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Delhi का वो रेलवे स्टेशन जो देश की आजादी के कई आंदोलनों की बनी गवाह

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन 1864 में एक छोटे से भवन के साथ अस्तित्व में आई थी. वो बाद के वर्षों में आजादी के कई आंदोलनों का गवाह बनी. महात्मा गांधी पहली बार 12 अप्रैल 1915 को ट्रेन से दिल्ली पहुंचे थे.

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन 1864 में एक छोटे से भवन के साथ अस्तित्व में आई थी. वो बाद के वर्षों में आजादी के कई आंदोलनों का गवाह बनी. महात्मा गांधी पहली बार 12 अप्रैल 1915 को ट्रेन से दिल्ली पहुंचे थे.

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन आजादी के कई आंदोलनों की गवाह है.

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देश की राजधानी दिल्ली का यूं तो भारत के इतिहास और भारत के स्वतंत्रता संग्राम से काफी गहरा नाता नाता रहा है. दिल्ली में कई प्रमुख और ऐतिहासिक स्थल और भवन हैं, जो देश की आजादी के लिए हुए आंदोलन की गवाह बनी. आज हम आपको एक ऐसी ही जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आजादी के लिए हुए आंदोलन की साक्षी बनी और आज भी धरोहर के रूप में खड़ी है. हम बात कर रहे हैं, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की, जो 1864 में एक छोटे से भवन के साथ अस्तित्व में आई थी.
देश की राजधानी दिल्ली का यूं तो भारत के इतिहास और भारत के स्वतंत्रता संग्राम से काफी गहरा नाता नाता रहा है. दिल्ली में कई प्रमुख और ऐतिहासिक स्थल और भवन हैं, जो देश की आजादी के लिए हुए आंदोलन की गवाह बनी. आज हम आपको एक ऐसी ही जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आजादी के लिए हुए आंदोलन की साक्षी बनी और आज भी धरोहर के रूप में खड़ी है. हम बात कर रहे हैं, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की, जो 1864 में एक छोटे से भवन के साथ अस्तित्व में आई थी.
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कभी एक हजार यात्रियों की क्षमता वाले इस स्टेशन पर अब प्रतिदिन तीन लाख यात्री पहुंचते हैं. यहां से प्रतिदिन 250 से अधिक ट्रेनों का संचालन होता है. यहां के प्लेटफार्म की संख्या बढ़कर 19 हो गई है. आज यह स्टेशन देश के बड़े और व्यस्त स्टेशनों में शुमार है. चटख गेरुए रंग वाली इस स्टेशन की इमारत वास्तुशिल्प की दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन एवं राजधानी दिल्ली में हुए कई बदलाव की साक्षी रही है. देश की आजादी के लिए किए गए कई आंदोलनों के केंद्र दिल्ली रही. इस कारण देश के विभिन्न भागों से स्वतंत्रता सेनानी ट्रेन के माध्यम से दिल्ली पहुंचते थे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी पहली बार 12 अप्रैल 1915 को ट्रेन से ही दिल्ली पहुंचे थे.
कभी एक हजार यात्रियों की क्षमता वाले इस स्टेशन पर अब प्रतिदिन तीन लाख यात्री पहुंचते हैं. यहां से प्रतिदिन 250 से अधिक ट्रेनों का संचालन होता है. यहां के प्लेटफार्म की संख्या बढ़कर 19 हो गई है. आज यह स्टेशन देश के बड़े और व्यस्त स्टेशनों में शुमार है. चटख गेरुए रंग वाली इस स्टेशन की इमारत वास्तुशिल्प की दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन एवं राजधानी दिल्ली में हुए कई बदलाव की साक्षी रही है. देश की आजादी के लिए किए गए कई आंदोलनों के केंद्र दिल्ली रही. इस कारण देश के विभिन्न भागों से स्वतंत्रता सेनानी ट्रेन के माध्यम से दिल्ली पहुंचते थे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी पहली बार 12 अप्रैल 1915 को ट्रेन से ही दिल्ली पहुंचे थे.
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1 जनवरी को 1867 को यहां पहली ट्रेन पहुंची थी. 1893 में इस स्टेशन कि नई इमारत का काम हुआ था, जिसका नवीनीकरण साल 2018 में किया गया. इससे पहले साल 1993 में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा इसके भवन को नगरीय धरोहर पुरस्कार प्रदान किया गया था. जबकि पर्यावरण संभाल के लिए उठाए गए कदमों की वजह से 2019 में इस स्टेशन को आइएसओ प्रमाणपत्र भी मिला है, इस तरह का प्रमाणपत्र पाने वाला यह उत्तर रेलवे का पहला स्टेशन है. बात करें अब तक के पुरानी दिल्ली के इतिहास की तो यमुना पर लोहा पुल के बनने के बाद एक जनवरी 1867 को यहां पहली ट्रेन पहुंची, जो ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी की तरफ से कोलकाता-दिल्ली लाइन पर चलने वाली पहली ट्रेन थी.
