देहरादून: पुलिस की फाइलों में दफ्न होकर रह जाता है साइबर क्राइम, हैकर्स उठाते हैं इस बात का फायदा
कंपनियों की तरफ से डेटा ना मिलने की वजह से साइबर क्राइम के मामले फाइलों में सिमट कर रह जाते हैं. किसी को भी ट्रेस करने के लिए जेटा की जरुरत होती है जो आसनी से उपलब्ध नहीं हो पाता.

देहरादून: साइबर क्राइम पूरे देश के लिए बड़ी चुनौति है और इससे अछूता उत्तराखंड भी नहीं है. साइबर क्राइम के मामले दर्ज तो हो जाते हैं, लेकिन पुलिस को भी डेटा ना मिलने से ये मामले साइबर सेल की फाइलों में ही दफन होकर रह जाते हैं.
डीआईजी अरुण मोहन जोशी की क्या है राय
देहरादून की ही बात करें तो पिछले आठ महीनों में सौ से ज़्यादा मामले हैकरों द्वारा किसी की सोशल साइड हैक करने और फेसबुक क्लोन कर एक दूसरे से पैसे मांगने जैसे मामले शामिल हैं. ये सभी मामले दर्ज तो हुए है लेकिन इन मामलों का निस्तारण कब तक होगा इसपर पुलिस की चिंताएं साफ देखने को मिलती हैं. डीआईजी अरुण मोहन जोशी बताते हैं की ये टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस हो गई है की इसको ट्रेस करना बहुत मुश्किल हो जाता है और सोशल मीडिया में डेटा मिलना भी इतना आसान नहीं है.
साइबर एक्सपर्ट क्या कहते हैं
वहीं दूसरी तरफ साइबर एक्सपर्ट का कहना है की यो वाक़ई में बड़ी चुनौती है लेकिन इससे निपटने के लिए सोशल साइट्स की कम्पनियों के साथ पुलिस का टाई-अप होना ज़रूरी है, ऐसे में डेटा जब मिल सकेगा तो साइबर अपराधों के निस्तारण में आसानी होगी.
साइबर क्राइम से जुड़े मामलों के लिए अलग से एक विंग तैयार
पुलिस विभाग ने हर जिले में साइबर क्राइम से जुड़े मामलों के लिए अलग से एक विंग तैयार की है. जो इन मामलों का निस्तारण करे लेकिन मामले साइबर थाने की फाइलों में ही रह जाते हैं, जिसकी मुख्य वजह है सोशल साइट्स कंपनियों की तरफ से डेटा ना मिलना और ऐसे में साइबर अपराधी पुलिस की गिरफ्त से बच जाते हैं और इसी का फायदा उठाकर साइबर अपराधों को अंजाम देते रहते हैं.
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