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A Simple Murder Review: हाथ आए पर मुंह को न लगे जैसी मर्डर कॉमेडी, न हंसी आती है और न पैदा होता है रोमांच

यह दो नावों की सवारी करती कहानी है. जिसमें कॉमेडी और थ्रिल एक साथ पैदा करने की कोशिश हुई है. एक गलत मर्डर कई गलत सिलसिले पैदा कर देता है. लेखक-निर्देशक इन गलतियों से पैदा होने वाली परिस्थितियों को संभालने में मात खा गए. सोनी लिव पर अब तक आई वेब-कहानियों में यह सीरीज संभवतः सबसे कम मनोरंजक है.

पिछले साल बरेली (उत्तर प्रदेश) के विधायक राजेश मिश्र की बेटी साक्षी ने अपने प्रेमी अजितेश से शादी के बाद मीडिया में वीडियो जारी करके आरोप लगाया था कि हम दोनों को पिता से जान का खतरा है. मामला ऑनर किलिंग का बनता था. सात कड़ियों की वेबसीरीज अ सिंपल मर्डर इसी आइडिये से शुरू होती है और अन्य किरदारों की कहानियों के संग जलेबी की तरह जालीदार हो जाती है. मगर इसमें रस नहीं है. कहानियों की जालियों से बीच-बीच में चूहे झांकते हैं और लेखक-निर्देशक की क्रिएटिविटी को कुतर जाते हैं. अंत में एंटरटनमेंट के नाम पर खराब हुए समय की चिंदिंया आपके हाथों में बची रह जाती हैं. अ सिंपल मर्डर न तो ठीक-ठीक क्राइम थ्रिलर बन पाती है और न कॉमेडी.

बीते महीने सोनी लिव पर स्कैम 1992 जैसी बेहतरीन वेबसीरीज देखने के बाद यहां आप निराश होते हैं. गुल्लक, योर ऑनर, अनदेखी और अवरोध जैसी कहानियां लाने वाले इस ओटीटी की यह संभवतः सबसे कमजोर ओरीजनल सीरीज है. बीती सदी के साठ-सत्तर के दशक वाले अमेरिकी-ब्रिटिश नाटकों जैसी सीरीज अ सिंपल मर्डर में स्क्रीन पर रंगमंच का गहरा प्रभाव दिखता है. ऐक्टर स्क्रीन के बजाय स्टेज वाला अभिनय करते हैं. बैकग्राउंड म्यूजिक भी गुजरे अतीत का लगता है. सीरीज की रफ्तार बेहद सुस्त है और क्लामेक्स के करीब पहुंची आखिरी दो कड़ियों से पहले कहानी कहीं नहीं बांधती.

A Simple Murder Review: हाथ आए पर मुंह को न लगे जैसी मर्डर कॉमेडी, न हंसी आती है और न पैदा होता है रोमांच

प्रोड्यूसर जार पिक्चर्स की अ सिंपल मर्डर में एक से अधिक मर्डर हैं मगर क्राइम की तरह नहीं. कॉमेडी की तरह. लेखक-निर्देशक दो नावों की सवारी करते हैं और सबको लेकर डूब जाते हैं. ऑनर किलिंग का इशारा करती कहानी में विधायक पिता एक क्रमिनल पंडित (यशपाल शर्मा) को बेटी और उसके प्रेमी की सुपारी देता है. पंडित यह सुपारी गलत आदमी को दे देता है. सुपारी लेने वाला गलत टारगेट का मर्डर कर देता है. इस तरह एक के बाद हुई दूसरी गलती, तीसरी को जन्म देती है. यह सिलसिला चलता है और आप जान जाते हैं कि जो कुछ हो रहा है, वह गलत है. जब तक लेखक-निर्देशक को भी अपनी गलती का एहसास होता है तब तक देर चुकी होती है. अ सिंपल मर्डर में ज्यादातर जगहों पर गोंद की जगह पानी है और दर्शक अपनी जगह पर चिपक नहीं पाता. यहां ह्यूमर भी हंसाने वाला नहीं बल्कि फिस-फिस की हंसी टाइप का है. जिसमें देखने वाले को ही पता नहीं चलता कि क्या वह हंस रहा है. यह थ्रिलर-कॉमेडी हाथ आए पर मुंह को न लगे जैसी है यानी देखें तो हंसी भी न आए और न रोमांच ही हो.

