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Chhattisgarh: एक ऐसा कलाकार जो 140 छत्तीसगढ़ी वाद्य यंत्रों को आज भी है संजोए, जानिए उस शख्स की दिलचस्प कहानी

Chhattisgarh News: समय के साथ छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा विलुप्त होती जा रही है. लेकिन आज भी छत्तीसगढ़ में कई ऐसे लोग हैं जो अपनी संस्कृति और परम्परा को संजोए के रख रहे है उनमें से एक है संजू सेन

Chhattisgarhi Musical Instruments: समय के साथ- साथ छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा विलुप्त होती जा रही है. लेकिन आज भी छत्तीसगढ़ में कई ऐसे लोग हैं जो अपनी संस्कृति और परम्परा को बरकरार रखने के साथ लोगों तक इसे परोसने के प्रयास में जुटे हुए हैं. इन्हीं में से एक है बालोद जिले के तवेरा गांव के रहने वाले संजू सेन. जो छत्तीसगढ़ी परम्परा और संस्कृति को सहेजने के लिए अनूठा तरीका अपनाया है.

140 छत्तीसगढ़ी वाद्य यंत्रों को संग्रह करके रखे हैं संजू सेन
शेर की दहाड़, चिड़ियों की चहचहाहट या फिर झरने की आवाज, कृत्रिम रूप से तैयार करने वाले ये है बालोद जिले के तवेरा गांव के रहने वाले संजू सेन. जिन्होंने एक दो नहीं बल्कि 140 तरह के छत्तीसगढ़ी वाद्य यंत्र अपने पास संभाल कर रखे हैं. बस्तर से लेकर सरगुजा तक विभिन्न क्षेत्रों में जाकर छत्तीसगढ़ी वाद्य यंत्रों के बारे में जानने और उसे बजाने के गुर सीखने का लगन संजू सेन में है.

इसके चलते वह वाद्य यंत्रों के बारे में पहले तो वह जानते और समझते हैं. और फिर उसे तैयार भी खुद से करते हैं. संजू सेन का मानना है कि किसी देश, प्रदेश या क्षेत्र के संस्कृति और परम्परा की पहचान वहां के रहन सहन और वेशभूषा के साथ वाद्ययंत्रों से होती है. इसी वजह से उन्होंने छत्तीसगढ़ी वाद्ययंत्रों को सहेजने का फैसला लिया और आज उन्हीं वाद्ययंत्रों के ज़रिए आज छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परम्परा को बरकरार रखने की कोशिश में जुटे हुए हैं.

पेशे से सैलून का काम करते हैं संजू सेन, लेकिन छत्तीसगढ़ी संस्कृति का कर रहे है प्रयास
वैसे तो संजू सेन सलून की दुकान संचालित कर अपने घर और परिवार का गुजारा करते हैं. लेकिन कोरोना काल में जब लोगों का रोजगार छीन गया था तब संजू सेन के दिमाग में कुछ हटकर करने की सोंच आई. शुरुआत से ही संजू सेन का परिवार कलाकारी के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. यही वजह है कि कोरोना काल में संजू सेन ने छत्तीसगढ़ी परंपरा और संस्कृति को नई दिशा दी और वनांचल क्षेत्र बस्तर की सैर पर निकल पड़े.

यहां से उन्होंने उस क्षेत्र में उपयोग होने वाले छत्तीसगढ़ी वाद्य यंत्रों के बारे में जानकारी ली और फिर एक एक कर आसपास के सारे जिलों में जाकर अलग-अलग वाद्य यंत्रों को समझा. फिर धीरे - धीरे कर अपने गांव के कुछ बच्चों के साथ एक टीम तैयार की. शुरुआत में तो संजू के पास कुछ ही वाद्य यंत्र थे लेकिन देखते ही देखते आज उन्होंने 3 सालों में 140 वाद्य यंत्रों को सहेज लिया. संजू सेन के हुनर और इस प्रयास को देखकर ग्रामीण भी संजू सेन की प्रशंसा कर रहे हैं.

संजू सेन ने सरकार से लगाई यह गुहार
पहले तो संजू सेन मंच पर केवल वाद्ययंत्रों के साथ प्रस्तुति देते थे. लेकिन अब संजू सेन की कलाकारी को देख स्थानीय बच्चे नृत्य करने के लिए संजू सेन की टीम में जुड़ गए. अब संजू सेन की उम्मीद है सरकार से कि वह भी संजू की कलाकारी को प्रोत्साहन दे ताकि छत्तीसगढ़ वासियों को भी छत्तीसगढ़ी वाद्य यंत्रों से रूबरू कराया जा सके.

यह भी पढ़ें: Chhattisgarh: 2000 के नोट बैन को CM बघेल ने बताया 'थूक के चाटने' वाला फैसला, तो BJP ने दिया ये जवाब, जानें क्या कहा

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