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Exclusive: 'अनारकली' की जुदाई और जेल की तन्हाई ने सलीम को बना दिया शायर, जानें शबनम के आशिक के 17 दिलचस्प किस्से

सलीम की खुद की जिंदगी दांव पर है, लेकिन उसे खुद से ज्यादा अपनी अनारकली की जिंदगी की फिक्र है. सलीम शबनम की सूरत देखने के लिए तड़पता रहता है. उसने महबूबा शबनम और उसकी जुदाई पर शेर भी लिखे हैं.

प्रयागराज: अमरोहा के बावनखेड़ी में तकरीबन 13 साल पहले अपने माता-पिता समेत परिवार के सात लोगों के सनसनीखेज कत्ल के मामले में फांसी की सजा पाने वाली शबनम के प्रेमी सलीम को भी मौत की सजा मिली हुई है. सलीम इन दिनों प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में बंद हैं. डेथ वारंट जारी होने पर सलीम को इसी जेल में फांसी पर लटकाया जाएगा. शबनम की तरह ही सलीम के पास भी फांसी की सजा से बचने के कानूनी विकल्प अब न के बराबर बचे हैं.

सलीम की खुद की जिंदगी दांव पर है, लेकिन उसे खुद से ज्यादा अपनी अनारकली की जिंदगी की फिक्र है. वो दिन-रात खुदा की बारगाह में सजदे कर इबादत करते हुए उनसे शबनम की जिंदगी बख्शने की मिन्नतें करता रहता है. शबनम को लेकर सलीम की बेचैनी और तड़प को देखते हुए जेल प्रशासन ने उसे हाई सिक्योरिटी बैरक में ट्रांसफर कर दिया है. शबनम की जुदाई और जेल की तन्हाई ने सलीम को शायर भी बना दिया है. सलीम ने कुछ दिनों पहले जेल के सीनियर सुप्रिटेंडेंट को एक चिट्ठी भी लिखी है. प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल ने डेथ वारंट जारी होने की सूरत में सलीम को फांसी दिए जाने की तैयारी भी शुरू कर दी है. बरसों से बंद पड़े फांसी घर को नये सिरे से तैयार करा दिया गया है. नैनी सेंट्रल जेल में कैसे बीत रही है सलीम की जिंदगी, शबनम की जुदाई में कैसे तड़प रहा है सलीम और उसे फांसी देने की क्या है तैयारी, जानिए हमारे 17 प्वाइंट्स की इस Exclusivve रिपोर्ट में. हर प्वाइंट में आपको पढ़ने को मिलेगी दिलचस्प जानकारी.

खुद को मिली है सजा-ए-मौत, फिर भी अपनी अनारकली के लिए तड़प रहा है जेल बंद ये सलीम 10 महीने के दुधमुंहे बच्चे समेत सात लोगों के कत्ल के मामले में शबनम के आशिक सलीम को भी मौत की सजा मिली हुई है. अमरोहा की सेशन कोर्ट ने एक जून 2009 को सलीम और शबनम को फांसी की सजा सुनाई थी. इसके बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी इनकी सजा को बरकरार रखा. सलीम इन दिनों प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में बंद है. यहां वो खुद की जिंदगी से ज्यादा अपनी महबूबा शबनम की फांसी को लेकर ज्यादा परेशान है. वो शबनम के बारे में हर जानकारी पाना चाहता है. उससे मिलने और उसकी सूरत देखने के लिए तड़पता रहता है. उन अखबारों और मैग्जीनों को संभालकर अपने पास रखता है, जिसमें शबनम की कोई तस्वीर या उससे जुड़ी खबर छपी होती है.

