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Atiq Ahmed: तांगे वाले का अनपढ़ बेटा कैसे बना नंबर वन डॉन? जानें अतीक अहमद के गुनाह और सियासत की दुनिया से जुड़ी हर कहानी

Atiq Ahmed Story: उमेश पाल हत्याकांड में नाम आने के बाद अतीक अहमद को खुद के एनकाउंटर का डर सता रहा है. एक तांगे वाले के बेटे से लेकर माफिया बनने तक अतीक के गुनाहों का बहीखाता बहुत लंबा है.

Atiq Ahmed Biography: प्रयागराज के चर्चित उमेश पाल शूटआउट केस में नामजद होने के बाद माफ़िया अतीक अहमद एक बार फिर सुर्ख़ियों में है. अपने गुनाह की डायरी में सबसे सनसनीखेज वारदात की स्क्रिप्ट लिखने के चलते एक तरफ उसे पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने का डर सता रहा है तो वहीं दूसरी तरफ सियासी रसूख के चलते विपक्षी पार्टियों के तमाम दिग्गज नेता उसके खिलाफ हो रहे कानूनी एक्शन के सामने दीवार बनकर माफिया का बचाव करते नज़र आ रहे हैं.

अतीक के गुनाहों की लिस्ट जितनी लम्बी है, उससे कतई कम उसकी सियासी उपलब्धियां नहीं है. वह माफिया है, गैंग लीडर है, हिस्ट्रीशीटर है, बाहुबली है, दबंग है तो साथ ही आतंक का दूसरा नाम भी है, लेकिन इन सबके बावजूद पांच बार विधायक और एक बार उस फूलपुर सीट से सांसद भी रहा है, जहां से कभी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू लोकसभा  का चुनाव लड़ते थे. डर-आतंक और दबंगई के बावजूद अतीक के ख़िलाफ़ सौ से ज़्यादा आपराधिक मुक़दमे दर्ज हैं, लेकिन ज़्यादातर मामलों में सिस्टम उसके इशारे पर कुछ इस तरह नाचता है कि आज तक उसे एक भी मामले में सज़ा नहीं हो पाई है. अतीक की हनक और भौकाल का अंदाजा ऐसे भी लगाया जा सकता है कि हाईकोर्ट के दस जजों ने उसके मुकदमों की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. 

माफिया अतीक अहमद का आतंक

उमेश पाल शूटआउट केस के बाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में टिप्पणी करते हुए लिखा है कि ऐसा लगता है कि प्रयागराज के कुछ इलाकों में अब भी क़ानून का नहीं बल्कि अतीक का राज चलता है. इन इलाकों में खाकी का नहीं बल्कि अतीक का इक़बाल बोलता है. चार साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख़ टिप्पणियों के साथ उसे यूपी से बाहर की जेल में रखे जाने का आदेश दिया था. अतीक के बारे में कहा जाता है कि वह इतना शातिर और खूंखार है कि अपराध से लेकर कारोबार और दबंगई से लेकर सियासत तक में जो भी उसके रास्ते आया, उसका अंजाम चांद बाबा से लेकर उमेश पाल तक एक जैसा ही हुआ. योगी राज में भी जेल में रहते हुए वह अपहरण कराकर अगवा हुए शिकार को कैदखाने में बुलाकर उनकी पिटाई करता था.

तांगे वाले के बेटा बना अपराध जगत का बादशाह

एक तांगे वाले का अनपढ़ बेटा अतीक इतना महत्वाकांक्षी है कि पैसों की खातिर जुर्म की दुनिया में कदम रखने के बाद वह कुछ ही दिनों में अपराध जगत का बेताज बादशाह बन गया. अपने गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए उसने सियासत को कवच के तौर पर इस्तेमाल किया और अपराध व राजनीति के दम पर करोड़ों नहीं बल्कि अरबों का आर्थिक साम्राज्य खड़ा कर लिया. अतीक को गुनाहों की दुनिया इतनी पसंद आ गई है कि उसने अब पूरे परिवार को इसमें शामिल कर लिया है. वह खुद गुजरात की साबरमती जेल में बंद है तो छोटा भाई अशरफ यूपी की बरेली जेल में. बड़ा बेटा उमर लखनऊ जेल में कैद है तो दूसरा बेटा अली अहमद प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में. तीसरे बेटे असद पर उमेश पाल शूटआउट केस में ढाई लाख रुपये का इनाम घोषित है तो पत्नी शाइस्ता परवीन फरार हैं. एहजम और आबान नाम के दो नाबालिग बेटे बाल संरक्षण गृह में हैं.   

