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In Pics: बस्तर में 'सोने की थाली' बेचकर आदिवासी महिलाएं करती हैं लाखों की कमाई, देखें तस्वीरें

दोना पत्तल पर भोजन करते छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल

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छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासी ग्रामीणों द्वारा बनाए जाने वाली सोने की थाली की डिमांड लगातार पूरे प्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्यों में बढ़ती जा रही है. दरअसल, बस्तर में पत्तों से बनी दोना पत्तल( थाली कटोरी) को आदिवासी ग्रामीणों द्वारा सोने की थाली कहा जाता है. साल वन के पत्तों से बनी थाली के काफी सारे महत्व हैं. वहीं ग्रामीणों के आजीविका का मुख्य साधन भी है. अब केवल बस्तर जिले में ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में भी इस दोना पत्तल की डिमांड काफी बढ़ रही है. पिछले दो सालों में ही बस्तर के बिलोरी गांव के महिला स्व सहायता समूह ने 3 लाख 50 हजार रुपये का दोना पत्तल बेचा है और उन्हें शुद्ध सवा लाख रुपये की आय हुई है.
छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासी ग्रामीणों द्वारा बनाए जाने वाली सोने की थाली की डिमांड लगातार पूरे प्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्यों में बढ़ती जा रही है. दरअसल, बस्तर में पत्तों से बनी दोना पत्तल( थाली कटोरी) को आदिवासी ग्रामीणों द्वारा सोने की थाली कहा जाता है. साल वन के पत्तों से बनी थाली के काफी सारे महत्व हैं. वहीं ग्रामीणों के आजीविका का मुख्य साधन भी है. अब केवल बस्तर जिले में ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में भी इस दोना पत्तल की डिमांड काफी बढ़ रही है. पिछले दो सालों में ही बस्तर के बिलोरी गांव के महिला स्व सहायता समूह ने 3 लाख 50 हजार रुपये का दोना पत्तल बेचा है और उन्हें शुद्ध सवा लाख रुपये की आय हुई है.
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बस्तर जिले के साथ ही संभाग के अन्य जिलों  के ग्रामीणों ने भी  पिछले लंबे समय से  सरकारी और निजी कार्यक्रमों में प्लास्टिक की प्लेट की जगह दोना पत्तल उपयोग करने का संकल्प ले लिया है. एक तरफ जहां पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए देश में प्लास्टिक के बने वस्तुओं पर बैन लगाया गया है और इसके पालन के लिए सरकारी विभागों को निर्देश दिया गया है. वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के बस्तर में पिछले सैकड़ों सालों से साल पेड़ के पत्तों से बने दोना पत्तल में खाना खाने की परंपरा चली आ रही है.
बस्तर जिले के साथ ही संभाग के अन्य जिलों  के ग्रामीणों ने भी  पिछले लंबे समय से  सरकारी और निजी कार्यक्रमों में प्लास्टिक की प्लेट की जगह दोना पत्तल उपयोग करने का संकल्प ले लिया है. एक तरफ जहां पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए देश में प्लास्टिक के बने वस्तुओं पर बैन लगाया गया है और इसके पालन के लिए सरकारी विभागों को निर्देश दिया गया है. वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के बस्तर में पिछले सैकड़ों सालों से साल पेड़ के पत्तों से बने दोना पत्तल में खाना खाने की परंपरा चली आ रही है.
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बस्तर में इस दोना पत्तल को सोने की थाली कहा जाता है. बस्तर संभाग के अधिकतर ग्रामीणों का साल पेड़ के पत्तों से दोना पत्तल तैयार करना उनकी आय का मुख्य साधन है. बस्तर जिले के बिलोरी गांव में ही 2 साल में 7 महिलाओं ने करीब 3 लाख 50 हजार रुपए का दोना पत्तल का बेचा है. बकायदा इन महिलाओं को दोना पत्तल बनाने के लिए जिला प्रशासन ने DMFT फंड से दोना पत्तल बनाने की मशीन उपलब्ध कराई है और बीते 2 सालों में महिलाओं को शुद्ध सवा लाख रुपये का फायदा हुआ है.
बस्तर में इस दोना पत्तल को सोने की थाली कहा जाता है. बस्तर संभाग के अधिकतर ग्रामीणों का साल पेड़ के पत्तों से दोना पत्तल तैयार करना उनकी आय का मुख्य साधन है. बस्तर जिले के बिलोरी गांव में ही 2 साल में 7 महिलाओं ने करीब 3 लाख 50 हजार रुपए का दोना पत्तल का बेचा है. बकायदा इन महिलाओं को दोना पत्तल बनाने के लिए जिला प्रशासन ने DMFT फंड से दोना पत्तल बनाने की मशीन उपलब्ध कराई है और बीते 2 सालों में महिलाओं को शुद्ध सवा लाख रुपये का फायदा हुआ है.
