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UP Election 2022: Karhal में अखिलेश यादव और एसपी बघेल के बीच चुनावी जंग तेज, जानें करहल विधानसभा सीट का इतिहास

Karhal Seat: अखिलेश यादव के करहल से लड़ने के कारण ये हॉट सीट बन गई है. करहल में तीसरे चरण के तहत 20 फरवरी को वोटिंग होगी. 

UP Assembly Election: उत्तर प्रदेश के मैनपुरी को समाजवादी पार्टी का किला कहा जाता है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यहां की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. अखिलेश के यहां से लड़ने के कारण करहल हॉट सीट बन गई है. करहल में तीसरे चरण के तहत 20 फरवरी को वोटिंग होगी. 

समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाने वाला मैनपुरी ज़िला क्या इस बार एक्सप्रेसवे और किसानों की बात के बीच में बंटेगा या सपा अपने गढ़ और किले को बरकरार रख पाएगी, ये देखने वाली बात होगी. दरअसल 2017 के आंकड़े इस लिए दिलचस्प थे क्योंकि तब चार विधानसभा सीटों में से एक पर बीजेपी ने सेंध लगा के जीत हासिल की थी. 

आइए जानते हैं कैसे चल रहा करहल में प्रचार

करहल में सपा की ओर से करीब 20 लोगों की टीम बनाई गई है जो 10 गांव में रोज जाती है. इस छोटे से माइक और स्पीकर से वे हर गांव में जाते हैं और बात समझाते हैं. छोटी-छोटी बैठक होती हैं और उन्हें सब कुछ बता देते हैं. पूरी टीम साइकिल पर सवार होती है और वे साइकिल से एक गांव से दूसरे गांव जाते हैं और इसी के साथ अपनी बात सबको समझाने की कोशिश करते हैं.

मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से बाबूराम यादव लगातार पांच बार विधायक रहे. उनके इस रिकॉर्ड को आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है. लगातार पांच बार विधायक चुने जाने का रिकॉर्ड बनाने के लिए बाबूराम यादव को राजनीतिक बिसात पर समय-समय पर दांव और दल दोनों बदलने पड़े. उन्होंने वर्ष 1985 में लोकदल से विधानसभा चुनाव जीता.

इसके बाद उन्होंने दल बदलकर 1989 में जनता दल, 1991 से जनता पार्टी से चुनाव लड़ा और जीता. करहल में सपा की लहर आई तो वह साइकिल पर सवार हो गए. उन्होंने वर्ष 1993 और 1996 में समाजवादी पार्टी से करहल विधानसभा सीट पर चुनाव जीता. 

2011 की जनगणना के अनुसार, मैनपुरी शहरी समूह की जनसंख्या 133,078 थी, जिसमें पुरुष 69,788 और महिलाएं 63,290 थीं. साक्षरता दर 85.66 प्रतिशत थी. मैनपुरी जिले में कुल जनसंख्या 12.3 लाख है जिसमें यादव मतदाता 3 लाख हैं. उसके बाद लोधी राजपूत के साथ 2.6 लाख और 2 लाख जाटव और अन्य हैं. 2001 की जनगणना के अनुसार, मैनपुरी की जनसंख्या 89,535 थी. पुरुषों की आबादी 53% और महिलाएं 47% है. मैनपुरी में जनसंख्या का 15% 6 वर्ष से कम आयु का है. 

करहल में बीजेपी की महिलाओं ने संभाला मोर्चा

मैनपुरी ज़िले की दो सीटें पर चुनाव दिलचस्प है. एक करहल जहां से अखिलेश यादव लड़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर किशनी जहां पर इस बार बीजेपी अपने प्रचार के लिए सारे हतकंडे अपना रही है. एक ओर भजन-कीर्तन है दूसरी ओर महिलाओं की मंडली है और उसके साथ गांव-गांव में हो रहा है प्रचार. 

न सिर्फ यूपी की महिला मोर्चा, बीजेपी ने गुजरात की महिलाओं को भी काम पर लगाया है. गुजरात से यूपी आई एक कार्यकर्ता ने बताया कि गुजरात से हम आएं हैं. प्रधानमंत्री हमारे गुजरात के हैं और हमारे गौरव हैं, इसलिए वो गुजरात का अभिमान हैं. 

