गुलेरिया के मुताबिक, "इंहेल्ड कोरटिकोस्टेरॉयड थेरेपी (आईसीटी) अस्थमा को नियंत्रित करने में सबसे कारगर इलाज है. आईसीटी में दवा की बहुत कम डोज सीधे सूजन भरी सांस की नलियों में पहुंचती है. इसके साइड इफैक्ट्स भी सीमित होते हैं. ओरल दवा का डोज आईसीटी के मुकाबले कई गुना ज्यादा होता है. ज्यादा दवा का डोज शरीर के अन्य अंगों में भी जाता है, जिसे दवा की जरूरत नहीं होती है. इसके साइड इफैक्ट्स की आशंका भी अधिक होती है."
इस साल 3 मई तो विश्व अस्थमा दिवस पर ऐसे मरीजों को सामने लाया जाएगा, जो अस्थमा व इससे संबद्ध भ्रांतियों के खिलाफ विजेता बनकर उभरे हैं.
अस्थमा को नियंत्रित करने में सबसे बड़ी चुनौती दवा का अनियमित सेवन है. लोग अक्सर लक्षण नजर न आने पर कुछ समय बाद ही दवा छोड़ देते हैं. लेकिन लक्षण न दिखने का मतलब अस्थमा मुक्त होना नहीं है. इसके गंभीर परिणाम सामने आते हैं और इसलिए दवा छोड़ने से पहले चिकित्सक का परामर्श आवश्यक होता है.
डॉ. गुलेरिया के अनुसार, "अस्थमा दीघर्कालिक बीमारी है, जिसे लंबे समय तक इलाज की जरूरत होती है. कई रोगी जब खुद को बेहतर महसूस करते हैं तो इंहेलर लेना छोड़ देते हैं. यह खतरनाक हो सकता है, क्योंकि आप उस इलाज को बीच में छोड़ रहे हैं, जिससे आप फिट और स्वस्थ रहते हैं. रोगियों को इंहेलर छोड़ने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए. अपनी मर्जी से इंहेलर छोड़ना जोखिमभरा हो सकता है."
सफदरजंग अस्पताल के सीनियर चेस्ट फिजिशयन डॉ. एम. के. सेन कहते हैं, "मैं रोजाना 10-15 रोगियों से मिलता हूं, जिन्हें न सिर्फ बीमारी बल्कि दवाई को जारी रखने की सलाह दी जाती है. अक्सर देखा गया है कि कुछ समय बाद लोग दवा लेने में आनाकानी करने लगते हैं. ऐसे लोगों की दर करीब 70 फीसदी है."
रोगियों द्वारा इंहेलर लेने से आनाकानी करने की वजह के बारे में पूछे जाने पर डॉ. सेन ने कहा, "इसके कई कारण हैं. इनमें दवा की कीमत, साइड इफैक्ट्स, इसे लेकर भ्रांतियां और सामाजिक अवधारणाएं शामिल हैं."
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