शबनम के लिए उसकी मोहब्बत और तड़प अब भी पहले जैसी ही है. उसकी खुद की जान सांसत में है, फिर भी शबनम की ज़िंदगी बचाने के लिए ज़्यादा इबादत करता है. सलीम ये जानने के लिए भी बेकरार रहता है कि शबनम अब उसके बारे में क्या सोचती है. वो चाहता है कि उसे भले ही फांसी की सजा हो जाए, पर शबनम की सजा जरूर बदल जानी चाहिए. शबनम को लेकर सलीम की इसी बेकरारी और तड़प की वजह से प्रयागराज का जेल प्रशासन खास सतर्कता बरत रहा है. वो दूसरे बंदियों से अक्सर ही शबनम के बारे में बातें करना पसंद करता है. दूसरे कैदियों से भी वो शबनम की सलामती के लिए दुआ करने को कहता है. शबनम की दया याचिका खारिज होने के बाद से वो पूरे दिन गुमसुम सा रहता है.

शबनम की जुदाई और जेल की तन्हाई ने सलीम को बना दिया शायर प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में बंद सलीम ज़्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हैं. वह महज़ 5वीं पास बताया जाता है. ये अलग बात है कि अलग-अलग जेलों में रहते हुए उसने नए सिरे से हिन्दी और अंग्रेजी की बेसिक पढ़ाई ठीक से कर ली है. कम पढ़ा-लिखा होने के बावजूद सलीम इन दिनों जेल में कविताएं लिखता है. साथी बंदियों के मुताबिक उसने तमाम शेर भी लिखे हैं. उर्दू के लफ्जों के इस्तेमाल वाले शेरों को वो हिन्दी में कागज पर लिखता है. इनमें से कुछ शेर उसकी अपनी महबूबा शबनम और उसकी जुदाई पर हैं तो कुछ दूसरे मौजू यानी विषयों पर. पिछले दो सालों में उसने तकरीबन दर्जन भर कविताएं भी लिखी हैं. हालांकि इन कविताओं में तुकबंदी ही ज़्यादा है.

जेल के सीनियर सुप्रिटेंडेंट पीएन पांडेय के मुताबिक सलीम को उसके हालात ने कवि और शायर बना दिया है. उनके मुताबिक वो अपनी रचनाएं अक्सर हाई सिक्योरिटी बैरक में बंद दूसरे बंदियों को भी सुनाता है. अपनी रचनाओं के लिए उसने अलग फाइल भी बना रखी है. कहा जा सकता है कि सात खून करने के बाद भी प्रेमिका शबनम से मिली जुदाई और जेल की तन्हाई ने ही उसे रेडीमेड शायर और कवि बना डाला है. अपनी ये रचनाएं वो शबनम तक भिजवाने के साथ ही इसे किसी मैगजीन या रिसाले में छपवाने की भी फिराक में है.

शबनम को फांसी से बचाने के लिए दिन-रात करता रहता है इबादत शबनम के इश्क में सात खून करने से पहले सलीम ज़्यादा धार्मिक नहीं था. वो सिर्फ जुमे की नमाज़ पढता था और कभी कभार ही रोज़े रखता था. जेल के शुरुआती सालों में तो वो पूरी तरह नास्तिक सा हो गया था, लेकिन हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से भी फांसी की सज़ा बरकरार रहने के बाद वो पूरी तरह डर गया है. उसे खुद की ज़िंदगी की फ़िक्र तो होने ही लगी है, लेकिन उससे ज़्यादा वो अपनी अनारकली यानी शबनम के जीवन को लेकर परेशान रहता है. शबनम के साथ ही खुद की सलामती के लिए सलीम अब पूरी तरह धार्मिक हो चुका है.

प्रयागराज की जेल की हाई सिक्योरिटी बैरक में वो रोज़ाना पांच वक़्त की नमाज़ अदा करता है. कुरान की तिलावत करता है. खुदा की बारगाह में सजदे कर तिलावत करता है. तस्वीह के ज़रिए अल्लाह के नाम का जाप करता है. ज़्यादातर वक़्त खुदा की इबादत में बिताता है. अपने सिर पर कभी वो रुमाल बांधे रहता है तो कभी टोपी लगाकर रखता है. जेल के सीनियर सुप्रिटेंडेंट पीएन पांडेय के मुताबिक़ ये भारतीय संस्कृति और इंसानी स्वभाव में है कि मुश्किल वक़्त में हर तरफ के दरवाजे बंद होने के बाद लोग भगवान को ही याद करते हैं. सलीम को भी ऐसा करने से आत्मबल मिलता है. खुद की और शबनम की ज़िंदगी की सलामती के लिए ही वो दिन-रात इबादत करते हुए मिन्नतें करता रहता है.