मैनपुरी जिले में कुल जनसंख्या 12.3 लाख है, जिसमें यादव के लिए 3 लाख मतदाता हैं, उसके बाद लोधी राजपूत के साथ 2.6 लाख और 2 लाख जाटव और अन्य हैं. 2001 की जनगणना के अनुसार, मैनपुरी की जनसंख्या 89,535 थी. पुरुषों की आबादी 53% और महिलाएं 47% हैं. मैनपुरी में, जनसंख्या का 15% 6 वर्ष से कम आयु का है. 

तेज होती जा रही है चुनावी जंग 

करहल सीट पर समाजवादी पार्टी (सपा) और बीजेपी के बीच चुनावी जंग तेज होती जा रही है. केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल ने नाटकीय अंदाज में सपा प्रमुख अखिलेश यादव के खिलाफ नामांकन दाखिल किया. औरैया जिले के भटपुरा निवासी एसपी सिंह बघेल को करहल में कड़ी टक्कर के लिए अखिलेश यादव के खिलाफ कड़ा मुकाबला माना जा रहा है.

एसपी सिंह बघेल ने जीत का भरोसा दिलाते हुए कहा कि मुझे यहां के वोटर्स पर पूरा भरोसा है. अखिलेश यादव ने कहा कि वह सीधे प्रमाण पत्र लेने आएंगे, कार्यकर्ता चुनाव लड़ेंगे और डेढ़ लाख से जीतेंगे. मैंने नामांकन दाखिल करने के दिन कहा था कि अगर अखिलेश, डिंपल, अक्षय, रामगोपाल, शिवपाल, धर्मेंद्र और तेज प्रताप अपने घर में वोट नहीं मांगते हैं, तो मेरा नाम एसपी सिंह बघेल नहीं. 

1989 में सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के यूपी के मुख्यमंत्री बनने के बाद, केंद्रीय मंत्री बघेल को उनके निजी सुरक्षा अधिकारी (पीएसओ) के रूप में तैनात किया गया था. एसपी सिंह बघेल से प्रभावित होकर, मुलायम सिंह यादव ने 1998 में उन्हें जलेसर लोकसभा सीट से पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा.

एसपी सिंह बघेल ने अपने पहले ही चुनाव में जीत हासिल की. उसके बाद 1999 और 2004 में वे फिर से सांसद चुने गए. उसके बाद, वह बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में शामिल हो गए. 2010 में बसपा ने उन्हें राज्यसभा भेजा. उन्हें राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी भी दी गई थी. लोकसभा 2014 के चुनाव में उन्होंने रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन चुनाव हार गए.

साल 2014 में हार के बाद एसपी सिंह बघेल ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया और बसपा छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. वर्ष 2015 में वे बीजेपी पिछड़ा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. 2017 के विधानसभा चुनाव में मंत्री टूंडला आरक्षित सीट से बीजेपी विधायक बने.उसके बाद, उन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया और पशु, लघु सिंचाई और मत्स्य पालन विभागों को संभाला.

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें आगरा लोकसभा सीट से टिकट दिया था. वहां से एसपी सिंह बघेल ने प्रचंड जीत दर्ज की. उन्हें आगरा से सांसद रामशंकर कठेरिया के स्थान पर चुनाव लड़ाया गया था. बाद में एसपी सिंह बघेल को केंद्रीय कैबिनेट में राज्य मंत्री बनाया गया.

एसपी सिंह बघेल गडरिया ओबीसी जाति से आते हैं और आगरा और फिरोजाबाद बेल्ट में उनकी मजबूत पकड़ है. बीजेपी ने अखिलेश को उनके गृह क्षेत्र में चुनौती देने के लिए दलित वोटों के योगदान के साथ "यादव बनाम गैर यादव" की लड़ाई शुरू की है.

पहले भी यादव परिवार को चुनौती दे चुके हैं एसपी सिंह बघेल

एसपी सिंह बघेल ने पहले भी यादव परिवार को चुनौती देने की हिम्मत की थी, लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में उनसे हार गए. 2009 में फिरोजाबाद से एसपी सिंह बघेल अखिलेश यादव से 67 हजार वोटों से हार गए थे. फिरोजाबाद उपचुनाव में एसपी बघेल डिंपल के बाद तीसरे स्थान पर रहीं, जो 13800 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं.

