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Sri Lanka Economic Crisis: सोने की लंका आज है कंगाली की कगार पर! जानिए क्यों श्रीलंका में आर्थिक संकट से मचा हाहाकार?

Sri Lanka Economic Crisis: भले ही श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) ने इस्तीफा दे दिया हो, लेकिन देश के पास अभी भी आर्थिक संकट से निपटने के लिए कोई ठोस प्लान नहीं है

Sri Lanka Economic Crisis: कभी सोने की लंका के रूप में मशहूर श्रीलंका (Sri Lanka) आज दाने-दाने के लिए मोहताज हो रहा है. भारत के इस पड़ोसी देश में गहराया अर्थिक संकट (Economic Crisis) इस कदर खतरनाक रूप ले चुका है कि सत्ता में बैठे लोग देश छोड़ के भाग गए हैं. जनता सड़कों पर हैं और उसके गुस्से को काबू करने के लिए सरकार ने सेना को कुछ भी करने की खुली छूट दिए बैठी है. गो गोटा गो (Go Gota Go ) के नारे लगाने वाले प्रदर्शनाकारी देश के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) के इस्तीफे की मांग पर अड़े रहे और आखिरकार उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. उन्हें गोटाबाया के पक्ष वाले प्रधानमंत्री रानिल विक्रम सिंघे (Ranil Wickremesinghe) का कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया जाना भी रास नहीं आ रहा है. देश में आपातकाल लगाया गया है. गोटाबाया के भागने के बाद विरोध प्रदर्शनों के दौर और तेज हो गए हैं. आइए यहां ये जानते है  कि श्रीलंका कैसे बद से बदहाल स्थिति में पहुंच गया है. 

महंगाई की मार से बेहाल है लंका

श्रीलंका में अभी भी मुद्रास्फीति (Inflation) की दर 50 फीसदी से ऊपर का आंकड़ा पार कर रही है. देश में बसों, ट्रेनों और चिकित्सा वाहनों जैसी जरूरी सेवाओं के लिए भी पर्याप्त ईंधन नहीं है और देश के पास आयात करने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा नहीं है. ईंधन की ये कमी इस साल की शुरुआत में ही होने लगी थी. इससे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में नाटकीय तौर पर बढ़ोतरी दर्ज की गई. जून के अंत में, सरकार ने गैर-जरूरी वाहनों के लिए पेट्रोल और डीजल की बिक्री पर दो सप्ताह के लिए प्रतिबंध लगा दिया. ऐसा माना जाता है कि  1970 के बाद से ऐसा करने वाला श्रीलंका पहला देश है.  यहां ईंधन की बिक्री गंभीर तौर पर प्रतिबंधित लगा है. स्कूल और ऑफिस बंद हैं ताकि ईंधन बचाया जा सके.

पैसे हैं सब खत्म

विदेशी मुद्रा भंडार में कमी होने की  विदेशों से अपनी जरूरत का सामान नहीं खरीद पा रहा है. श्रीलंका अपने इतिहास में पहली बार विदेशी ऋण पर ब्याज का भुगतान करने में विफल रहा. इस साल मई में 30 दिन अधिक देने के बाद भी श्रीलंका सात करोड़ 80 लाख डॉलर की कर्ज की किश्त नहीं चुका पाया. केंद्रीय बैंक के गवर्नर पी नंदलाल वीरसिंघे (Nandalal Weerasinghe) ने इसके भुगतान को लेकर हाथ खड़े कर दिए थे. श्रीलंका ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से लगभग 3.5 अरब डॉलर की बेलआउट राशि की मांग भी की है. आर्थिक संकट से निपटने के लिए उसे आईएमएफ के साथ ही अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों से भी पांच अरब डॉलर की मदद की उम्मीद हैं. दुनिया की दो सबसे बड़ी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने भी पुष्टि की कि श्रीलंका ने अपने ऋण भुगतान में चूक की है. गौरतलब है कि कर्ज पर ब्याज का भुगतान करने में विफलता निवेशकों के साथ किसी देश की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे उसके लिए अंतरराष्ट्रीय बाजारों में आवश्यक धन उधार लेना कठिन होता जाता है. इसके साथ ही उस देश की मुद्रा और अर्थव्यवस्था में विश्वास को भी नुकसान होता है और श्रीलंका के साथ यही हुआ उसकी क्रेडिट रेटिंग से दुनिया के देशों का विश्वास उठ गया. 