अब बात करते हैं माफिया अतीक के अतीत की. एक वह दौर था जब अपराधी सियासत की शतरंजी बिसात पर मोहरे की तरह इस्तेमाल होते थे. वह नेताओं के लिए जान लेने व देने में कतई नहीं हिचकते थे, लेकिन 90 के दशक की शुरुआत से पहले क्षेत्रीय पार्टियों की आसमान छूती महत्वाकांक्षाओं ने अपराधियों को ही सत्ता में भागीदार बना दिया. जो क्रिमिनल एनकाउंटर से बचने व दूसरे फायदों के लिए सत्ताधारी नेताओं की परिक्रमा करते नहीं थकते थे, वह खुद जनता के मुख्तार बनने लगे. क्रिमिनल्स के सफेदपोश बनने और अपराध के राजनीतिकरण के बदलाव वाले उस दौर में सबसे चर्चित नाम प्रयागराज के अतीक अहमद का है. 

करीब 58 साल के अतीक अहमद के पिता हाजी फ़िरोज़ भी आपराधिक प्रवृत्ति के थे. वो तांगा चलाते थे. बेहद मामूली घर के हाजी फ़िरोज़ की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह अतीक समेत अपनी दूसरी औलादों को बेहतर तालीम दिला सकते. पिता के नक़्शे कदम पर चलने की वजह से अतीक के खिलाफ सन 1983 में जो पहली एफआईआर दर्ज हुई. उस वक्त उसकी उम्र महज़ अठारह साल थी. कुछ ही सालों में अतीक के गुनाहों की तूती बोलने लगी, तो वह जिले की क़ानून व्यवस्था के लिए खतरा बनने लगा. अतीक और पुलिस में लुकाछिपी का खेल आम हो गया था. एक वक़्त ऐसा भी आया जब अतीक और उसके करीबियों पर पुलिस इनकाउंटर में मारे जाने का खतरा मंडराने लगा. 

अतीक का राजनीतिक करियर

पुलिस इनकाउंटर से बचने के लिए अतीक ने साम्प्रदायिक कार्ड खेला और 1989 में हुए यूपी के विधानसभा चुनावों में इलाहाबाद वेस्ट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमाई. उस दौर के हालात के चलते अतीक को चुनाव में कामयाबी भी मिल गई और वह माननीय विधायक बन गया. 1989  के इस चुनाव में तत्कालीन पार्षद और अतीक जैसी ही आपराधिक छवि का चांद बाबा भी मैदान में उतरा था. अतीक को यह बात इतनी नागवार गुजरी थी कि वोटिंग के बाद नतीजे आने से पहले ही उसने रोशन बाग़ इलाके के कबाब पराठे की दुकान पर उसे अपने गुर्गों के साथ मिलकर गोली और बमों से मौत के घाट उतार दिया. 

इसके बाद वह इसी इलाहाबाद सिटी वेस्ट सीट से 1991, 1993, 1996 और 2002 में भी लगातार जीत हासिल करता रहा. पहला दो चुनाव वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता. तीसरे चुनाव में भी वह आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर ही मैदान में उतरा, लेकिन सपा-बसपा गठबंधन ने उसे अपना समर्थन दिया और उसके खिलाफ कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा किया. 1996 में वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक चुना गया तो 2002 में डा० सोनेलाल पटेल के अपना दल से. 2002 के चुनाव के वक़्त वह अपना दल का प्रदेश अध्यक्ष बना था और हेलीकाप्टर से यूपी में कई जगहों पर प्रचार के लिए गया था. उसने अपने साथ अपना दल के दो और उम्मीदवारों को जीत दिलाई थी. साल 2004 में फिर से सपा में न सिर्फ उसकी वापसी हुई, बल्कि वह मुलायम सिंह की पार्टी से उस फूलपुर से सांसद चुना गया, जो कभी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की सीट हुआ करती थी. 2004 में सांसद चुने जाने तक अतीक ने जिस भी चुनाव में किस्मत आजमाई, उसे हर जगह कामयाबी मिली.    

