Diwali 2022: इंदौर के इस प्राचीन मंदिर में चढ़ाए जाते हैं पीले चावल, हो चुके हैं ये 3 चमत्कार!
Indore News: इंदौर के महालक्ष्मी मंदिर में दीपावली के समय 5 दिवसीय महोत्सव मनाया जाता है. इस बार सूर्य ग्रहण के कारण 4 दिन उत्सव मनाया जाएगा. यह धनतेरस से भाई दूज तक चलता है.
Madhya Pradesh News: हिंदू धर्म की मान्यताओं के आधार पर दिपावली (Diwali 2022) के पर्व पर महालक्ष्मी का पूजन करने से घर में लक्ष्मी का आगमन होता है. इसलिए महालक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है. इंदौर में भी एक ऐसा प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi temple) है जहां दीपावाली के पर्व पर लाखों लोगों की भीड़ जुटती है और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए पूजन अर्चन की जाती है. दरअसल इंदौर (Indore) के हृदय स्थल राजवाड़ा पर सबसे पुराना महालक्ष्मी मंदिर है. यह इंदौर के प्राचीन मंदिरों में से एक है. यहां महालक्ष्मी के दर्शन करने के लिए इंदौर शहर ही नहीं आस पास के जिलों से भी लोग आते हैं.
क्या है परंपरा
मंदिर के पुजारी पंडित दिनेश उज्जैनकर के अनुसार होलकर कालीन मंदिर की 1833 में इंदौर के राजा हरि राव होलकर ने पुराने मकान में माताजी की मूर्ति की स्थापना की थी जिसके बाद से ही होलकर परिवार नवरात्रि और दीपावली पर दर्शन करने लगातार आता था. बताया जाता है कि होलकर खजाने को खोलने के पहले महालक्ष्मी के दर्शन किए जाते थे जिसके चलते राज परिवार को कभी भी लक्ष्मी की कमी महसूस नहीं हुई. तब से ही आज तक यह परंपरा कायम है.
क्या हैं तीन चमत्कार
पंडित उज्जैनकर ने बताया कि इस मंदिर में अब तक तीन बार ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं लेकिन हर बार माताजी को आंच तक नहीं आई है. पहली मर्तबा 1928 में मंदिर कच्ची हालत में था जब धराशायी हुआ तो लकड़ियों के पाठ कुछ इस तरह गिरे जिससे लकड़ियों के पाठ से माताजी का कवच बन गया और माताजी को खरोंच तक नहीं आई. इसके बाद दूसरी मर्तबा 1972 मंदिर में आग लग गई थी तब पूरा मंदिर जलकर खाक हो गया था लेकिन माताजी को आग भी न जला सकी. ऐसे ही तीसरा हादसा सन 2011 में हुआ जब मंदिर की छत से प्लास्टर गिरा तो न तो मूर्ति को कुछ हुआ और न ही पुजारी को खरोंच आई, यह सब माताजी का चमत्कार हैं.
आते हैं लाखों श्रद्धालु
दीपावली के समय 5 दिवसीय महोत्सव मनाया जाता है. इस बार सूर्य ग्रहण के कारण 4 दिन उत्सव मनाया जाएगा. धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक मनाया जाता है. दीपावली के दिन सवेरे 3 बजे से मंदिर खोल दिया जाता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. श्रद्धालु दिनभर लंबी लाइनों में खड़े होकर दर्शन करते हैं. 11 पंडितों द्वारा माताजी का अभिषेक किया जाता है. विशेष श्रृंगार कर आरती की जाती है.
भक्त ले जाते हैं चावल
वहीं दिपावली के अवसर पर भक्तों द्वारा पीले चावल देकर माता को आमंत्रित कर घर ले जाने के लिए मनोकामना की जाती है. भक्त पीले चावल देली पर रखते हैं और उनसे कहा जाता है कि हमारे घर में पधारें और सुख समृद्धि लाएं, हमारे अच्छे दिन बीतें हम भी माताजी से यही कामना करते हैं. सभी भक्तों के दिन समृद्धि से बीतें और उनका आशीर्वाद बना रहे. भक्तों द्वारा जो चावल चढ़ाए जाते हैं उनमें से कुछ चावल मन्नत के रूप में भक्त लेकर जाते हैं. उसे घर की तिजोरी और दुकान के गल्ले में रखते हैं ताकि वर्षभर बरकत हो सके. यह सिलसिला मंदिर की स्थापना के बाद से ही अनवरत जारी है.
रियासत की श्रद्धा का प्रतीक
बताया जाता है ये मंदिर होलकर रियासत की श्रद्धा का प्रतीक होने के साथ-साथ समूचे इंदौरवासियों के लिए भी बहुत महत्व रखता है. राजवाड़ा में होलकर रियासत के दफ्तर में दाखिल होने से पहले अधिकारी, कर्मचारी महालक्ष्मी मंदिर के अंदर जाकर जरूर दर्शन करते थे. वहीं अब आस पास के जितने भी व्यापारी हैं वे सुबह महालक्ष्मी के दर्शन करने के बाद ही अपना व्यापार शुरू करते हैं. बता दें कि, राजवाड़ा के समीप सुभाष चौक पर दुर्गा मंदिर है जिसके बाद राजवाड़ा पर यह महालक्ष्मी मंदिर है. इसके बाद आगे चलकर पंद्रिनाथ पर हरसिद्धि मंदिर आता है जिसका सिलसिलेवार दर्शन करने की मान्यता है.
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