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यूक्रेन युद्ध में फेल होते रूसी हथियार, फ्रांस अब भारत के लिए कितना है जरूरी?

भारत और फ्रांस की दोस्ती बहुत पुरानी है. एक वक्त था जब सभी बड़े देशों ने भारत का साथ छोड़ दिया था लेकिन फ्रांस अकेले भारत के साथ खड़ा था. सवाल ये है कि दोनों देशों के बीच इस दोस्ती की वजह क्या है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को फ्रांस पहुंचे. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने गले लगाकर पीएम मोदी का स्वागत किया. शुक्रवार को यानी आज पीएम मोदी सम्मानित अतिथि के तौर पर परेड में शामिल होंगे. पीएम मोदी का सम्मानित अतिथि के तौर पर शामिल होना द्विपक्षीय संबंधों की ताकत और गहराई को पेश करने का एक मौका माना जा रहा है. 

बता दें कि फ्रांस और भारत ने 1998 में एक रणनीतिक साझेदारी स्थापित की थी, लेकिन पिछले एक दशक में संबंधों ने फिर से जोर पकड़ लिया है. लगातार मजबूत हो रही दोनों देशों की दोस्ती संवेदनशील और संप्रभु डोमेन सहित कई मुद्दों पर सहयोग को बढ़ा रही है. इस दोस्ती में रक्षा व्यापार संबंध को सबसे अहम माना जा रहा है. बता दें कि फ्रांस, रूस के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता देश बन गया है. 

पीएम मोदी से पहले मनमोहन सिंह 2009 की परेड में मुख्य अतिथि थे. इस परेड की शुरुआत भारतीय सेनाओं की तीन टुकड़ी ने 'सारे जहां से अच्छा' और 'कदम कदम बढ़ाए जा' गीत गा कर की थी.उस समय फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी थे. 

इस बार भी जब तीनों सेनाओं की टुकड़ी चैंप्स-एलिसीज़ की तरफ मार्च करेगी. मार्च के दौरान हाल ही में भारतीय वायु सेना में शामिल किए गए तीन फ्रांसीसी राफेल लड़ाकू विमान फ्लाईपास्ट करेंगे. 

पुरानी है फ्रांस और भारत की दोस्ती

भारत और फ्रांस के बीच पारंपरिक रूप से घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंध हैं. 1960 के दशक से फ्रांसीसी विमान और हेलीकॉप्टर (ओरागन, माइस्टर, अलीज़, अलौएट, जगुआर फ्रांसीसी विमान हैं ) भारतीय हवाई बेड़े का हिस्सा रहे हैं. 1984 में अमेरिका घरेलू कानूनी बाधाओं का हवाला देते हुए तारापुर परमाणु संयंत्र के लिए परमाणु ईंधन की आपूर्ति के समझौते से पीछे हट गया था.  तब फ्रांस ने तब परमाणु ईंधन की आपूर्ति के लिए भारत को मदद पहुंचाई थी. 

फ्रांस ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत से ही उसका समर्थन किया है. फ्रांस ने श्रीहरिकोटा लॉन्च साइट स्थापित करने में मदद की. 1970 के दशक में सेंटोर और वाइकिंग रॉकेट प्रौद्योगिकियों को साझा किया. शीत युद्ध के कारण संबंध बाधित भी हुए थे, इसके बावजूद फ्रांस शीत युद्ध के युग में पश्चिम में सबसे विश्वसनीय भागीदारों में से एक साबित हुआ था.

साल 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद भारत के रणनीतिक महत्व को पहचानने वाला फ्रांस पहला देश था. इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक रूस में पूर्व राजदूत डीबी वेंकटेश वर्मा का कहना है 'फ्रांस ने भारत का साथ उस दौर में दिया था जब तमाम बड़े देशों ने भारत से मुंह मोड़ लिया था. फ्रांस के साथ साझेदारी यूरोप में भारत की सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदारी है'. 