1 जनवरी को 1867 को यहां पहली ट्रेन पहुंची थी. 1893 में इस स्टेशन कि नई इमारत का काम हुआ था, जिसका नवीनीकरण साल 2018 में किया गया. इससे पहले साल 1993 में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा इसके भवन को नगरीय धरोहर पुरस्कार प्रदान किया गया था. जबकि पर्यावरण संभाल के लिए उठाए गए कदमों की वजह से 2019 में इस स्टेशन को आइएसओ प्रमाणपत्र भी मिला है, इस तरह का प्रमाणपत्र पाने वाला यह उत्तर रेलवे का पहला स्टेशन है. बात करें अब तक के पुरानी दिल्ली के इतिहास की तो यमुना पर लोहा पुल के बनने के बाद एक जनवरी 1867 को यहां पहली ट्रेन पहुंची, जो ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी की तरफ से कोलकाता-दिल्ली लाइन पर चलने वाली पहली ट्रेन थी.
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1870 में सिंघ, पंजाब और दिल्ली की 483 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बिछाई गई और दिल्ली रेल लाइन के माध्यम से मुल्तान से जुड़ गया. दिल्ली से रेवाड़ी और आगे अजमेर तक मीटर गेज टैंक 1873 में राजपूताना स्टेट रेलवे की ओर से बिछाया गया था. इस स्टेशन से मीटर गेज ट्रेनें 1876 में शुरू हुई. 40 साल तक छोटे से भवन से ही ट्रेनों का संचालन होता रहा.
1870 में सिंघ, पंजाब और दिल्ली की 483 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बिछाई गई और दिल्ली रेल लाइन के माध्यम से मुल्तान से जुड़ गया. दिल्ली से रेवाड़ी और आगे अजमेर तक मीटर गेज टैंक 1873 में राजपूताना स्टेट रेलवे की ओर से बिछाया गया था. इस स्टेशन से मीटर गेज ट्रेनें 1876 में शुरू हुई. 40 साल तक छोटे से भवन से ही ट्रेनों का संचालन होता रहा.
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1893 में इस स्टेशन की नई इमारत बनाने का काम शुरू हुआ जो 10 वर्षों में बन कर तैयार हुई. दो प्लेटफार्म के साथ नई इमारत को 1903 में आम यात्रियों के लिए खोला गया, इस भवन का निर्माण अंग्रेज ठेकेदार बैंजामिन फ्लेचर ने किया था. यह भवन ग्रीक रोमन, कौथिक, भारीतय- इस्लामिक वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है, स्टेशन की इमारत में छह मीनारे हैं, पहले इनका उपयोग पानी रखने के लिए किया जाता था.
1893 में इस स्टेशन की नई इमारत बनाने का काम शुरू हुआ जो 10 वर्षों में बन कर तैयार हुई. दो प्लेटफार्म के साथ नई इमारत को 1903 में आम यात्रियों के लिए खोला गया, इस भवन का निर्माण अंग्रेज ठेकेदार बैंजामिन फ्लेचर ने किया था. यह भवन ग्रीक रोमन, कौथिक, भारीतय- इस्लामिक वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है, स्टेशन की इमारत में छह मीनारे हैं, पहले इनका उपयोग पानी रखने के लिए किया जाता था.
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1904 में आगरा-दिल्ली लाइन शुरू हुई. 1931 में दिल्ली के राजधानी बनने के बाद इस रेलवे स्टेशन का महत्व बढ़ गया. 1934-35 में स्टेशन परिसर को विस्तार दिया गया, प्लेटफार्म की संख्या बढ़ाई, बिजली के सिग्नल लगाए गए. 1952 में उत्तर रेलवे के गठन के बाद दिल्ली जंक्शन इसका अंग बन गया. 1959 में यार्ड की क्षमता को बढ़ाने के लिए इस स्टेशन के यार्ड का नवीनीकरण किया गया. इसके बाद वाशिंग लाइन, प्लेटफॉर्म शेड, पार्सल शेड का विस्तार 1985-88 के बीच किया गया. इस स्टेशन पर जोरावर सिह मार्ग की तरफ एक स्टीम लोको शेड था.
1904 में आगरा-दिल्ली लाइन शुरू हुई. 1931 में दिल्ली के राजधानी बनने के बाद इस रेलवे स्टेशन का महत्व बढ़ गया. 1934-35 में स्टेशन परिसर को विस्तार दिया गया, प्लेटफार्म की संख्या बढ़ाई, बिजली के सिग्नल लगाए गए. 1952 में उत्तर रेलवे के गठन के बाद दिल्ली जंक्शन इसका अंग बन गया. 1959 में यार्ड की क्षमता को बढ़ाने के लिए इस स्टेशन के यार्ड का नवीनीकरण किया गया. इसके बाद वाशिंग लाइन, प्लेटफॉर्म शेड, पार्सल शेड का विस्तार 1985-88 के बीच किया गया. इस स्टेशन पर जोरावर सिह मार्ग की तरफ एक स्टीम लोको शेड था.
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15 मई 1994 में उत्तर रेलवे में भाप इंजन बंद होने के साथ ही स्टीम लोको शेड भी खत्म हो गया, उस स्थान पर साल 1995 में रेलवे स्टेशन में प्रवेश के लिए दूसरा प्रवेश द्वार बनाया गया. 2018 से पहले तक स्टेशन की इमारत लाल रंग की थी, वर्ष 2016 में स्टेशन का नवीनीकरण कार्य शुरू हुआ और यहां कई सुविधाएं बढ़ाने के साथ ही इमारत का रंग भी गेरुआ कर दिया गया.
15 मई 1994 में उत्तर रेलवे में भाप इंजन बंद होने के साथ ही स्टीम लोको शेड भी खत्म हो गया, उस स्थान पर साल 1995 में रेलवे स्टेशन में प्रवेश के लिए दूसरा प्रवेश द्वार बनाया गया. 2018 से पहले तक स्टेशन की इमारत लाल रंग की थी, वर्ष 2016 में स्टेशन का नवीनीकरण कार्य शुरू हुआ और यहां कई सुविधाएं बढ़ाने के साथ ही इमारत का रंग भी गेरुआ कर दिया गया.

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