अदालतें देखें कि अपराधी में सुधार की गुजांइश है या नहीं', SC ने बेटी के हत्यारे पिता की सजा की कम
Supreme Court Commutes Death Penalty: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने नासिक जिले के आरोपी एकनाथ किसन कुम्भारकर की मौत की सजा को रद्द कर दिया.
Supreme Court Commutes Death Penalty: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (16 अक्टूबर, 2024) को एक ऐसे शख्स की मौत की सजा को माफ कर दिया, जिसने गर्भवती बेटी की हत्या की थी. हत्या के पीछे कारण था कि बेटी ने परिवार की इच्छा के खिलाफ अंतरजातीय विवाह किया था. कोर्ट ने दोषी की सजा को 20 साल की सख्त कैद में बदल दिया.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने नासिक जिले के आरोपी एकनाथ किसन कुम्भारकर की मौत की सजा को रद्द कर दिया. हालांकि, अदालत ने कुम्भारकर की जुर्म को बरकरार रखा और उसे 20 साल की कठोर सजा सुनाई. कोर्ट ने कहा, "सजा का आदेश अदालतों की ओर से निर्धारित 302 के तहत मौत की सजा को बदलकर 20 साल की सख्त सजा में तब्दील किया गया है."
"सबसे दुर्लभ मामलों" में नहीं आता ये केस: सुप्रीम कोर्ट
अभियोजन पक्ष के अनुसार, कुम्भारकर ने गर्भवती बेटी प्रमिला की हत्या 28 जून 2013 को की थी, जब उसने परिवार की इच्छाओं के खिलाफ अलग जाति के व्यक्ति से शादी कर ली थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला "सबसे दुर्लभ मामलों" में नहीं आता, जिसमें केवल मौत की सजा ही उचित हो. कोर्ट ने इसे एक "मध्य मार्ग" के तौर पर देखा और कहा कि मामले में बदलाव की संभावना है. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी 20 साल की सख्त सजा के बाद ही किसी तरह की माफी की पेशकश कर सकता है.
'सिर्फ अपराध की गंभीरता न देखें'
कोर्ट ने कहा कि कुम्भारकर गरीब और घुमंतू समुदाय से आते हैं और उनका जीवन पारिवारिक उपेक्षा और गरीबी से प्रभावित रहा है. आरोपी के खिलाफ कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और वह एक " नियमित अपराधी" नहीं हैं, जिसे सुधारने का कोई मौका ही नहीं दिया जा सके. कुम्भारकर के पास भाषाई समस्याएं हैं और उन्होंने 2014 में एंजियोप्लास्टी कराई थी. इसके साथ ही उनकी जेल में व्यवहार रिपोर्ट भी संतोषजनक रही है.
कोर्ट ने इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए मौत की सजा को सही नहीं समझा. अदालत ने फैसले में कहा कि मौत की सजा केवल अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए नहीं दी जानी चाहिए, बल्कि यह देखा जाना चाहिए कि अपराधी में सुधार की गुजांइश है या नहीं.