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UPPCL: पीएफ घोटाले में तीन IAS अधिकारियों को बड़ी राहत, इस वजह से सीबीआई को नहीं मिली पूछताछ की अनुमति

तत्कालीन चेयरमैन संजय अग्रवाल के जो दस्तखत मिले हैं वे फर्जी हैं. ये बात फॉरेंसिक जांच में पुष्ट हुई. इसी आधार पर संजय अग्रवाल को राहत मिली.

यूपी पावर कारपोरेशन लिमिटेड में हुए 22 अरब के पीएफ घोटाले में 3 आईएएस अधिकारियों को शासन स्तर से बड़ी राहत मिली है. शासन ने इन तीन आईएएस के खिलाफ जांच करने के लिए सीबीआई को अनुमति नहीं दी है. सीबीआई ने इस घोटाले को लेकर शासन से यूपीपीसीएल के तत्कालीन चेयरमैन संजय अग्रवाल, आलोक कुमार और तत्कालीन एमडी अपर्णा के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी थी. 

मचा था हड़कंप
जब 2019 में यह घोटाला सामने आया तो प्रदेश में ही हड़कंप नहीं मचा बल्कि पूरे देश में चर्चा हुई. पीएफ घोटाला जब सामने आया तो EOW को इसकी जांच सौंपी गई. बाद में यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. हाल ही में सीबीआई ने शासन से इन तीन आईएएस के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी थी. 

संजय अग्रवाल को क्यों मिली राहत
सूत्रों की माने तो नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग ने तथ्यों की पड़ताल की तो सामने आया कि जिस बोर्ड बैठक में ज्यादा रिटर्न देने वाली कंपनियों में निवेश का फैसला हुआ उसके कार्यवृत्त पर तत्कालीन चेयरमैन संजय अग्रवाल के जो दस्तखत मिले हैं वे फर्जी हैं. ये बात फॉरेंसिक जांच में पुष्ट हुई. इसी आधार पर संजय अग्रवाल को राहत मिली. 1984 बैच के आईएएस संजय अग्रवाल रिटायर हो चुके हैं.

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आलोक कुमार को क्यों मिली राहत
इसके बाद चेयरमैन बने आलोक कुमार के खिलाफ भी शासन ने जांच की अनुमति नहीं दी. इसके पीछे वजह यह है कि आलोक कुमार के इससे संबंधित एक कागज पर जो दस्तखत मिले उन्हें गुड फेथ में किया हुआ माना गया. यानी अलोक कुमार ने यह दस्तखत पूर्ववर्ती चेयरमैन के दस्तखत देखकर किये थे. मतलब पूर्ववर्ती अधिकारी पर भरोसा करके दस्तखत किया गया. 

अपर्णा को क्यों मिली राहत
बात करें तत्कालीन एमडी अपर्णा यू की तो उनके दस्तखत एक बैलेंस शीट पर मिले. इसे लेकर शासन का मानना है कि बैलेंस शीट से ये पता नहीं चलता कि राशि कहां निवेश की गई है. ऐसे में उनका भी कोई दोष नहीं बनता. वर्तमान में आलोक कुमार केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर है जबकि अपर्णा यू उत्तर प्रदेश में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में सचिव हैं.

कई अधिकारी जा चुके हैं जेल
यूपीपीसीएल में हुए 22 अरब के घोटाले में कई अफसर जेल जा चुके हैं. मामले में तत्कालीन एमडी एपी मिश्रा, निदेशक वित्त सुधांशु त्रिवेदी और पीके गुप्ता को जेल भेजा गया. वही ब्रोकरेज फर्म के एजेंट और सीए के खिलाफ भी कार्रवाई की गई. यह घोटाला तब सामने आया जब 10 जुलाई 2019 को पावर कॉरपोरेशन के तत्कालीन चेयरमैन आलोक कुमार को एक गुमनाम पत्र मिला. इसके आधार पर हुई जांच में सामने आया की जीपीएफ और सीपीएफ के ट्रस्टों ने गाइडलाइन का पालन नहीं किया. 

गाइडलाइन का पालन नहीं हुआ
गाइडलाइंस के अनुसार 5 फीसद तक का निवेश सूचीबद्ध बैंकों द्वारा जारी 1 वर्ष की अवधि तक की सावधि जमा योजना में ही किया जा सकता है लेकिन ट्रस्ट के अफसरों ने इसका पालन नहीं किया. उन्होंने हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के फिक्स्ड डिपॉजिट पर दिसंबर 2016 से ही निवेश शुरू कर दिया था. जांच में सामने आया की ट्रस्ट की धनराशि का 99 फीसद से अधिक 3 हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों में ही निवेश कर दिया गया. इसमें 65 फीसदी तो अकेले डीएचएफसीएल में निवेश हुआ था.

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