इसी तरह 2014 के लोकसभा चुनाव में एसपी सिंह बघेल अक्षय यादव से 1.14 लाख वोटों से हार गए थे. अब करहल विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाती है. दरअसल बीजेपी ने एक केंद्रीय मंत्री को करहल से टिकट देकर यह संदेश देने की कोशिश की कि अखिलेश यादव को वॉकओवर नहीं दिया गया है.

गौरतलब है कि करहल में 1993 से 2017 तक हुए छह विधानसभा चुनावों में सपा ने पांच बार जीत हासिल की है. 2007, 2012 और 2017 के चुनाव में सपा प्रत्याशी सोवरन सिंह यादव ने जीत हासिल की. 2017 के विधानसभा चुनाव में सोवरन सिंह यादव 38,405 मतों के अंतर से जीते थे. उन्हें 1,04,221 वोट मिले, जबकि बीजेपी उम्मीदवार रमा शाक्य को 65,816 वोट मिले. वह दूसरे स्थान पर रही.

करहल विधानसभा सीट पर कुल मतदाता 3 लाख 71 हजार के करीब हैं. इनमें 1 लाख 44 हजार यादव, 34 हजार शाक्य, 25 हजार राजपूत, 33 हजार जाटव, 16 हजार पाल, 14 हजार ब्राह्मण, 14 हजार मुस्लिम और 10 हजार लोधी मतदाता हैं. लखनऊ आगरा एक्सप्रेसवे इस करहल इलाके से होकर गुजरता है.  इसके बगल में एक राजमार्ग भी है जो इटावा और मैनपुरी जिले को जोड़ता है. करहल में शिक्षा प्रणाली बेहतर है क्योंकि लगभग 30 इंटर कॉलेज और लगभग 20 डिग्री कॉलेज हैं.

माना जा रहा है कि अखिलेश यादव ने दो वजहों से करहल को अपना ऑफिस बनाने का फैसला किया है. पहला कारण यह है कि सपा का गढ़ होने के कारण उन्हें केवल नामांकन दाखिल करने की जरूरत है, चुनाव प्रचार के लिए उन्हें करहल की सड़कों पर घूमने की जरूरत नहीं होगी. ऐसे में वह आसानी से पूरे राज्य में पार्टी के लिए प्रचार कर सकते हैं.

दूसरा कारण यह है कि मैनपुरी से लड़कर वह अवध के अलावा पश्चिमी यूपी में भी प्रभाव डाल सकता है. ऐसे में पूर्वांचल में उनकी पार्टी को लेकर किए जा रहे सर्वे बता रहे हैं कि वह बीजेपी को टक्कर दे रहे हैं. यानी अखिलेश के मैनपुरी आने से वो अवैध और पश्चिमी यूपी को भी बनाने की कोशिश कर सकते हैं.

मैनपुरी नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि रही है. नेताजी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मैनपुरी के करहल इलाके में की और बाद में जैन इंटर कॉलेज में शिक्षक बने, जहां से उन्होंने पढ़ाई की. इसी करहल क्षेत्र के निवासी नाथू सिंह यादव ने उन्हें राजनीति में लाने का काम किया. अखिलेश के इस फैसले से नाथू सिंह यादव के बेटे और पूर्व मंत्री सुभाष यादव बेहद खुश हैं.

करहल विधानसभा सीट के मुख्य बाजार में भी माहौल अखिलेश यादव के पक्ष में नजर आ रहा है. यहां दर्जनों लोगों की भीड़ खुलेआम अखिलेश का समर्थन करती नजर आई. सपा बीजेपी समर्थकों पर भारी पड़ती दिख रही है और खुलेआम दावा करती है कि अखिलेश यादव के पक्ष में माहौल है. लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र में बिना चुनाव लड़े यादव परिवार ने इतना काम किया है कि कोई नहीं कर सकता.

जाहिर है मैनपुरी की करहल सीट सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए काफी सुरक्षित सीट है. वह यहां से बिना कोई मेहनत किए आसानी से जीत हासिल कर सकते हैं. अब सवाल यह है कि क्या अखिलेश द्वारा लोकसभा सांसद रहते हुए विधानसभा चुनाव लड़ने का दांव खेलकर सत्ता में वापसी की कोशिशें संभव होंगी? सभी को इसके जवाब का इंतजार है और इसका जवाब 10 मार्च को ही मिलेगा जब चुनाव के नतीजे आएंगे.

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