राजूपाल हत्याकांड के बाद शुरू हुआ पतन

25 जनवरी साल 2005 को प्रयागराज में एक ऐसी घटना घटी, जो न सिर्फ इतिहास बन गई, बल्कि उसने अतीक और उसके परिवार के सियासी करियर को तबाह करके रख दिया. इस घटना के बाद भी अतीक ने लोकसभा और विधानसभा के कई चुनाव लड़े, लेकिन हरेक चुनाव में नाकामी ही उसके हिस्से आई.  दरअसल सांसद बनने के बाद अतीक को विधानसभा की सदस्यता छोड़नी पडी. अतीक ने अपने इस्तीफे से खाली हुई सीट पर अपने छोटे भाई खालिद अजीम उर्फ़ अशरफ को सपा का टिकट दिलवा दिया. अशरफ के मुकाबले बीएसपी ने क्रिमिनल राजू पाल को टिकट दिया. दो बाहुबलियों की लड़ाई में अशरफ चुनाव हार गया और राजू पाल विधायक चुन लिया गया. विधायक बनते ही राजू पाल पर कई बार जानलेवा हमले हुए. 

25 जनवरी 2005 को शहर के धूमनगंज इलाके में विधायक राजू पाल की दिन दहाड़े हत्या कर दी गईं. विधायक की हत्या का आरोप अतीक और अशरफ पर लगा. इस मामले में दोनों भाइयों को जेल भी जाना पड़ा. राजूपाल की हत्या के बाद सिटी वेस्ट सीट पर दूसरा उपचुनाव हुआ. तत्कालीन मुलायम सरकार ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया और सरकारी मशीनरी की मदद से अशरफ विधायक चुन लिया गया. इसी सीट से साल 2007 के चुनाव में अशरफ और 2012 में अतीक को हार का सामना करना पड़ा. राजू पाल की हत्या का आरोप अतीक के गले की ऐसी फांस बनी, जिससे वह आज तक नहीं उबर सका और वह उसके लिए नासूर बन चुका है और अब मिट्टी में मिलने की कगार पर पहुंच गया है. 

अतीक ने साल 2009 के लोकसभा चुनाव में प्रतापगढ़ से अपना दल के टिकट, 2014 में श्रावस्ती सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट, 2018 में फूलपुर सीट के उपचुनाव में आज़ाद और 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर वाराणसी सीट से पीएम मोदी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन सभी जगह उसे करारी हार का सामना करना पड़ा. श्रावस्ती को छोड़कर लोकसभा के बाकी तीन चुनावों में तो उसकी जमानत तक जब्त हो गई.   

अतीक अहमद ने खड़ा किया अरबों का साम्राज्य

ऐसा नहीं है कि सफेदपोश बनने के बाद अतीक ने काली करतूतों से तौबा कर ली हो, बल्कि यह कहा जा सकता है कि वक़्त के साथ उसके अपराधों की संख्या बढ़ती चली गई. उसने सियासत को ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया और हत्या-जानलेवा हमले, डकैती और अपहरण जैसी वारदातों को अंजाम देता रहा. सियासत में स्थापित होने के बाद उसने संगठित अपराधों पर ज़्यादा फोकस किया और आपराधिक घटनाओं के बजाय अपना आर्थिक साम्राज्य मजबूत करने में लग गया. तमाम बेनामी सम्पत्तियां बनाईं. करीबियों के नाम पर करोड़ों-अरबों के ठेके लिए और बाद में कमीशन लेकर उन्हें दूसरों को दे दिया. देश के तकरीबन एक दर्जन राज्यों में अतीक का कारोबार फैला हुआ है. उसकी नामी और बेनामी सम्पत्तियां हैं. रियल स्टेट के रेलवे के स्क्रैप के कारोबार के अलावा उसकी आमदनी का सबसे बड़ा जरिया अरबों-खरबों के ठेके लेने का है. ठेके के कई काम वह अपने लोगों से कराता है तो साथ ही तमाम ठेके कुछ कमीशन लेकर दूसरों को ट्रांसफर कर देता है. रंगदारी-वसूली और गुंडा टैक्स से भी उसने अरबों रुपये कमाए हैं. 