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बिलोरी गांव के सरपंच उमन बघेल ने बताया कि दोना पत्तल बनाने के लिए गांव के अन्य महिलाओं को भी स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इसके साथ ही पंचायत ने भी यह फैसला ले लिया है कि गांव में होने वाले सरकारी और गैर सरकारी कार्यक्रमों में प्लास्टिक और थर्माकोल से बने दोना पत्तल का उपयोग नहीं किया जाएगा और महिला स्व सहायता समूह द्वारा बनाए गए दोना पत्तल का उपयोग ही किया जाएगा. कई मौकों पर छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल भी दोना पत्तल में भोजन करते देखे गए. लोगों को इस ओर जागरुक किया जा रहा है.
बिलोरी गांव के सरपंच उमन बघेल ने बताया कि दोना पत्तल बनाने के लिए गांव के अन्य महिलाओं को भी स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इसके साथ ही पंचायत ने भी यह फैसला ले लिया है कि गांव में होने वाले सरकारी और गैर सरकारी कार्यक्रमों में प्लास्टिक और थर्माकोल से बने दोना पत्तल का उपयोग नहीं किया जाएगा और महिला स्व सहायता समूह द्वारा बनाए गए दोना पत्तल का उपयोग ही किया जाएगा. कई मौकों पर छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल भी दोना पत्तल में भोजन करते देखे गए. लोगों को इस ओर जागरुक किया जा रहा है.
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समूह की महिलाओं का कहना है कि 2 साल पहले शुरू किए दोना पत्तल का कारोबार बस्तर जिले के अलावा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर तक पहुंच गया है और इसके अलावा अन्य राज्यों में भी सप्लाई की जा रही है. महिलाओं ने बताया कि हर दिन करीब एक हजार से अधिक की संख्या में दोना पत्तल बनाई जाती है तो उसकी खपत भी हो जाती है. वहीं इन महिलाओं के द्वारा पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के साथ ही सभी लोगों को प्लास्टिक की जगह दोना पत्तल का इस्तेमाल करने के लिए जागरूक किया जा रहा है.
समूह की महिलाओं का कहना है कि 2 साल पहले शुरू किए दोना पत्तल का कारोबार बस्तर जिले के अलावा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर तक पहुंच गया है और इसके अलावा अन्य राज्यों में भी सप्लाई की जा रही है. महिलाओं ने बताया कि हर दिन करीब एक हजार से अधिक की संख्या में दोना पत्तल बनाई जाती है तो उसकी खपत भी हो जाती है. वहीं इन महिलाओं के द्वारा पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के साथ ही सभी लोगों को प्लास्टिक की जगह दोना पत्तल का इस्तेमाल करने के लिए जागरूक किया जा रहा है.
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बिलोरी गांव के ग्रामीणों ने बताया कि उनके हर सामाजिक कार्यो और अन्य कार्यो में दोना पत्तल में भोजन करने की पुरानी परंपरा है. यह दोना पत्तल आसानी से नष्ट भी हो जाते हैं और सेहत को भी किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. ग्रामीणों की आय का मुख्य साधन होने की वजह से बस्तर के अधिकतर गांव में महिलाएं और पुरुष भी दोना पत्तल के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. उनका कहना है कि आधुनिक काल में भी ग्रामवासी दोना पत्तल में ही भोजन करते हैं और उनके लिए यह दोना पत्तल सोने की थाली के समान है.
बिलोरी गांव के ग्रामीणों ने बताया कि उनके हर सामाजिक कार्यो और अन्य कार्यो में दोना पत्तल में भोजन करने की पुरानी परंपरा है. यह दोना पत्तल आसानी से नष्ट भी हो जाते हैं और सेहत को भी किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. ग्रामीणों की आय का मुख्य साधन होने की वजह से बस्तर के अधिकतर गांव में महिलाएं और पुरुष भी दोना पत्तल के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. उनका कहना है कि आधुनिक काल में भी ग्रामवासी दोना पत्तल में ही भोजन करते हैं और उनके लिए यह दोना पत्तल सोने की थाली के समान है.

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