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(Source: ECI / CVoter)

Explained: तहरीक-ए-तालिबान... पाक में कैसे पनपा ये आतंकी संगठन, जानिए TTP की A टू Z कहानी

Tehreek-e-Taliban: तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, जिसे TTP भी कहा जाता है वो पाकिस्तान में अपनी ही सरकार के खिलाफ लड़ने वाला सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन है.

Tehreek-e-Taliban History: इस वक्त पाकिस्तान से लेकर अमेरिका तक तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की चर्चा है. पाकिस्तान में आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने तबाही मचाकर रख दी है. साथ ही इस आतंकी संगठन ने पूरे पाकिस्तान को मलबे में बदलने का ठान लिया है. खतरनाक आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान ने पाकिस्तान के खिलाफ जिहाद का ऐलान कर दिया है. यही नहीं, रविवार को टीटीपी ने पाकिस्तान में अपनी नई सरकार के गठन का ऐलान कर दिया और जल्द ही कैबिनेट के विस्तार करने का भी ऐलान कर दिया है. टीटीपी के इस ऐलान से क्लियर हो चुका है कि वो पाकिस्तान का भी अफगानिस्तान जैसा हाल करने पर उतारु हो गया है. 

टीटीपी अशांत बलूचिस्तान प्रांत समेत पाकिस्तान के अन्य इलाकों में कई हमले कर रहा है. हमले की आशंका के मद्देनजर अमेरिका ने पाकिस्तान में रह रहे अपने नागरिकों को अलर्ट कर इस्लामाबाद के मैरिएट होटल न जाने की सलाह दी है. दरअसल कुछ दिन पहले ही इस शहर में हुए एक आत्मघाती हमले में एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई थी और 10 घायल हो गए थे. टीटीपी यानी कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान आखिर क्यों मचा रहा है आतंक? क्या है तहरीक-ए-तालिबान और कैसे इसका उदय हुआ, आइए जानते हैं...

तहरीक-ए-तालिबान क्या है

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, जिसे TTP भी कहा जाता है वो पाकिस्तान में अपनी ही सरकार के खिलाफ लड़ने वाला सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर टीटीपी के कई हजार लड़ाकें मौजूद हैं, जो पाकिस्तान की सरकार के खिलाफ 'युद्ध' छेड़े हुए हैं.

पाकिस्तानी सैन्य कार्रवाइ अमेरिकी ड्रोन युद्ध और इस इलाके में अन्य गुटों की घुसपैठ ने 2014 से 2018 तक टीटीपी के आतंक को लगभग खत्म कर दिया था लेकिन, फरवरी 2020 में अफगान तालिबान और अमेरिकी सरकार द्वारा शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद यह उग्रवादी समूह फिर से इस क्षेत्र में एक्टिव हो गया. 

जुलाई 2020 के बाद से 10 उग्रवादी समूह जो लगातार पाकिस्तान सरकार  का विरोध कर रही थी, वो तहरीक-ए-तालिबान में शामिल हो गए. इनमें अल-कायदा के तीन पाकिस्तानी गुट भी शामिल हैं, जो 2014 में टीटीपी से अलग हो गए थे.

इन विलयों के बाद, टीटीपी और मजबूत हुआ और हिंसक भी. यह हिंसक सिलसिला अगस्त 2021 में काबुल में अफगान तालिबान की सरकार बनने के बाद और तेज हो गया. 

अफगान तालिबान, अल-कायदा और खुरासान प्रांत (ISKP) में इस्लामिक स्टेट के साथ इसकी गहरी ऐतिहासिक जड़ों के कारण TTP एक खतरनाक आतंकी संगठन बन गया है. यह समूह 9/11 के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अल-कायदा की 'जिहादी राजनीति' का नतीजा है.

कहा जाता है टीटीपी के अभी भी अल-कायदा के साथ गुप्त संबंध हैं और उसने घोषणा भी की है कि वह अफगानिस्तान में तालिबान शासन के तहत सुरक्षित आश्रय का आनंद लेते हुए अफगान तालिबान नेताओं को अपना मानता रहेगा और अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल कर पाकित्सान के खिलाफ जंग छेड़ता रहेगा.

इस्लामिक स्टेट आतंकी समूह की खुरासान शाखा बड़े पैमाने पर TTP से अलग हुए सदस्यों से ही बना है. इस समूह ने पाकिस्तान तहरीक-ए-तालिबान के साथ किसी भी संघर्ष से खुद को बचा कर रखा है.

कितना खतरनाक है यह आतंकी संगठन

यह समझने के लिए कि टीटीपी कितना बड़ा खतरा पैदा कर सकता है, इस समुह के उदय और विकास के बारे में जानना बेहद जरूरी है. कैसे यह आतंकी समूह पैदा हुआ और कैसे आज यह पाकिस्तान के लिए नासूर बन गया है.