यूं ही नहीं आया आर्थिक संकट

इटली के खोजकर्ता मार्को पोलो (Marco Polo) ने श्रीलंका के लिए कहा था कि यह दुनिया में अपने आकार का सबसे अच्छा द्वीप है. वक्त के साथ देश का पर्यटन क्षेत्र श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन गया. इसने रोजगार देने के अलावा विदेशी मुद्रा आय के साथ-साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीक़ों से लगातार सरकारों के लिए राजस्व की आपूर्ति सुनिश्चित की. श्रीलंका में पर्यटन क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 12 फीसदी है. देश में यह विदेशी मुद्रा भंडार का तीसरा सबसे बड़ा जरिया है. साल 2019 में ईस्टर पर रविवार को हुए बम धमाकों ने श्रीलंका में पर्यटन उद्योग के पतन की पटकथा तैयार कर दी थी. इन घातक बम हमलों की एक श्रृंखला से पर्यटक भयभीत थे. इसके बाद देश में कोरोना महामारी की दोहरी मार पड़ी और रही -सही कसर श्रीलंका में मौज़ूदा आर्थिक संकट के बीच रूस- यूक्रेन युद्ध ने पूरी कर दी है. इससे यहां का पयर्टन उद्योग को दोबारा से पटरी पर लाना बेहद चुनौती भरा हो गया है. सरकार ने इसके लिए कोरोना महामारी (Covid Pandemic) को जवाबदेह ठहराया.

गोटाबाया का खराब आर्थिक कुप्रबंधन

लेकिन कई विशेषज्ञ राष्ट्रपति राजपक्षे के खराब आर्थिक कुप्रबंधन को देश के आर्थिक संकट के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं. 2009 में अपने गृहयुद्ध के अंत में श्रीलंका ने विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने की कोशिश करने के बजाय अपने घरेलू बाजार में सामान उपलब्ध कराने पर ध्यान केंद्रित करने को चुना. इसका नतीजा ये हुआ कि अन्य देशों में निर्यात से इसकी आय कम रही, जबकि आयात का बिल बढ़ता रहा. श्रीलंका अब हर साल निर्यात की तुलना में 3 बिलियन डॉलर अधिक आयात करता है और यही वजह है कि उसके पास विदेशी मुद्रा खत्म गई है. साल 2019 के अंत में, श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा भंडार में 7.6 बिलियन डॉलर था, जो गिरकर लगभग 250 मिलियन डॉलर हो गया है. राष्ट्रपति  राजपक्षे की 2019 में शुरू की गई बड़ी कर कटौती के लिए भी आलोचना की गई. इसकी वजह से प्रति वर्ष 1.4 बिलियन डॉलर  से अधिक की सरकारी आय का नुकसान हुआ. जब 2021 की शुरुआत में श्रीलंका की विदेशी मुद्रा की कमी एक गंभीर समस्या बन गई, तो सरकार ने रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध लगाकर उन्हें सीमित करने की कोशिश की. इसके साथ ही किसानों से अचानक इसके बजाय स्थानीय रूप से प्राप्त जैविक उर्वरकों के इस्तेमाल करने का फरमान सुनाया. इससे बड़े पैमाने पर फसल बर्बाद हो गई. नतीजतन श्रीलंका को विदेशों से अपने खाद्य भंडार की पूर्ति करनी पड़ी और इस वजह से उसकी विदेशी मुद्रा की कमी और भी बदतर स्थिति में पहुंच गई. 