1998 में ही दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी द्विपक्षीय संबंधों के अलावा कई अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर आपसी बातचीत और सहमति का दौर जारी हुआ.  तब से सहयोग के क्षेत्र का विस्तार हो रहा है.  दोनों ही देश लोकतंत्र के साझा मूल्यों, मौलिक स्वतंत्रता, कानून के शासन और मानवाधिकारों के सम्मान के लिए प्रतिबद्ध हैं. 

भारत और फ्रांस के बीच रक्षा और सुरक्षा सहयोग, अंतरिक्ष सहयोग और असैन्य परमाणु सहयोग रणनीतिक साझेदारी के प्रमुख स्तंभ हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि भारत तो रूस से सबसे ज्यादा हथियार लेता है, तो फिर फ्रांस से हथियार लेने की जरूरत क्यों पड़ रही है, और फ्रांस के लिए भारत के साथ दोस्ती कैसे फायदेमंद है. 

फ्रांस को इस दोस्ती से क्या फायदा

हाल के कुछ वर्षों में रूस पर हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में अविश्वसनीयता बढ़ी है. इससे फ्रांस को एक मौका मिला है. जो न सिर्फ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने का है, साथ ही भारत के साथ अपने रिश्ते को और बेहतर करने जैसा है. बता दें कि पिछले साल फ्रांस के रक्षा मंत्री भारत दौरे पर आए थे. उनके दौरे से पहले फ्रांस के रक्षा मंत्रालय के एक सलाहकार ने मीडिया को ये बताया, 'हम वहां सैन्य उपकरण बेचने नहीं जा रहे हैं.  हमारा उद्देश्य संबंधों के महत्व और गहराई से समझना है. हमारी यात्रा भारत के साथ "सद्भावना का संकेत" है. लेकिन भारत जिस तरह से दोनों तरफ से घिरा हुआ है, हम उन्हें दिखा सकते हैं कि दुश्मनों से निबटने के लिए रूसी हथियारों के बजाय यूरोपीय विकल्प मौजूद हैं'. बता दें कि 1993 के बाद से भारत और फ्रांस ने संयुक्त नौसैनिक अभ्यास किया है और फ्रांस पहले से ही रूस के बाद भारत का नंबर 2 हथियार आपूर्तिकर्ता है.

चीन पाकिस्तान से निबटने के लिए भारत को कैसे है फ्रांस की जरूरत

परमाणु शक्ति संपन्न पाकिस्तान और उत्तर में आक्रामक होते चीन के बीच बसे भारत के लिए हथियारों की दरकार हमेशा बनी रहती है.  इसी बीच रूस से हथियार लेने में दिक्कतें भी आई हैं. मीडिया से बातचीत में यूरोपीय संघ-भारत के रिश्तों के मामलों की विशेषज्ञ गरिमा मोहन ने का कहना है कि भारत अपने संबंधों को मजबूत करने और विविधता लाने के लिए तैयार है. भारत को पता है कि उसे अपने हथियारों में विविधता लाने और नए स्रोतों को खोजने में तात्कालिकता की जरूरत है.  इस सिलसिले में फ्रांस को पहले से ही एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखा जाता रहा है'.

भारत के दूसरे सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में फ्रांस ने अतीत में राफेल लड़ाकू जेट अनुबंध जैसे बड़े हथियार सौदे किए हैं. नौसेना के क्षेत्र में भी दोनों देशों के बीच संबंध गहरे हुए हैं, क्योंकि भारत और फ्रांस के क्षेत्र में हिंद-प्रशांत द्वीपों की एक श्रृंखला पड़ती है.  इस क्षेत्र में चीन का दबदबा बढ़ रहा है.  

पॉलिटिको में छपी खबर के मुताबिक पेरिस विश्वविद्यालय के फ्रेंच जियोपॉलिटिक्स इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर इसाबेल सेंट-मेजार्ड का मानना है, 'फ्रांस और भारत के बीच दोस्ती की एक बड़ी वजह चीन भी है. इसे कमोबेश दोनों देश सार्वजनिक तौर पर मानते भी रहे हैं. दोनों देशों को ये समझने के लिए एक दूसरे के और करीब आना होगा कि चीन कनेक्टिविटी बनाने और युद्धक जहाजों और पनडुब्बियों को तैनात करने के मामले में क्या कर रहा है. रूस इस समय यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा हुआ है. ऐसे में फ्रांस और भारत के रिश्ते नए आयाम पर जा सकते हैं'.  

