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MP News: लोक संस्कृति के पर्व 'भगोरिया' का आगाज, कैलाश विजयवर्गीय बोले- 'यह सिर्फ उत्सव ही नहीं, बल्कि...'

Bhagoria Festival 2024: भगोरिया की शुरुआत राजा भोज के समय में हुई थी. तत्कालीन भील राजा कासूमरा और बालून ने अपनी राजधानी भगोर में मेले की शुरुआत की. इसके बाद अन्य क्षेत्रों में भी यह आयोजन होने लगा.

Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश का जनजातीय संस्कृति का महापर्व भगोरिया आज (19 मार्च) से शुरू हो रहा है. ऐसे में मालवा-निमाड़ के ग्रामीण अंचल उमंग और उल्लास के साथ तैयारियों में जुटे हैं. इस पर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) ने एक लेख लिखा जो खूब पढ़ा जा रहा है. कैलाश विजयवर्गीय ने लिखा है कि पड़ोसी राज्यों में मजदूरी करने गए हमारे मेहनतकश परिवारजन भी भगोरिया और होली मनाने के लिए अपने-अपने गांव-फलियों में लौटने लगे हैं. ग्रामीण ढोल-मांदल को दुरुस्त करने में जुट गए हैं.

आगे उन्होंने आगे लिखा, "भगोरिया को पिछले साल ही मध्य प्रदेश सरकार ने राजकीय पर्व घोषित किया था. मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार का यह फैसला इस बात का प्रमाण है कि सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए सरकार प्रतिबद्ध है. वैसे भी परंपरागत मेले और पर्व हमारे गौरवशाली इतिहास का वर्तमान से मेल करवाते हैं. युवा पीढ़ी संस्कारों और सरोकारों का यह पाठ पढ़कर अपनी परंपराओं को न केवल स्वीकार करती है, बल्कि अनुशासित रूप से अनुकरण के लिए भी खुद को समर्पित करती है."

विजयवर्गीय के लेख के मुताबिक भगोरिया की एक पहचान यह भी है कि हजारों की तादाद में उमड़ने वाली ग्रामीणों की भीड़ के बावजूद इसमें अनुकरणीय अनुशासन होता है. भगोरिया केवल उत्सव ही नहीं, पुरातन संस्कृति का प्रतिबिंब है. हर तरफ पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोल-मांदल के साथ थाली की खनक पर लयबद्ध थिरकन का दौर चलता है. पूरे सात दिनों तक कहीं भी इतने वृहदस्तर पर ऐसा कोई भी उत्सव नहीं मनाया जाता.

राजा भोज के कालखंड में हुई थी शुरूआत
रोचक जानकारी देते हुए उन्होंने लिखा कि माना जाता है कि भगोरिया की शुरुआत राजा भोज के कालखंड में हुई थी. तत्कालीन भील राजाओं कासूमरा और बालून ने अपनी राजधानी भगोर में मेले की शुरुआत की. इसके बाद अन्य क्षेत्रों में भी यह आयोजन होने लगा. कालांतर में स्थानीय हाट और मेलों में लोग इसे भगोरिया कहने लगे. पश्चिमी निमाड़, झाबुआ-आलीराजपुर, धार, बड़वानी में भगोरिया अधिक धूमधाम से मनाया जाता है. भगोरिया के दौरान ग्रामीण जन ढोल-मांदल और बांसुरी बजाते हुए मस्ती में झूमते हैं. गुड़ की जलेबी, भजिये, खारिये (सेंव), पान, कुल्फी की दुकानों से मेले सजे रहते हैं. 

इन राज्यों में मनाया जाता है भगोरिया पर्व
दरअसल भारत के अनेक भागों में आदिवासी समुदायों की एक विशेष महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर है. यहां तक कि उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक आयुष्य का अंग-अंग है. भगोरिया एक ऐसा महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे अलग-अलग तरीकों के साथ मध्य भारत के छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार और महाराष्ट्र में मनाया जाता है. इसे अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है, जैसे कि भागोरा, भगौरिया, भगोरी, भगोरीया, भगोरिया, बघोरिया आदि. मध्य प्रदेश के लिए यह विशेष गर्व का पर्व इसलिए भी है कि इसे आदिवासी समुदायों के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के प्रतीक के रूप में अब अधिक मान्यता मिलती जा रही है. 

भगोरिया का पर्व आदिवासी समुदायों की महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है. इसका आयोजन समाज में एकता, सामाजिक समरसता और समृद्धि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया जाता है. इस पर्व के माध्यम से लोग अपनी परंपराओं को समझते हैं और इसे अपने जीवन में अमल में भी लाते हैं. भगोरिया पर्व का आयोजन समाज के प्राचीन रीति-रिवाजों और संस्कृति को मजबूत करने का भी प्रभावी माध्यम है. इस पर्व के दौरान आदिवासी समुदाय परंपरा के साथ अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता को भी दोहराता है.

'यह पर्व प्रेम और सद्भावना की नई मिसाल बनेगा'
कैलाश विजयवर्गीय ने लिखा कि 'भगोरिया पर्व एक महत्वपूर्ण आदिवासी पर्व है, जो भारतीय समाज के विविधता और समृद्धि का प्रतीक है. यह आदिवासी समुदायों की भावनाओं, संस्कृति, और परंपराओं को मजबूत करने का एक माध्यम है. इस पर्व के माध्यम से लोग अपने समुदाय के गौरव को महसूस करते हैं और अपने धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने का संकल्प लेते हैं. मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस साल भी भगोरिया पर्व समाज में एकता, सद्भावना, और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और प्रेम और सद्भावना की नई मिसाल बनेगा.'

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