 1995 में लखनऊ के चर्चित स्टेट गेस्ट हाउस कांड में भी अतीक का नाम उछला था. अतीक ने सफेदपोश बनने का किस तरह दुरूपयोग किया, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसके खिलाफ नब्बे फीसदी से ज़्यादा मुक़दमे जनप्रतिनिधि बनने के बाद ही दर्ज हुए. कभी महंगी गाड़ियों के काफिले तो कभी  घोड़े पर सवार होकर असलहाधारियों की फ़ौज के साथ जब वह सड़कों पर चलता था तो फिल्मों के डॉन सरीखा नज़र आता था. संगठित अपराधों को अंजाम देने और खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत करने की वजह से उसे माफिया कहा जाने लगा.   

अतीक अहमद के गुनाहों का बहीखाता

अतीक अहमद इंटर स्टेट गैंग का संचालक है. उसके गैंग का नंबर आईएस -227 है. उसके गैंग में 121 एक्टिव मेंबर हैं. गैंग के पास असलहों का जखीरा है. प्रयागराज पुलिस ने उसकी हिस्ट्रीशीट भी खोल रखी है. शहर के खुल्दाबाद थाने में उसकी हिस्ट्रीशीट का नंबर 53 A है. अतीक के खिलाफ अब तक करीब ढाई सौ मुक़दमे दर्ज हो चुके हैं. इनमें मायावती राज में एक ही दिन में दर्ज किये गए सौ से ज़्यादा वह मुक़दमे भी शामिल हैं, जिन्हे हाईकोर्ट के आदेश पर बाद में स्पंज कर दिया गया था. उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों की संख्या अब बढ़कर 101 हो गई है. बड़ी संख्या में उसके मुक़दमे वापस लिए जा चुके हैं, जबकि सबूतों और गवाहों के अभाव में तमाम मुकदमों में वह बरी हो चुका है. अभी तक उसे किसी भी मुक़दमे में सज़ा नहीं मिल सकी है. मौजूदा समय में भी उसके खिलाफ अट्ठावन मुक़दमे एक्टिव हैं. इनमें से पचास के करीब मुक़दमे कोर्ट में पेंडिंग हैं, जबकि बाकी मामलों में अभी जांच पूरी नहीं हो सकी है.

अतीक अहमद को माफिया- बाहुबली और डॉन यूं ही नहीं कहा जाता. सख्त सरकार और जेल में रहने के बाद भी उसके जुर्म का सिक्का चलता रहता है. वह जेल की सलाखों के पीछे से भी अपनी सलतनत चलाने में माहिर है. देवरिया जेल में कैद रहते हुए उसने न सिर्फ लखनऊ के एक कारोबारी का अपहरण कर उसे जेल बुलवाया, बल्कि वहां उसकी पिटाई कर उसका वीडियो भी सिर्फ इसलिए वायरल किया ताकि बाहर उसके नाम की दहशत बनी रहे. इसी तरह उसने प्रयागराज के एक कारोबारी का भी अपहरण कराकर उसे जेल बुलवाया और खुद उसकी पिटाई भी की थी.

