#SantKalicharanMaharaj #MahatmaGandhi #DharmaSansad # कालीचरण को तो संत कहा जाता था. संन्यासी की श्रेणी में रखा जाता था. अब उसने ऐसा बयान दे दिया है कि संत-महंत जैसी उपाधियां जिसे हासिल करने में दशकों बीत जाते हैं, उससे छीन लेनी चाहिए. कालीचरण ने महात्मा गांधी और एक धर्म विशेष को लेकर क्या कहा है, उसे अलग से बताने की जरूरत नहीं है. पिछले एक-दो दिन में आपने खूब सुना और देखा होगा. लेकिन ये बात शायद अनपढ़ होने की वजह से नहीं कही गई है. ये बात कुपढ़ होने की वजह से ही कही गई है. अनपढ़ शख्स ऐसा नहीं कहता. कुपढ़ शख्स ऐसा ही कहता है. और तभी तो तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी में ही अपनी कृति रामचरित मानस में ऐसे लोगों के लिए लिखा है, जो आज शब्दश: चरितार्थ होता नजर आ रहा है. देखिए अविनाश राय (Avinash Rai) का विश्लेषण.
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