दिखाई ऐसी दीवानगी कि डालना पड़ा हाई सिक्योरिटी बैरक में तकरीबन 13 साल का वक़्त जेल में बिताने और फांसी की सज़ा मिलने के बाद भी सलीम के सिर से शबनम के इश्क़ का भूत नहीं उतरा है. राष्ट्रपति के यहां से शबनम की दया याचिका खारिज होने के बाद सलीम काफी परेशान हो उठा था. वो चिड़चिड़ा सा हो गया था और कई बार उसने दूसरे बंदियों के साथ बेवजह विवाद कर लिया था. शबनम के प्रति दीवानगी में वो किसी दूसरे बंदी या खुद को कोई नुकसान न पहुंचा डाले, इसके लिए जेल प्रशासन ने उसे सामान्य बंदियों से अलग कर हाई सिक्योरिटी बैरक में शिफ्ट कर दिया.

जेल के सीनियर सुप्रिटेंडेंट पीएन पांडेय के मुताबिक़ हाई सिक्योरटी बैरक में वैसे तो सभी बंदियों की निगहबानी की जाती है, लेकिन सलीम के हालात को देखते हुए उस पर ख़ास निगरानी कराई जा रही है. वो खुद सीसीटीवी कैमरों के ज़रिए उसकी मॉनीटरिंग करते रहते हैं. सलीम की बैरक की रोज़ाना तलाशी कराई जाती है. हाई सिक्योरिटी बैरक में सलीम को सुबह और शाम कुछ घंटों के लिए उसी बैरक में दूसरे बंदियों के साथ मिलने जुलने का मौका दिया जाता है. इसके साथ ही जेल की तरफ से उसे बचे हुए कानूनी क़दमों के इस्तेमाल के बारे में जानकारी दी जाती है. उसे उसके वकीलों और संस्थाओं द्वारा भेजे गए साहित्य को जांच के बाद उसे पढ़ने के लिए दिया जाता है. उसे पूरी तरह से सामान्य रखने के लिए कई दूसरे कदम भी उठाए जाते हैं.

सलीम का दावा, अल्लाह की अदालत से जरूर मिलेगा इंसाफ शबनम के आशिक सलीम को अब इस बात का एहसास हो गया है कि फांसी से बचने के कानूनी रास्ते अब उनके लिए तेजी से बंद होते जा रहे हैं. ऐसे में उसे अब किसी चमत्कार ही ही उम्मीद है. सलीम अक्सर ही दूसरे बंदियों व जेल कर्मचारियों से ये कहता रहता है कि कानूनी अदालत ने उसको और उसकी प्रेमिका शबनम को भले ही फांसी की सज़ा दे रखी हो, लेकिन उसे इस बात की पूरी उम्मीद है कि अल्लाह की अदालत से उन्हें इंसाफ जरूर मिलेगा और उनकी फांसी की सज़ा भी जरूर बदलेगी. दरअसल, सलीम खुद को गुनहगार नहीं मानता है. उसका मानना है कि अगर सिस्टम और समाज ने उनके रिश्ते में अड़ंगा न लगाया होता तो वो भी खुशहाल ज़िंदगी जी रहे होते. किसी चमत्कार की आस में ही सलीम इन दिनों पूरी तरह धार्मिक हो गया है. सलीम का दावा है कि दुनिया और क़ानून की नज़र में उनके जज़्बात के लिए भले ही कोई जगह न हो, लेकिन अल्लाह उनकी नीयत कोजज़रूर समझेगा और उनके साथ कोई नाइंसाफी नहीं होने देगा.