उमेश पाल शूट आउट केस में वारदात को अंजाम देने वाले एक भी शूटर ने चेहरे पर नकाब नहीं लगा रखा था. अतीक के बेटे असद ने भी पहचान छिपाने की कोई कोशिश नहीं की थी. शूट आउट को फ़िल्मी अंदाज़ में बेख़ौफ़ तरीके से सिर्फ इसीलिए अंजाम दिया गया ताकि अतीक और उसके गैंग का टेरर फिर से कायम हो सके. प्रयागराज की शूटआउट यूनिवर्सिटी में गुर्गों के साथ घुसकर वहां के टीचर्स को सरेआम पिटाई किये जाने के मामले में फरवरी 2017 से वह जेल में है. लखनऊ के कारोबारी मोहित अपहरण कांड में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वह पिछले करीब चार साल से गुजरात की अहमदाबाद जेल में है. सुप्रीम कोर्ट ने बेहद तल्ख़ टिप्पणियों के साथ उसे यूपी से बाहर किसी दूसरे राज्य की जेल में ट्रांसफर किये जाने के आदेश दिए थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट अतीक के साथ ही उसके परिवार वालों के मुकदमों की सुनवाई करते हुए तमाम चौंकाने वाली टिप्पणियां कर चुका है. हाईकोर्ट के दस जज तो अतीक से जुड़े मुकदमों की सुनवाई से खुद को अलग भी कर चुके हैं.  

अतीक के परिवार पर कानूनी शिकंजा

अतीक का छोटा भाई पूर्व सपा विधायक अशरफ इन दिनों यूपी की बरेली जेल में बंद है. जुलाई 2020 में वह गिरफ्तार किया गया था. गिरफ्तारी के वक़्त उसके खिलाफ 33 मुक़दमे दर्ज थे. ढाई सालों में जेल में रहते हुए उस पर 19 और आपराधिक केस दर्ज हुए हैं और मुकदमों की संख्या अब बढ़कर 52 हो गई है. अशरफ पर कई सालों तक एक लाख रुपये का इनाम घोषित था. दो नाबालिग छोटे बेटों को छोड़कर अतीक के बाकी तीनों बेटों के खिलाफ भी क्रिमिनल केस दर्ज हैं. सबसे बड़ा बेटा उमर लखनऊ तो दूसरे नंबर का अली अहमद प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में कैद है. सीबीआई द्वारा दो लाख रुपये का इनाम घोषित किये जाने के बाद बड़े बेटे उमर ने लखनऊ में सरेंडर किया था. दूसरे नंबर के बेटे अली ने पांच करोड़ रुपये की रंगदारी मांगने के मामले में पिछले साल जुलाई महीने में प्रयागराज कोर्ट में सरेंडर किया था. तीसरा बेटा असद उमेश पाल शूट आउट केस में मोस्ट वांटेड है और उस पर ढाई लाख रुपये का इनाम रखा गया है. 

माफिया अतीक इतना शातिर दिमाग है कि वह सिस्टम को खरीद लेने और आतंक फैलाकर दबाने में यकीन रखता है. अतीक के खिलाफ तमाम बड़ी कार्रवाइयां करने वाले यूपी पुलिस के पूर्व आईजी रिटायर्ड आईपीएस अफसर लाल जी शुक्ल का साफ़ तौर पर कहना है कि पुलिस और दूसरे महकमों के तमाम लोगों ने कभी अतीक को मोहरे की तरफ इस्तेमाल किया तो कभी उससे मिलने वाले उपहारों की लालच उसके इशारे पर नाचते रहे. सरकारी तंत्र की मिलीभगत और मेहरबानी के चलते ही उसने अरबों का साम्राज्य खड़ा कर लिया. गुनाहों की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया और देश विधानसभा से लेकर देश की संसद में पहुंचकर माननीय बन गया. लाल जी शुक्ल के मुताबिक़ अपनी राह में रुकावट बनने वाले किसी भी शख्स को उसने नहीं छोड़ा. चांद बाबा से लेकर उमेश पाल तक सबका एक ही अंजाम कराया. उनका कहना है कि जिन लोगों पर अतीक जैसे खतरनाक माफिया पर शिकंजा कसने की ज़िम्मेदारी थी, वह उसका बचाव करते थे. सरकारी मशीनरी से लेकर सियासी पार्टियों ने ही उसे आज इस मकाम तक पहुंचा दिया है.   