पाकिस्तानी तालिबान की जड़ें जमना उसी वक्त शुरू हो गई थीं, जब 2002 में अमेरिकी कार्रवाई के बाद अफगानिस्तान से भागकर कई आतंकी पाकिस्तान के कबाइली इलाकों में छुपे थे. इन आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई तो स्वात घाटी में पाकिस्तानी आर्मी की मुखालफत होने लगी. कबाइली इलाकों में कई विद्रोही गुट पनपने लगे.

फिर दिसंबर 2007 को बेयतुल्लाह मेहसूद की अगुवाई में 13 गुटों ने एक तहरीक यानी अभियान में शामिल होने का फैसला किया, लिहाजा संगठन का नाम तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान रखा गया. शॉर्ट में इसे टीटीपी या फिर पाकिस्तानी तालिबान भी कहा जाता है. यह अफगानिस्तान के तालिबान संगठन से पूरी तरह अलग है, लेकिन इरादे करीब-करीब एक जैसे है. 

2020 में टीटीपी ने क्या दावा किया

2020 में टीटीपी ने दावा किया कि पाकिस्तान के बाहर अब उसका कोई क्षेत्रीय या वैश्विक एजेंडा नहीं है. इससे पहले साल 2018 में इस समूह ने अपने घोषणापत्र में एक और परिवर्तन किया था. इसने नागरिकों सहित पाकिस्तानी ठिकानों पर अंधाधुंध हमलों पर रोक लगा दी. इसकी जगह उसने पाकिस्तान सरकार के खिलाफ सीधे जंग का ऐलान किया. सालों से जारी इन हमलों के पीछे TTP का मकसद पाकिस्तानी सरकार पर उसकी मांगों को पूरा करने के लिए दबाव डालना है. टीटीपी ने घोषणापत्र में अपने लड़ाकों को नागरिकों और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमला करने से दूर रहने की बात कही. इसके बजाय पाकिस्तानी सैन्य कर्मियों और खुफिया अधिकारियों के खिलाफ वो लक्षित हिंसा की वकालत करने लगा.

इस बदलाव बाद से, नागरिकों के खिलाफ टीटीपी द्वारा किए गए हमलों में तेजी से गिरावट आई. हालांकि यह कहना मुश्किल है कि रणनीति में बदलाव का कारण क्या रहा? इसका एक कारण यह हो सकता है कि नागरिकों के खिलाफ टीटीपी की शुरुआती हिंसा ने ओसामा बिन लादेन सहित वैश्विक और स्थानीय उसके जितने भी जिहादी सहयोगी थे उनके खिलाफ गुस्से भरा माहौल बनाया था.

अफगानिस्तान में तालिबान सरकार आने के बाद टीटीपी में क्या बदलाव हुए

अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार के पतन से पहले, पाकिस्तानी सरकार बार-बार उन पर अफगानिस्तान में पाकिस्तान विरोधी आतंकवादी समूहों को शरण देने का आरोप लगाती थी. नतीजतन, इस्लामाबाद में कुछ लोगों का मानना ​​था कि अगर अफगान तालिबान (एक तथाकथित पाकिस्तान-मित्र संगठन) काबुल में सत्ता में लौट आए, तो इन पाकिस्तानी विरोधी समूहों पर कार्रवाई होगी. हालांकि, इन उम्मीदों के विपरीत, अफगान तालिबान की वापसी ने अब तक टीटीपी को मजबूत किया है और अब वो पाकिस्तान के लिए एक सिरदर्द बन गई है.

अफगानिस्तान में तालिबान सरकरा आने के बाद उसने काबुल की जेलों से सैकड़ों टीटीपी कैदियों को रिहा कर दिया, जिसमें टीटीपी के उप संस्थापक अमीर मौलवी फकीर मोहम्मद जैसा नेता शामिल था.

टीटीपी ने पूर्वी अफगानिस्तान में बड़ी मोटर रैलियों और कारवां के साथ अपने सदस्यों की रिहाई का जश्न मनाया था. सत्ता में वापसी पर अफगान तालिबान को बधाई देने के अलावा, टीटीपी ने सार्वजनिक रूप से अपने सहयोगी के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा ली थी. कई मौकों पर टीटीपी के नेतृत्व ने अफगान तालिबान समूह के लड़ाकों के लिए एक रोल मॉडल के रूप में खुद को प्रस्तुत किया. 

हालांकि, हाल ही में एक इंटरव्यू में जब अफगान तालिबान के प्रवक्ता से अफगानिस्तान में टीटीपी के भविष्य के बारे में पूछा गया, तो उसका जवाब टालमटोल वाला था. उसने तर्क दिया था कि टीटीपी पाकिस्तान के अंदर का मुद्दा है और उनके समूह का इससे कोई लेना-देना नहीं है. प्रवक्ता ने यहां तक ​​सुझाव दिया कि पाकिस्तान को टीटीपी के साथ अपनी समस्याओं को बातचीत के जरिए सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए.

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