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बंगाल चुनाव 2021: जोड़ासांको विधानसभा, कोलकाता की वह सीट जहां हिंदी भाषी तय करते हैं चुनावी हार-जीत

यह राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश के हिंदी भाषियों का इलाका है. जोड़ासांको सीट से मारवाड़ी विधायको ने ही लंबे समय तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है.

कोलकोता: जोड़ासांको विधानसभा महानगर कोलकाता का एक बहुत ही महत्वपूर्ण केंद्र है. इसका एक कारण यह है कि यहां ठनठनिया कालीबाड़ी विश्व प्रसिद्ध है, वहीं गुरुद्वारा बड़ा सिख संगत, जहां गुरू नानक देव जी से लेकर नौवें गुरु तेगबहादुर के कदम पड़ने के कारण यह इलाका पावन हो गया था. कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर की जन्मस्थली ठाकुरबाड़ी भी यहीं मौजूद है.

इधर, बड़ाबाजार पहले बंगाल का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र रहा है. किसी को कपड़ा खरीदना हो, राशन-पानी, किताबें, बर्तन, पेन से लेकर कुछ भी थोक और खुदरा ग्राहक के लिए यही एक केंद्र था. बीते कुछ सालों में भले ही राज्य में व्यापारिक केंद्रों का विस्तार हो गया है, लेकिन यहां का महत्व कम नहीं हुआ. इलाके को मारवाड़ी बहुल के तौर पर भी जाना जाता है.

2016 में यहां से AITC की  स्मिता बक्शी  चुनाव जीतीं. इस बार बार AITC के विवेक गुप्ता और बीजेपी की मीना देवी पुरोहित मैदान में हैं. जोरोसांको विधानसभा सीट कोलकाता उत्तर लोकसभा सीट के तहत आती है. लोकसभा, विधानसभा से लेकर नगर निगमों तक में तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है.

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 2,34,845 है. 2019 लोकसभा चुनाव के अनुसार यहां कुल मतदाता 1,91,912 हैं. 79 प्रतिशत हिंदू और 21 प्रतिशत मुसलमान हैं. 03 फीसदी अनुसूचित जाति के लोग हैं. 59 प्रतिशत पुरुष और 41 प्रतिशत महिलाएं हैं. 81 फीसदी पुरुष और 84 फीसदी महिलाएं शिक्षित हैं.

हिंदी भाषियों का इलाका 
यह राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश के हिंदी भाषियों का इलाका है. जोड़ासांको सीट से मारवाड़ी विधायकों ने ही लंबे समय तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है. अपवाद के रूप में 1952 में फॉर्वर्ड ब्लॉक लेफ्ट के अमरेंद्रनाथ बसु ने कांग्रेस के भगवती प्रसाद खेतान को भारी बहुमत से हराया था. इसके बाद पूरे बीस साल कांग्रेस यहां बेताज बादशाह रही. 1957 से 1977 तक कांग्रेस के मारवाड़ी उम्मीदवार भारी मतों से विजयी होते रहे.

चुनावी इतिहास 
ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल के लिए नई बयार लेकर आईं. उन्होंने पुराने समीकरणों को ध्वस्त करते हुए इस प्रतिष्ठित सीट पर 2001 में कब्जा जमाया जो आज तक बरकरार है. 2001 और 2006 में मुख्य मुकाबला दो मारवाड़ियों तृणमूल कांगेस के सत्य नारायण बजाज और ऑल इंडिया फॉर्वर्ड ब्लॉक के श्याम गुप्ता के बीच रहा. दोनों बार सत्यनारायण बजाज विजयी रहे. दरअसल, 1957 से लेकर 2006 तक इस सीट पर मारवाड़ी प्रत्याशी ही विजयी होते रहे. 2011 और 2016 में भी यहां से तृणमूल की ही जीत हुई थी.

1957 में कांग्रेस के आनंदीलाल पोद्दार, 1962 में कांग्रेस के बद्री प्रसाद पोद्दार, 1967 में कांग्रेस के आर के पोद्दार, 1969, 1971 और 1972 में कांग्रेस के देवकीनंदन पोद्दार विजयी रहे. 1977 में आपातकाल के बाद हुए विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी के विष्णुकांत शास्त्री चुनाव जीते. 20 साल बाद कोई गैर मारवाड़ी, लेकिन हिंदी भाषी ही विजयी रहा.

लेकिन अगले चुनाव में 1982 में कांग्रेस के मारवाड़ी उम्मीदवार देवकी नंदन पोद्दार फॉर्वर्ड ब्लॉक के मारवाड़ी उम्मीदवार श्याम सुंदर गुप्ता को हरा कर चुनाव जीत गए. देवकीनंदन पोद्दार ने मारवाडी बहुल जोड़ासांको सीट पर लंबी पारी खेली. वे 1987, 1991, 1996 में लगातार चुनाव जीते. इस सीट के चुनावी इतिहास में देवकीनंदन पोद्दार सबसे लोकप्रिय नेता रहे.

21वीं सदी की शुरुआत में 2001 में तृणमूल ने जब पहली बार अपना उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया तो मारवाड़ी बहुल इलाका देखते हुए मारवाड़ी सत्यनारायण बजाज को और 2006 में दिनेश बजाज को अपना उम्मीदवार बनाया. दोनों बार तृणमूल उम्मीदवार चुनाव जीते. हालांकि फॉर्वर्ड ब्लॉक ने भी मारवाड़ी श्यामसुंदर गुप्त को अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन वे चुनाव नहीं जीत पाए.

यह भी पढ़ें: पश्चिम बंगाल में 7वें चरण के दौरान जमकर वोटिंग, शाम 5.30 बजे तक 75% से ज्यादा मतदान

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