काउंसलिंग के जरिए किस तरह हो रही सलीम को अवसाद से बचाने की कोशिश जेल में बंद सलीम को खुद से ज़्यादा अपनी महबूबा शबनम की ज़िंदगी की फ़िक्र है. शबनम की दया याचिका राष्ट्रपति के यहां से खारिज होने के बाद वो बेचैन हो उठा है. वो लगातार तड़पता रहता है. उसकी मानसिक स्थिति पर भी इसका कुछ असर जरूर पड़ा है. ऐसे में जेल प्रशासन लगातार उसे सामान्य बनाए रखने की कोशिश में है. जेल के सीनियर सुप्रिटेंडेंट पीएन पांडेय के मुताबिक़ सलीम को ऐसा वातावरण मुहैया कराया जा रहा है, जिसमें उसे कम से कम मानसिक तनाव हो. लगातार उसकी काउंसलिंग कराई जा रही है. उसे अवसाद से बचाने के जतन किए जा रहे हैं. उसे तमाम तरह के प्रेरक साहित्य और अखबार भी मुहैया कराए जाते हैं.

काउसंलिंग में उसे ये भरोसा दिलाया जाता है कि खुद उसके और शबनम के लिए फांसी से बचने के रास्ते अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं. उसे मानवाधिकार के लिए काम करने वाली तमाम संस्थाओं के प्रयासों के बारे में भी जानकारी दी जा रही है. इसके साथ ही उसे वकीलों से भी संपर्क कराया जाता है. ये कवायद की जाती है कि डिप्रेशन में आकर वो कोई गलत कदम उठाकर खुद को ही कोई नुकसान न पहुंचा ले.

सलीम ने आखिर जेल से किसे और क्यों लिखी चिट्ठी  शबनम की दया याचिका खारिज होने के बाद सलीम जब तनाव में रहने लगा और उसके व्यवहार में फर्क सा नज़र आने लगा तो प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल के प्रशासन ने उसे सामान्य बंदियों से अलग कर हाई सिक्योरिटी बैरक में डाल दिया. इससे सलीम और भी तिलमिला गया. कुछ दिन बाद ही उसने जेल के सीनियर सुप्रिटेंडेंट पीएन पांडेय को एक चिट्ठी लिखी. इस चिट्ठी में उसने खुद को हाई सिक्योरिटी बैरक में भेजे जाने पर सवाल उठाए. अपने अच्छे व्यवहार की दुहाई दी. सीनियर सुप्रिटेंडेंट को बरेली जेल में भी इसी तरह साथ होने की बात याद दिलाई.

पीएन पांडेय के मुताबिक़ इस चिट्ठी के बाद उन्होंने खुद सलीम से बात की. उसे यह भरोसा दिलाया कि हाई सिक्योरिटी बैरक में उसे किसी सज़ा के तौर पर नहीं भेजा गया है, बल्कि उसकी खुद की सुरक्षा के लिए यह कदम उठाया गया है. अगर सज़ा देनी होती तो उसे तनहाई बैरक में भेजा जाता. उनका दावा है कि इससे सलीम संतुष्ट हो गया था और उसे अब इसकी कोई शिकायत नहीं है. सलीम को एहसास दिलाने के लिए ही उसे सुबह छह से दोपहर बारह और दोपहर तीन से शाम सात बजे तक कोठरी से निकलकर बैरक के अंदर आज़ादी के साथ घूमने की आज़ादी दी जाती है.

