Navratri 2024: काली माता का वो मंदिर जहां मां की पायलों की गूंजती है आवाज, 450 साल पुराना है इतिहास
मेरठ: सदर काली माता मंदिर की एक और बात चौंकाने वाली है. मंदिर के पुजारी संकेत बनर्जी का दावा है कि हर अमावस्या को मंदिर में मां के पायलों की आवाज आती है, मां के आने के कदमों का अहसास भी होता है.
Navratri 2024: पश्चिमी यूपी में महाकाली का एक ऐसा मंदिर है, जहां मां की पायलों की आवाज गूंजती है. जहां मां का रौद्र रूप हर मनोकामना पूरी करता है. मां के दर्शन मात्र से ही सारे दुख और संताप दूर हो जाते हैं. मंदिर की ख्याति देश के कोने-कोने से है, क्योंकि जो भी मंदिर में आया और माता के दर पर माथा टेककर गया, उसकी खाली झोलियां भर जाती हैं. इस मंदिर का क्या है इतिहास, क्या है इस मंदिर की मान्यता, कहां के पुजारी करते हैं मां के मंदिर में पूजा और देखभाल. मेरठ के सदर काली माता मंदिर की क्या है मान्यता और क्यों यहां हर कष्ट का निवारण हो जाता है?
मेरठ के सदर बाजार में महाकाली का मंदिर प्राचीन और सिद्धपीठ मंदिर है. इस मंदिर को सदर काली माता मंदिर के नाम से जाना जाता है. मंदिर को मरघटवाली काली माता का मंदिर भी कहा जाता है. बताया जाता है कि जहां मां का मंदिर है सैकड़ों साल पहले कभी वहां श्मशान भी हुआ करता था. इसलिए श्मशान काली माता का मंदिर भी कहा जाता है. जो भी मां के मंदिर में आकर सच्चे मन से मन्नत मांगता है उसकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है. कभी कोई मां के दरबार से खाली नहीं जाता है. मां से आस्था की डोर ऐसी बंध जाती है कि फिर वो यहीं का हो कर रह जाता है.
अमावस्या पर पायलों की आती है आवाज
सदर काली माता मंदिर की एक और बात चौंकाने वाली है. मंदिर के पुजारी संकेत बनर्जी का दावा है कि हर अमावस्या को मंदिर में मां के पायलों की आवाज आती है, मां के आने के कदमों का अहसास भी होता है. अमावस्या को मां की विशेष पूजा अर्चना की जाती है और विशेष कृपा भी होती है. अमावस्या को लेकर श्रद्धालुओं में भारी उत्साह भी देखने को मिलता है. भक्त इस वजह से भी मंदिर आते हैं कि उन्हें मां की पायलों की आवाज सुनाई दे जाए, लेकिन कुछ ही भक्त ऐसे भाग्यशाली होते हैं, जिन्हें मां की पायलों की आवाज सुनाई देती है. मां का नारियल और चुनरी का प्रसाद चढ़ाया जाता है.
सदर काली माता मंदिर का इतिहास 450 साल से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है. मंदिर में बंगाली पुजारियों की 14वीं पीढ़ी मां के मंदिर की देखभाल और पूजा-अर्चना करती है. मंदिर की स्थापना करीब 450 साल पहले पश्चिमी बंगाल से आए नीलकंठ बनर्जी ने की थी. तभी से उनका परिवार ही मंदिर की जिम्मेदारी संभालता है. इस बंगाली परिवार की कई पीढ़िया मां की पूजा-अर्चना करती आ रही हैं. इस वक्त 14वीं पीढ़ी पर मां काली मंदिर की जिम्मेदारी है. सदर काली माता मंदिर के पुजारी संकेत बनर्जी का कहना है कि हमारे पूर्वजों ने मंदिर की स्थापना की थी, तभी से हमारी पीढ़ियां यहां माता की पूजा-अर्चना करती हैं और मंदिर की जिम्मेदारी संभालती हैं.
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महाआरती में उमड़ता है सैलाब
सदर काली माता मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक है. नवरात्र में तो यहां भक्तों का मेला लगता है. मां काली की विशेष आरती भी की जाती है और दूर-दूर से श्रद्धालू यहां मन्नत मांगने आते हैं. जो भी एक बार माता के दर पर आ गया, उसकी मां ने खाली झोलियां भर डाली. मां का रौद्र रूप हर संकट को हर लेता है. नवरात्र में तो तड़के चार बजे से पहले ही भक्तों का आना-जाना शुरू हो जाता है, क्योंकि कई भक्त ऐसे हैं कि जो मां की पूजा ब्रहम मुहूर्त में करते हैं. श्रद्धा और आस्था का ऐसा सैलाब उमड़ता है कि मंदिर के बाहर तक भी भक्तों की कतारें लग जाती हैं. मां की महाआरती में आस्था और श्रद्धा की गंगा में श्रद्धालू खूब डुबकी लगाते हैं.