स्थिर सरकार के बगैर आर्थिक संकट से निपटना मुश्किल है

भले ही राष्ट्रपति राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया हो और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया हो, लेकिन देश के पास अभी भी आर्थिक संकट से निपटने के लिए कोई ठोस प्लान नहीं है. विक्रमसिंघे ने देश की स्थिति को स्थिर करने की कोशिश में देश के पश्चिमी प्रांत में कर्फ्यू लगा दिया. किसी भी देश को वित्तीय संकट से निपटने के लिए एक कार्यशील सरकार की जरूरत होती है, लेकिन श्रीलंका में ऐसा नहीं है. देश पर विदेशी ऋणदाताओं का  51 बिलियन डॉलर से अधिक बकाया है, जिसमें चीन के 6.5  बिलियन डॉलर भी शामिल है. इसे लेकर चीन ( China) ने तकादा करना शुरू कर दिया है. G7 देशों के समूह कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका ने कहा था कि वह ऋण चुकौती को कम करने के श्रीलंका की कोशिशों का समर्थन करता है. विश्व बैंक श्रीलंका को 600 मिलियन डॉलर उधार देने के लिए सहमत हो गया है और भारत ने कम से कम 1.9 बिलियन डॉलर की पेशकश की है. उधर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) एक संभावित 3 बिलियन डॉलर ऋण पर चर्चा कर रहा है. लेकिन इस सबका फायदा उठाने के लिए श्रीलंका में एक स्थिर सरकार की जरूरत होगी जो सौदे को फंड में  मदद देने के लिए ब्याज दरों और करों को बढ़ा सके, इसलिए जब तक कोई नया शासन- प्रशासन नहीं हो जाता, तब- तक इस देश को मिलने वाली किसी भी खैरात में देरी हो सकती है.

क्या कहते हैं देश के शासक

गौरतलब है कि रानिल विक्रमसिंघे ने पहले ही कहा था कि सरकार कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने के लिए पैसे छापेगी, लेकिन चेतावनी दी कि इससे मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलेगा और कीमतों में और बढ़ोतरी होगी. उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी स्वामित्व वाली श्रीलंकाई एयरलाइंस का निजीकरण किया जा सकता है. हालांकि श्रीलंका ने  रूस ( Russia) और कतर (Qatar) से पेट्रोल की कीमत कम करने में मदद के लिए कम कीमतों पर तेल की आपूर्ति करने को कहा है.

मार्च से उबलने लगा था श्रीलंका

महंगाई, कई घंटों की बिजली कटौती, जरूरी सामानोंं की कमी से जूझ रहे श्रीलंका में मार्च महीने से ही युवाओं के खून ने उबाल मारना शुरू कर दिया था. कलाकार, आईटी प्रोफेशनल्स, नाटककार और कैथोलिक पादरियों का एक समूह बना जो गोटबाया राजपक्षे की वंशवाद की राजनीति को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए डट गया. वंशवाद के खिलाफ इस आंदोलन को जन अरगालय (Jana Aragalaya) नाम दिया गया. देश की राजधानी कोलंबों में 31 मार्च को बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ और इसके बाद इसकी आग फैलती चली गई, जिसकी लपटें आज भी श्रीलंका की सरकार को झुलसा रही हैं. अप्रैल की शुरुआत में राजधानी कोलंबो (Colmbo) में शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन बढ़कर पूरे श्रीलंका में फैल गया. इसमें सोशल मीडिया ने भी अहम भूमिका निभाई फेसबुक पर लाखों अकाउंट एक्टिविस्ट ने बनाए. इसी के चलते गोटाबाया के भाई महिंदा राजपक्षे को 9 मई को पीएम की कुर्सी गवांनी पड़ी. चार महीने में ही इस जन आंदोलन ने राजपक्षे परिवार को दिन में तारे दिखा दिए. नौ जुलाई को जनता कोलंबों में ऐसे सड़क पर उतरी कि देश के महामहिम को अपने ही राष्ट्रपति भवन से भागना पड़ा.

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