दूसरे कैदियों और बंदी रक्षकों की मदद कर जानता है प्रेमिका और बेटे का हाल, हो जाता है भावुक सलीम इन दिनों खुद बड़ी मुसीबत में है. मौत कभी भी उस पर झपट्टा मारकर उसकी ज़िंदगी को खत्म कर सकती है. इसके बावजूद वो जेल में बंद दूसरे बंदियों की हर मुमकिन मदद करने में पीछे नहीं रहता. वो दूसरे कैदियों के साथ ही जेल के बंदी रक्षकों और दूसरे कर्मचारियों से भी उनका और उनके परिवार का हालचाल पूछता रहता है. बीमारी की हालत में सहयोग और देखभाल करता है. खुद ज़्यादा पढ़ा लिखा नहीं है, लेकिन दूसरे बंदियों की एप्लीकेशन लिखता रहता है. जेल के बंदी रक्षकों से अपनी प्रेमिका शबनम और बेटे ताज के बारे में मीडिया में आई जानकारियां हासिल करता रहता है. शबनम और बेटे ताज के बारे में कोई भी जानकारी मिलने पर अक्सर वो भावुक भी हो जाता है.

नए सिरे से तैयार हुआ फांसी घर, नई लकड़ी और लीवर लगाए गए, होती रहती है रिहर्सल सलीम की दया याचिका अभी विचाराधीन है. महिला होने के बावजूद जब उसकी प्रेमिका शबनम की दया याचिका खारिज हो चुकी है तो ऐसे में उसे कोई राहत मिलने की उम्मीद बेहद कम ही है. उसके पास कोई ठोस ग्राउंड भी नहीं है. ऐसे में डेथ वारंट जारी होने पर सलीम प्रयागराज की जिस नैनी सेंट्रल जेल में बंद है, उसे वहीं फांसी दी जाएगी. जेल प्रशासन ने इसके लिए अपना होमवर्क भी पूरा कर लिया है. प्रयागराज की जेल में पिछले 32 सालों से किसी को फांसी नहीं हुई थी. फांसी घर बंद पड़ा था, लेकिन अब इसे नए सिरे से तैयार करा दिया गया है. फांसी घर कैम्पस में झाड़ियों को साफ़ कराकर वहां फूल और पौधे लगा दिए गए हैं. फांसी देने के बनाए गए तख़्त की लकड़ियां और लीवर को पूरी तरह बदलकर नया लगा दिया गया है. बीच-बीच में डमी के साथ रिहर्सल भी कर ली जाती है. जेल के सीनियर सुप्रिटेंडेंट पीएन पांडेय के मुताबिक फांसी घर में तख़्त के ठीक पीछे एक बैनर पर साल 1989 में यहां मौत की सज़ा पाए तीन बंदियों का डिटेल्स भी प्रिंट कराकर डाल दिया गया है.

जिस जेल में है सलीम, वहां आखिरी बार 32 साल पहले हुई थी फांसी सलीम प्रयागराज की जिस नैनी सेंट्रल जेल की हाई सिक्योरिटी बैरक में बंद है, वहां पिछले 32 सालों से किसी को फांसी नहीं हुई है. साल 1989 में यहां तीन लोगों को हत्या के मामले में फांसी दी गई थी. इनमें दो सगे भाई थे. जेल के सीनियर सुप्रिटेंडेंट पीएन पांडेय के मुताबिक नैनी जेल में सबसे आख़िरी फांसी 18 नवम्बर 1989 को हुई थी. उस दिन रायबरेली जिले के शिवगढ़ थाना क्षेत्र के भवानीगढ़ गांव के कृष्ण कुमार को फांसी पर सुबह साढ़े चार बजे लटकाया गया था. कुर्मी जाति के कृष्ण कुमार की उम्र महज़ 24 साल थी और वो खेती का काम करता था. उसे 1984 में हुई हत्या के एक मामले में फांसी दी गई थी.

कृष्ण कुमार की फांसी से महज़ आठ दिन पहले यहां बाराबंकी के लोनी कटरा थाना क्षेत्र के राघवपुर गांव के रहने वाले बाबू यादव और अशर्फी यादव नाम के दो बुजुर्ग भाइयों को फांसी पर लटकाया गया था. बाबू की उम्र 66 साल और अशर्फी की उम्र 64 साल थी. इन दोनों भाइयों को भी हत्या के मामले में ही मौत की सज़ा हुई थी. 1989 के बाद यहां आज तक किसी को फांसी नहीं दी गई है.

