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भारतीय सेना का यहूदी लड़ाकू, जो घुटनों पर ले आया पाकिस्तानी सेना को, जानिए उनके बारे में सबकुछ

Indo Pakistan War: साल 1971 में दुनिया के मानचित्र में बांग्लादेश नाम से एक नए देश का उदय हुआ, जिसमें मेजर जनरल जेएफआर जैकब ने अहम भूमिका निभाई थी.उनका परिवार मूल रूप से इराक का था.

Indo Pakistan War: भारत में 16 दिसंबर का दिन विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि 16 दिसंबर 1971 को हथियारों और सैन्य साजोसामान से लैस 93 हजार पाक सैनिकों ने भारतीय सेना के अदम्य साहस और वीरता के आगे घुटने टेक दिए थे. इसमें भारतीय सेना के पूर्वी कमान के स्टाफ ऑफिसर मेजर जनरल जेएफआर जैकब ने अहम भूमिका निभाई थी. मेजर जनरल जेएफआर जैकब यहूदी धर्म से ताल्लुक रखते थे. वह हमेशा खुद को सच्चा भारतीय बताते थे. आज आपको भारतीय सेना से जुड़े किस्से.

साल 1971 में दुनिया के मानचित्र में बांग्लादेश नाम से एक नए देश का उदय हुआ. जैकब का जन्म 2 मई 1921 को कोलकाता में एक यहूदी परिवार में हुआ था. उनका परिवार मूल रूप से इराक से था और 19वीं सदी में कोलकाता में आकर बस गए थे. 13  जनवरी 2016 को जैकब का निधन हो गया. साल 2010 में एक बार जैकब ने बोला था, "मुझे गर्व है कि मैं यहूदी हूं, लेकिन मैं पूरी तरह से भारतीय हूं."

द्वितीय विश्व युद्ध में लिया था हिस्सा

जैकब ने अपनी स्कूली शिक्षा पश्चिम बंगाल के कुर्सियांग में विक्टोरिया स्कूल से की. बोर्डिंग स्कूल में रहते हुए, वह बचपन में केवल स्कूल की छुट्टियों के दौरान ही घर आते थे. बचपन से ही वह युद्ध पर लिखी कहानियों और कविताओं में खूब दिलचस्पी दिखाते थे. टाइम्स ऑफ इजराइल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि उनके परिवार ने हिटलर के यूरोप से आए यहूदी शरणार्थियों के एक परिवार को अपने यहां शरण दी थी.

जैकब 18 साल की उम्र में नाजियों से लड़ने के लिए ब्रिटिश सेना में शामिल हो गए थे. हालांकि जैकब के पिता ने उनके सेना में भर्ती होने पर असहमति जताई थी, लेकिन बाद में उन्होंने उनके फैसले को स्वीकार कर लिया. उन्होंने 1942 में ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल महू से ग्रेजुएशन किया और फिर उत्तरी इराक, उत्तरी अफ्रीका, बर्मा (अब म्यांमार), सुमात्रा जैसे कई जगहों पर द्वितीय विश्व युद्ध में लड़ाई लड़ी. युद्ध समाप्त होने के बाद उन्होंने इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका के आर्टिलरी स्कूलों से ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की, जहां उन्होंने लेटेस्ट तोप और मिसाइलों की ट्रेनिंग ली थी. 

भारतीय सेना में उनकी भूमिका

स्वतंत्रता के बाद जैकब भारतीय सेना में शामिल हो गए और अलग-अलग रैंकों में 37 सालों तक सेवा की. टाइम्स ऑफ इजराइल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "यहूदी विरोधी भावना का सामना मुझे केवल ब्रिटिश सेना में ही करना पड़ा. भारतीयों में यह भावना नहीं है." 1963 में ब्रिगेडियर के पद पर पदोन्नत होने के बाद उन्होंने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया. बाद में 1967 में जैकब को मेजर जनरल के पद पर पदोन्नत किया गया था.

मेजर जनरल जैकब ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय सेना की पूर्वी कमान के चीफ ऑफ स्टाफ के रूप में कार्य किया. मार्च 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में वहां की सेना बंगाली राष्ट्रवादी आंदोलन को रोकने के लिए ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया था. जब युद्ध अपने चरम पर था तब तत्कालीन सेना अध्यक्ष सैम मानेकशॉ पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) पर आक्रमण करके चटगांव और आसपास के शहरों पर कब्जा करना चाहते थे. हालांकि कुछ भारतीय सेना के अधिकारी इस कदम को लेकर श्योर नहीं थे.

1971 की लड़ाई में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

इसके बाद जैकब ने  युद्ध की योजना बनाई जिसके तहत ढाका सहित पूरे पूर्वी पाकिस्तान पर कब्जा करना था. इसके तहत बीच के शहरों से बचते हुए राजधानी तक पहुंचने के लिए वैकल्पिक रास्तों का इस्तेमाल करना था. इस योजना को मात्र 15 दिनों में जमीन पर उतारा गया और भारतीय सेना ढाका में सफल घुसपैठ कर सकी. 16 दिसंबर 1971 को जैकब को पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी से आत्मसमर्पण कराने के लिए भेजा गया था. अपने इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि कैसे वे निहत्थे ही, केवल एक स्टाफ ऑफिसर के साथ, आत्मसमर्पण का ड्राफ्ट डॉक्यूमेंट लेकर ढाका पहुंचे थे.

जैकब ने पाकिस्तान के जनरल नियाजी को दस्तावेज सौंपा, जिसमें पाकिस्तानी सेना के बिना शर्त आत्मसमर्पण की बात कही गई थी. जैकब ने उन्हें निर्णय लेने के लिए 30 मिनट का समय दिया, जिसपर वे राजी हो गए थे. जैकब 1978 में सेना से रिटायर हुए और उन्हें पहले गोवा का और फिर पंजाब का राज्यपाल नियुक्त किया गया.

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