योगी राज में हुईं कई बड़ी कार्रवाइयां 

योगीराज में अतीक और उसके गुर्गों के साथ ही तमाम करीबियों के खिलाफ भी बड़ी कार्रवाइयां की गई हैं.  उसकी कमर तोड़ दी गई है, लेकिन गुनाह की दुनिया का खात्मा होना अभी पूरी तरह बाकी है. उमेश पाल शूट आउट केस के बाद जारी किये गए आंकड़ों के मुताबिक़ योगी राज में माफिया अती. के गैंग पर कुल 144 कार्रवाइयां की गई हैं. गैंग से जुड़े हुए 14 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. 22 करीबियों की हिस्ट्रीशीट खोली गई है. 14 लोगों के खिलाफ गुंडा एक्ट की कार्रवाई की गई है. 68 शस्त्र लाइसेंस रद्द किये गए हैं. दो लोगों को जिला बदर किया गया है. गैंगस्टर एक्ट के तहत 415 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई है. 751 करोड़ रुपये की अवैध सम्पत्तियों का ध्वस्तीकरण किया गया है. इसके अलावा ठेके-टेंडर और दूसरे अवैध कामों पर 1200 करोड़ रुपये से ज़्यादा की चोट की गई है.

अतीक को कुल मिलाकर 2368 करोड़ रुपये की आर्थिक चोट दी गई है। हालांकि जानकारों का दावा है किस दो अरब से ज़्यादा की आर्थिक चोट के बावजूद उसके साम्राज्य पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा है. उसके खिलाफ ईडी ने मनी लांड्रिंग का भी केस दर्ज किया है. काली कमाई को लेकर माफिया के कई करीबी ईडी की रडार पर हैं. तमाम मामलों में गैंग के कई सदस्यों की जमानत कोर्ट से निरस्त कराई जा रही है. शहर के लूकरगंज इलाके में अतीक के कब्ज़े से खाली कराई गई ज़मीन पर गरीबों के लिए बेहद कम कीमत पर फ़्लैट बनाए जा रहे हैं. हालांकि इन सारी कवायदों के बावजूद माफिया की दहशत की दुनिया का अभी पूरी तरह से खात्मा नहीं हो सका है.  

अतीक अहमद को मिट्टी में मिलाने का काम शुरू

वरिष्ठ पत्रकार रतिभान त्रिपाठी के मुताबिक अतीक जैसे सफेदपोश माफिया रसूखदार ज़रूर रहे हैं, लेकिन अगर सरकारों ने मजबूत इच्छाशक्ति दिखाई होती और अफसरान ईमानदारी से काम करते तो बाहुबली के तिलिस्म को तोड़ना कतई मुश्किल भी नहीं था. उनका दावा है कि सरकारी तंत्र अतीक के इशारों पर नाचता रहा है. माफिया का संरक्षण करता रहा है. सियासी उपयोगिता के चलते ही मायावती ने दो महीने पहले अतीक की पत्नी को प्रयागराज से अपनी पार्टी की तरफ से मेयर का उम्मीदवार बनाया था और अब खुलकर परिवार का बचाव कर रही हैं. हालांकि यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री और कभी अतीक के दबदबे वाली इलाहाबाद पश्चिमी सीट से लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए सिद्धार्थनाथ सिंह का कहना है कि माफिया के गुनाहों के ताबूत में अब आख़िरी कील ठोंकना ही बाकी है. सीएम योगी की मंशा के मुताबिक़ बाहुबली अतीक बहुत जल्द ही पूरी तरह मिट्टी में मिला दिया जाएगा. हालांकि अतीक के परिवार का कहना है कि वह गुंडा -माफिया और बाहुबली नहीं बल्कि गरीबों और मजलूमों का रहनुमा है. वह अरसे से सियासी साजिश का शिकार होता रहा है. सियासी फायदे की वजह से ही अब उसका इनकाउंटर किया जा सकता है. कहा जा सकता है कि सरकारी तंत्र और सियासी पार्टियों ने भले ही अतीक को ठिकाने लगाने के बजाय अपने फायदे की लालच में हमेशा उसे संरक्षण दिया हो, लेकिन अतीक जैसे माफियाओं को लेकर उस समाज को भी नये सिरे से सोचने की ज़रुरत है, जो उसे अपने रहनुमा के तौर पर चुनकर संसद और विधानसभा भेजती रही है.

ये भी पढ़ें- UP News: 'अतीक अहमद का एनकाउंटर करने वाले अफसर के लिए खुलेंगे स्वर्ग के द्वार', बीजेपी नेता का बयान

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