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मुग़ल-ए-आज़म से अलग है इस सलीम और अनारकली की कहानी दिलीप कुमार और मधुबाला की फिल्म मुग़ल-ए-आज़म में भी सलीम और अनारकली की ही कहानी थी. लेकिन, असल ज़िंदगी की ये कहानी फ़िल्म से थोड़ा अलग है. फ़िल्म में सलीम मुग़लिया सल्तनत का शहज़ादा था और अनारकली दरबार को खुश करने वाली मामूली नर्तकी. लेकिन, अमरोहा के बावनखेड़ी की इस सनसनीखेज वारदात में अनारकली यानी शबनम अच्छे और संपन्न परिवार से थी, जबकि प्रेमी सलीम आरामशीन पर काम करने वाला मामूली सा मजदूर. फिल्म में सलीम अनारकली पर जान छिड़कता था, जबकि अमरोहा की कहानी में शबनम ने इज़हार-ए-इश्क़ की शुरुआत की थी. फिल्म में अनारकली को दीवारों में चुनवा दिया जाता है, जबकि हकीकत की इस कहानी में सलीम और उसकी अनारकली दोनों ही जेल की सलाखों के पीछे कैद हैं और दोनों को ही सजा-ए-मौत मुक़र्रर हो चुकी है.

ज़िंदगी बचाने के लिए सलीम के पास नहीं बचे हैं ज़्यादा विकल्प क़ानून के जानकारों की मानें तो सलीम और शबनम दोनों के पास ही फांसी के फंदे से बचने के लिए ज़्यादा कानूनी विकल्प नहीं बचे हैं. शबनम की दया याचिका राष्ट्रपति तक के यहां से खारिज हो चुकी है तो दूसरी तरफ सलीम की दया याचिका पर अभी फैसला नहीं हुआ है. शबनम को आज़ाद भारत में किसी भी महिला को फांसी नहीं होने के ठोस आधार के बावजूद राहत नहीं मिली तो सलीम को भी कोई रियायत मिलने की उम्मीद न के बराबर है. दोनों कानूनी पेचीदगियों का फायदा उठाकर कुछ और महीने या साल तक तो बच सकते हैं, लेकिन उनके पास ठोस विकल्प कम ही बचे हैं, जहां से फांसी की सज़ा बदलने की संभावनाएं ज़्यादा हों.

जेल बदली पर अफसर वही अपनी प्रेमिका शबनम के साथ मिलकर सात खून करने वाले सलीम को 27 सितम्बर 2018 को प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल लाया गया था. इससे पहले वो बरेली जेल में बंद था. बरेली की जेल में फांसी की सुविधा नहीं होने की वजह से सलीम को प्रयागराज की जेल में शिफ्ट किया गया था. सलीम जब बरेली की जेल में था तो उस वक़्त वहां के प्रभारी इन दिनों प्रयागराज की जेल के सीनियर सुप्रिटेंडेंट पीएन पांडेय ही थे. पीएन पांडेय के पास इन दिनों डीआईजी जेल का भी चार्ज है. बरेली जेल में रहते हुए भी सलीम अक्सर ही उस वक़्त के वहां के इंचार्ज पीएन पांडेय से मिलता रहता था.

पीएन पांडेय के मुताबिक़ सलीम ने जेल से ही राजमिस्त्री का प्रशिक्षण लिया था. वो एक अच्छा कारीगर है. इसके साथ ही वो लकड़ी के काम भी बखूबी करता है. बरेली जेल से ही मुलाकात का हवाला देकर सलीम ने हाई सिक्योरिटी बैरक में भेजे जाने पर सीनियर सुप्रिटेंडेंट पीएन पांडेय को चिठ्ठी भी लिखी थी. कहा जा सकता है कि सलीम की जेल तो बदल गई, लेकिन उसे दोनों जगह एक ही अधिकारी मिले हैं.