रूस पर सशस्त्र बलों की निर्भरता को कम करना चाहता है भारत

स्टिम्सन सेंटर के 2020 के एक अध्ययन के मुताबिक  70 से 85 प्रतिशत भारतीय सशस्त्र बल रूसी उपकरणों से काम कर रहे हैं. मोदी सरकार पहले से ही उस निर्भरता को कम करने पर विचार कर रही है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक भारतीय विश्लेषक का कहना है कि भारत की सरकार स्मार्ट है. उन्होंने कहा,  'सरकार में अब यह समझ बन गई है कि रूस हमें जरूरत के मुताबिक हथियार नहीं दे पाएगा.

यूक्रेन युद्ध ने रूसी सैन्य मशीन में कमियों को उजागर किया है. यूक्रेनी सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार, रूस के कई हथियार "अप्रभावी" और "अप्रचलित" हैं. मिसाइलों के अपने लक्ष्य से चूकने की संभावना है और बख्तरबंद वाहन छोटे हथियारों के लिए बेहद ही कमजोर हैं.

भारतीय वायु सेना लड़ाकू विमानों के अपने बेड़े को अपग्रेड करने और 100 से ज्यादा नए विमान खरीदने की तलाश में है. ऐसे में रूस पर निर्भर रहना समझदारी नहीं होगी. 

तो क्या फ्रांस पर पूरी तरह से भरोसा किया जा सकता है?

फ्रांस के साथ विश्वसनीयता के मुद्दे हैं. रूस यूक्रेन पर हमला करने के बाद से अपने सैन्य उत्पादन को बढ़ाने और वैश्विक मांग और युद्धकालीन जरूरतों का जवाब देने के लिए संघर्ष कर रहा है. उधर फ्रांस के पास पनडुब्बी बनाने में 'सीज़र ट्रक-माउंटेड होवित्जर' की क्षमता है जो  दक्षता के मामले में पूरी दुनिया भर में सबसे मजबूत मानी जाती है. इस पर पूरी दुनिया का ध्यान है, लेकिन इसे बनाने में दो साल का वक्त लग सकता है.  

हथियारों के अलावा और कहां पर भारत के लिए अहम है फ्रांस

विज्ञान और प्रौद्योगिकी: भारत और फ्रांस अंतरिक्ष क्षेत्र में रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं. दोनों ने 2018 में अंतरिक्ष सहयोग के लिए मिलकर एक प्रोजेक्ट पर काम किया. दोनों उपग्रह नेविगेशन और संबंधित प्रौद्योगिकियों में भी सहयोग कर रहे हैं. भारत और फ्रांस संयुक्त रूप से महाराष्ट्र के जैतापुर में दुनिया के सबसे बड़े परमाणु पार्क का निर्माण कर रहे हैं.

ऊर्जा: भारत को 2008 में असैन्य परमाणु ऊर्जा में अंतरराष्ट्रीय सहयोग फिर से शुरू करने के लिए परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) से छूट की जरूरत थी. फ्रांस ने ये छूट दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. फ्रांस एनएसजी में भारत के प्रवेश का सक्रिय रूप से समर्थन करता है. इसके अलावा भारत और फ्रांस ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

व्यापार और वाणिज्यिक : भारत और फ्रांस दोनों के बीच महत्वपूर्ण द्विपक्षीय निवेश और व्यापार है. जनवरी से दिसंबर 2021 तक, माल (सैन्य उपकरणों को छोड़कर) में भारत-फ्रांस द्विपक्षीय व्यापार 1200 करोड़ का था.

भारतीय प्रवासी:  एक अनुमान के मुताबिक फ्रांस में एनआरआई सहित भारतीय समुदाय की संख्या लगभग 109,000 है. भारतीय मूल की बड़ी संख्या में लोग रीयूनियन द्वीप (2,80,000), गुआदेलूप (60,000), मार्टीनिक (6,000) और सेंट मार्टिन (300) के फ्रेंच प्रवासी क्षेत्रों में रहते हैं.

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