(Source: ECI / CVoter)
Chhattisgarh News: बस्तर में निभाई गई दशहरा पर्व की 600 साल पुरानी परंपरा, जानें कैसे होता है विश्व प्रसिद्ध रथ का निर्माण
Bastar Dussehra Festival: बस्तर दशहरा की दूसरी बड़ी महत्वपूर्ण डेरी गढ़ई की रस्म बुधवार को अदा की गई, इस मौके पर बिरिंगपाल गांव से लाई गई सरई पेड़ की लकड़ी की विशेष पूजा अर्चना हुई.
Bastar News: देश में 75 दिनों तक चलने वाली विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की दूसरी महत्वपूर्ण रस्म डेरी गढ़ई की अदायगी बुधवार की सुबह जगदलपुर शहर के सीरासार भवन में की गई. करीब 600 सालों से चली आ रही इस परंपरा के अनुसार जिले के बिरिंगपाल गांव से लाई गई सरई पेड़ की टहनियों को विशेष स्थान पर स्थापित किया गया और विधि विधान से पूजा अर्चना कर इस रस्म की अदाएगी के साथ ही रथ निर्माण के लिए माँ दंतेश्वरी देवी से आज्ञा ली गई. इस मौके पर स्थानीय जनप्रतिनिधि, जिला प्रशासन के सभी अधिकारी और दशहरा पर्व समिति के सदस्यों के साथ ही स्थानीय लोग भी बड़ी संख्या में मौजूद रहे. इस रस्म के साथ ही विश्व प्रसिद्ध दशहरा में चलने वाली विशालकाय रथ के निर्माण की प्रक्रिया आरंभ करने के लिए लड़कियों सीरासार भवन लाना शुरू हो जाता है.
रियासत काल से चली आ रही परंपरा निभाई गई
जगदलपुर के सीरासार भवन में बुधवार को दशहरा पर्व की दूसरी बड़ी रस्म डेरी गढ़ई रस्म की अदायगी की गई. रियासत काल से चली आ रही इस रस्म में परंपरानुसार डेरी गढ़ई के लिए बिरिंगपाल गांव से सरई पेड़ की टहनिया लाई जाती है. इन टहनियों को पूजा कर पवित्र करने के बाद लड़कियों को गाढ़ने के लिए बनाए गए गड्ढों में अंडा और जीवित मछलियों को डाला जाता है, जिसके बाद टहनियों को गाढ़कर इस रस्म को पूरा किया जाता है और माँ दंतेश्वरी से विश्व प्रसिद्ध दशहरा रथ के निर्माण प्रक्रिया को आरंभ करने की इजाजत ली जाती है. मान्यताओं के अनुसार इस रस्म के बाद से ही बस्तर दशहरे के लिए विशालकाय 8 चक्कों का रथ निर्माण का कार्य शुरू किया जाता है. करीब 600 साल पुरानी परंपरा का निर्वाहन आज भी पूरे विधि विधान के साथ किया जा रहा है. इस रस्म के दौरान मौजूद जगदलपुर के विधायक रेखचंद जैन ने बस्तर दशहरा की शुभकामनाएं देने के साथ ही बस्तर दशहरा का उल्लास बनाए रखने के लिए राज्य सरकार द्वारा हर संभव कोशिश किए जाने की बात कही. रेखचंद जैन ने बताया कि इस बार दशहरा पर्व के बजट में बढ़ोतरी भी की गई है और इस साल एक करोड़ 10 लाख रुपये का बजट बनाया गया है.
दो गांवों के ग्रामीण करते हैं दशहरा रथ का निर्माण
इधर रियासत काल से चली आ रही बस्तर दशहरा की इन परंपराओं का निर्वहन आज भी बखूबी किया जा रहा है. डेरी गढ़ई की इस रस्म की अदायगी के बाद परंपरा अनुसार बिरिंगपाल गांव से लाई गई सरई पेड़ की लकड़ी से विशालकाय 8 चक्कों के रथ का निर्माण किया जाएगा. इस रस्म की एक और विशेषता यह है कि रथ का निर्माण केवल बड़ेउमर गांव और झाड़उमर गांव के ही 200 से ज्यादा ग्रामीणों के द्वारा ही किया जाता है और इसी गांव के ग्रामीण पीढ़ी दर पीढ़ी रथ निर्माण का कार्य करते आ रहे हैं.
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