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क्या है बावनखेड़ी का क्राइम सेंसेशन अमरोहा के बावनखेड़ी में 14 अप्रैल 2008 को शबनम के माता-पिता, दो भाई, भाभी, 10 महीने के दुधमुंहे भतीजे और रिश्ते की बहन की गला काटकर हत्या कर दी गई थी. घर में अकेले शबनम ही बची हुई थी. इसी से पुलिस को शक हुआ. बाद में पता चला कि शबनम ने ही अपने आशिक सलीम के साथ मिलकर पूरे परिवार की हत्या की थी. दरअसल, शबनम और सलीम एक दूसरे से प्यार करते थे, लेकिन शबनम के परिवार को ये रिश्ता मंजूर नहीं था. शबनम ने दो विषयों में मास्टर डिग्री ले रखी थी. वो एक सरकारी स्कूल में टीचर थी, जबकि सलीम पड़ोस की आरामशीन पर काम करने वाला मजदूर.

बनावटी अंदाज़ में हिन्दी में करता है दस्तखत सलीम मामूली तौर पर ही पढ़ा हुआ है. जेल में ही उसने बेसिक और व्यवहारिक तौर पर हिन्दी और अंग्रेजी सीखी है. अपने प्रार्थना पत्रों और कानूनी अर्जियों पर वो हिन्दी में दस्तखत करता है. कोई साइन बनाने के बजाय वो पूरा नाम लिखता है. छोटे बच्चे या कम पढ़े लिखे लोग जिस तरह अपना या किसी का नाम लिखते हैं, सलीम भी बिलकुल उसी अंदाज़ में दस्तखत करता हैं. उसकी दस्तखत काफी हद तक बनावटी सी लगती है, जिसमें ये साफ़ नज़र आता है कि वो बेहद एहतियात के साथ और वक़्त लगाकर अपना साइन कर रहा है.

जानिए, सलीम को प्रयागराज और उसकी अनारकली को मथुरा की जेल में ही क्यों रखा गया है यूपी में अब तकरीबन हरेक जिले में जेल हैं. बंदियों को अलग-अलग जेलों में रखा जाता है. हालांकि, यूपी में सिर्फ पांच जेलों में ही फांसी की सजा की व्यवस्था है. इनमें से पुरुषों को फांसी देने के लिए चार और महिलाओं के लिए सिर्फ मथुरा जेल ही निर्धारित है. पुरुषों के लिए प्रयागराज की नैनी सेन्ट्रल जेल के साथ ही आगरा, मेरठ और सीतापुर की जेलों में फांसी देने के इंतजाम हैं, जबकि महिलाओं के लिए सिर्फ मथुरा जेल में. बाकी जेलों में फांसी देने के इंतजाम नहीं हैं. शबनम को इसी वजह से मथुरा और उसके आशिक सलीम को प्रयागराज की जेल में रखा गया है. ऐसे में कहा जा सकता है कि अगर दोनों को एक ही दिन फांसी की सजा होती है तो दो अलग-अलग जल्लाद लगाए जाएंगे.

पुरुष जल्लाद ही देगा शबनम को फांसी प्रयागराज की नैनी सेंट्रल के सीनियर सुप्रिटेंडेंट पीएन पांडेय के मुताबिक़ यूपी की जेलों में फांसी देने के लिए इन दिनों दो जल्लाद हैं. दोनों पुरुष हैं. फांसी की सजा भले ही न के बराबर रह गई हो, लेकिन कारागार विभाग इन दोनों को हर महीने पांच हज़ार रूपये का भत्ता देता है. दोनों जल्लादों को हर साल 60 हज़ार रुपये की रिटेनरशिप फीस दी जाती है, ताकि ज़रुरत पड़ने पर इन्हे बुलाया जा सके और ये भी खुद को जेल विभाग का हिस्सा समझते रहें. उनके मुताबिक़ सलीम और शबनम को भी यहीं दोनों पुरुष जल्लाद ही फांसी पर लटकाएंगे. उनका कहना है कि क़ानून में महिलाओं को फांसी देने के लिए अलग जल्लाद की व्यवस्था का कोई नियम नहीं है.

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