कहानी में घर से भागी हिंदू विधायक की लड़की का प्रेमी मुस्लिम है. देश की राजनीति में लव जिहाद क्रमशः बड़ा मुद्दा बन रहा है और एक राज्य में इसके लिए पांच साल कैद की सजा का भी प्रावधान तय करने की बात है. कुछ लोग सजा को दस तक बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. सीरीज में हत्या की सुपारी के मुख्य कथानक के साथ पति-पत्नी, मनीष (मोहम्मद जीशान अयूब) और ऋचा (प्रिया आनंद) की जिंदगी का समानांतर ट्रैक है. मनीष संतोषी जीव है और अपना स्टार्टअप शुरू करके जिंदगी संवारने की कोशिश में है. वहीं ऋचा का ख्वाब है नोटों की सेज पर सोना और नोटों के हार पहनना. मनीष से नाराज ऋचा उसे अपने पास भी नहीं आने देती मगर अपने बॉस से रिश्ते बनाती है. धन का लालच इस कहानी का दूसरा सिरा है. मनीष के अतिरिक्त अन्य किरदार धन-लालच में एक-दूसरे को धोखा देने से बाज नहीं आते और चढ़ते-उतरते घटनाक्रम में दो करोड़ रुपये के बैग की एंट्री होती है. शास्त्रों में लिखा है कि लक्ष्मी चंचल होती है. अब सवाल यह कि एक से दूसरे हाथ में जाता लक्ष्मी-बैग अंत में किसके हाथ में टिकेगा. यहां लेखक-निर्देशक ने किरदारों के बजाय परिस्थितियों से कॉमेडी पैदा करने की कोशिश की और नाकाम रहे.

A Simple Murder Review: हाथ आए पर मुंह को न लगे जैसी मर्डर कॉमेडी, न हंसी आती है और न पैदा होता है रोमांच

स्क्रिप्ट और ऐक्टिंग पर रंगमंच का असर होने की वजह से अ सिंपल मर्डर जरूरत से ज्यादा ड्रामाई हो जाती है. कई जगह लगता है कि निर्देशक ने ऐक्टरों को स्वतंत्रता नहीं दी और अपने इशारों पर काम कराया. इसका सबसे खराब असर मोहम्मद जीशान अयूब पर दिखा है. वह अच्छे अभिनेता हैं मगर यहां लीड होने के बावजूद एक भी सीन में असर नहीं छोड़ते. यही सुशांत सिंह के साथ हुआ. अमित सयाल का किरदार जरूर कुछ ठीक है लेकिन जो ऐक्टर अपने अभिनय और संवादों से छाप छोड़ता है, वह है इंस्पेक्टर बने गोपाल दत्त. चूंकि सीरीज में घटनाएं अक्सर उल्टे नतीजे देती हैं, अतः धीरे-धीरे आपको आगे की कहानी का आभास होने लगता है. कथा-पटकथा का ढीलापन अ सिंपल मर्डर की सबसे कमजोर कड़ी है. अगर आप हंसाने और रहस्य-रोमांच-रफ्तार वाली कहानियां पसंद करते हैं तो इस वेबसीरीज से निराशा होगी. लेकिन आपको घड़ी की सुस्त रफ्तार पसंद है और जीवन को किसी ठीक-ठाक जगह निवेश करने का इरादा नहीं है तो यहां सिंपल ढंग से अपने समय का मर्डर कर सकते हैं.

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