Ram Mandir Inauguration: अयोध्या में क्या सोचकर राम मंदिर का हुआ था विध्वंस? RSS चीफ ने लेख के जरिए बताया, पढ़िए क्या कुछ लिखा
Ram Mandir News: मोहन भागवत ने कहा है कि अयोध्या का अर्थ है एक ऐसा शहर जहां कोई युद्ध न हो, एक संघर्ष रहित स्थान. अब राम मंदिर बनने के बाद यहां विवाद समाप्त होना चाहिए. पुरानी कड़वाहट खत्म होनी चाहिए.
RSS Chief Mohan Bhagwat on Ram Mandir: यूपी के अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है- अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का अवसर राष्ट्रीय गौरव के पुनःजागरण का प्रतीक है. यह आधुनिक भारतीय समाज की ओर से श्रीराम के चरित्र के पीछे के जीवन दर्शन की स्वीकृति का भी प्रतीक है. मंदिर में भगवान राम की पूजा "पत्रम पुष्पम फलम तोयम्" (पत्ते, फूल, फल और जल) से की जानी चाहिए और साथ ही राम की छवि को मन में स्थापित करना चाहिए. हमें उनके आदर्श आचरण अपनाकर उन्हें पूजना चाहिए.
मोहन भागवत की ओर से ये बातें अंग्रेजी अखबार दि इंडियन एक्सप्रेस में लिखे लेख के जरिए कही गईं. उनके मुताबिक, “राम जन्मभूमि में रामलला का आगमन और उनकी प्राण प्रतिष्ठा भारत के पुनःनिर्माण के अभियान की शुरुआत है जो सभी के कल्याण के लिए बिना किसी द्वेष के सभी को स्वीकार करने के लिए और सद्भाव, एकता, शांति और प्रगति का मार्ग दिखाने के लिए है. 22 जनवरी के भक्तिमय उत्सव में हम सभी ने मंदिर के पुनःनिर्माण के साथ भारत के पुनःनिर्माण और इसके जरिये पूरे विश्व के पुनःनिर्माण का रास्ता बनाने का संकल्प लिया."
हतोत्साहित करने के लिए धार्मिक स्थलों को किया नष्ट- भागवत
आरएसएस चीफ के लेख के अनुसार, "हमारे भारत का इतिहास करीब डेढ़ हजार साल से आक्रमणकारियों के खिलाफ लगातार संघर्ष का रहा है. शुरुआती हमलों का उद्देश्य लूटपाट करना और कभी-कभी सिकंदर के आक्रमण की तरह उपनिवेश स्थापित करना था लेकिन इस्लाम के नाम पर पश्चिम के हमले समाज में पूरी तरह से अलगाव ले आए. देश और समाज को हतोत्साहित करने के लिए कई धार्मिक स्थलों को विदेशी आक्रमणकारियों ने नष्ट किया. उन्होंने ऐसा एक बार नहीं बल्कि कई बार और कई जगह किया. उनका मकसद भारतीय समाज को हतोत्साहित करना था ताकि वे कमजोर समाज के साथ भारत पर बेरोक-टोक औऱ लंबे समय तक शासन कर सकें. अयोध्या में भी यही सोचकर श्रीराम मंदिर का विध्वंस किया गया था."
'कई बार हुए मंदिर बनाने के प्रयास'
मोहन भागवत ने आगे लिखा, "राम जन्मस्थान को फिर पाने और वहां मंदिर बनाने के लिए बार-बार प्रयास किए गए. इसके लिए कई युद्ध, संघर्ष और बलिदान हुए. इसे लेकर 1858 से ही लोगों ने मोर्चा खोलना शुरू कर दिया था मगर अंग्रेजों की हिंदुओं और मुसलमानों के प्रति "फूट डालो और राज करो" की नीति जो पहले से ही चलन में थी जो 1857 के बाद प्रमुखता से उभरी. 1857 की क्रांति के दौरान बनी हिंदू-मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने अयोध्या में संघर्ष के नायकों और राम जन्मभूमि की मुक्ति के सवाल पर फांसी दे दी लेकिन इसे लेकर आंदोलन जारी रहा."
तुष्टिकरण की राजनीति में राम मंदिर का सवाल यूं ही दबा रहा
उन्होंने लिखा, "1947 में देश की आजादी के बाद सर्वसम्मति से सोमनाथ मंदिर को फिर से बनाया गया तो राम जन्मभूमि को लेकर भी खूब चर्चा हुई लेकिन भेदभाव और तुष्टिकरण जैसी राजनीति की वजह से राममंदिर का प्रश्न ज्यों का त्यों बना रहा. इन सबके बीच राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए 1980 के दशक में जन आंदोलन शुरू हुआ. 1949 में राम जन्मभूमि पर भगवान रामचन्द्र की मूर्ति प्रकट हुई. 1986 में कोर्ट के आदेश पर मंदिर का ताला खोला गया. आने वाले समय में अनेक अभियानों और कारसेवा के जरिए हिन्दू समाज का संघर्ष जारी रहा. 134 साल के कानूनी संघर्ष के बाद 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया. इस फैसले में दोनों पक्षों धर्मों की भावनाओं और तथ्यों को भी ध्यान में रखा गया."
अब पूरी तरह से खत्म हो विवाद
संघ प्रमुख की ओर से आगे लिखा गया, "धार्मिक दृष्टिकोण से राम बहुसंख्यक समाज में सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवता हैं और इनका जीवन आज भी संपूर्ण समाज की ओर से आदर्श आचरण के रूप में स्वीकार किया जाता है. ऐसे में अब विवाद से उपजा विवाद समाप्त होना चाहिए. इस बीच जो कड़वाहट पैदा हुई है वह भी खत्म होनी चाहिए. समाज के प्रबुद्ध लोगों को यह देखना होगा कि विवाद पूरी तरह खत्म हो. अयोध्या का अर्थ है एक ऐसा शहर जहां कोई युद्ध न हो, एक संघर्ष रहित स्थान. इस मौके पर पूरे देश में हमारे जेहन में अयोध्या का पुनःनिर्माण होना चाहिए. यह हमारा कर्तव्य भी है."
ये भी पढ़ें
ट्रेडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
and tablets