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कुछ ऐसे पूरा हुआ मिशन काबुल: 15 बुलेट प्रूफ कारों में तालिबानी लड़ाकों के बीच से निकाल कर हुआ रेस्क्यू, पीएम मोदी भी ले रहे थे अपडेट

भारत के निकासी मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका दूतावास में काम करने वाले स्थानीय कर्मचारियों ने भी निभाई. दूतावास से एयरपोर्ट तक पहुंचने के रास्ते में आगे की गाड़ियों में स्थानीय अफगान कर्मचारी बैठे थे.

नई दिल्ली: काबुल में तालिबानी कब्जे और अफरातफरी के बीच भारत के दूतावास स्टाफ, आईटीबीपी जवानों और नागरिकों की निकासी किसी मुश्किल ऑपरेशन से कम नहीं थी. भारत वापसी की आस में भारतीय राजदूत समेत वरिष्ठ अधिकारियों सुरक्षा स्टाफ और लोगों ने पूरी रात जागते हुए गुजारी. वहीं दिल्ली में पीएमओ से लेकर विदेश मंत्रालय और खुफिया एजेंसियों के अधिकारी भी हर हर पल की खबरों के साथ लगातार हालात की निगरानी कर रहे थे.

इस ऑपरेशन की जानकारी रखने वाले सूत्र बताते हैं कि शीर्ष नेतृत्व की तरफ से सन्देश साफ था कि किसी भी हालत में भारतीय दूतावास के कर्मचारियों और नागरिकों को सुरक्षित निकालना ज़रूरी है. जाहिर है यह काम आसान नहीं था. खासकर ऐसे में जबकि काबुल शहर में अफरातफरी मची हो. हथियारबंद तालिबानी लड़ाके घूम रहे हों. साथ ही पुलिस से लेकर एयरपोर्ट स्टाफ के लोग काम छोड़कर नदारद हो चुके हों. 

तालिबानी बंदूकों के साए में आए काबुल शहर में जहाँ भारतीय लोगों को सुरक्षित जमा कर हवाई अड्डे तक पहुँचाना एक बड़ी चुनौती थी. वहीं अफरा तफरी भरे काबुल एयरपोर्ट पर भारतीय विमान की सुरक्षित लैंडिंग और टेक ऑफ मुकम्मल करना भी आसान नहीं था.

लड़ाकों की नाकेबंदी के बीच भारतीय लोगों के दल को पहले सुरक्षित इकट्ठा करने की मशक्कत की गई.उसके बाद मैं सुरक्षित एयरपोर्ट पहुंचाने का काम हुआ. काबुल में सोमवार शाम पहुंचे भारतीय वायुसेना के C-17 विमान को यूं तो देर रात ही रवाना हो जाना था लेकिन तालिबानी पहरेदारी और शहर में जारी अफरा-तफरी के बीच लोगों की निकासी मिशन में उड़ान का समय भी बदलना पड़ा. 

सूत्र बताते हैं कि काबुल एयरपोर्ट पर जारी अफरा-तफरी और विमान की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ही भारतीय वायुसेना के c-17 ग्लोबमास्टर को काबुल की बजाए रात में ताजिकिस्तान के आई एन ई एयर बेस पर ले जाया गया जिसके प्रबंधन में भारतीय वायुसेना की भी भूमिका है. 

भारतीय अधिकारियों और नागरिकों को लेकर 15 बुलेट प्रूफ कारों का काफिला जब तक काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट के सैन्य विमानन क्षेत्र में नहीं पहुंच गया तब तक दिल्ली में भी लोगों की सांसें अटकी हुई थी. सूत्र बताते हैं कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपडेट ले रहे थे.

भारतीय दूतावास से काबुल के हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट की दूरी यूं तो वह आज 10-15 मिनट की है. लेकिन इस रास्ते को पार करने में 1 घंटे से ज्यादा का वक्त लगा. 24:00 के बाद यह काफिला दूतावास से निकला तो उसका समय ऐसा चुना गया ताकि कबूल की सड़कों पर कम से कम ट्रैफिक मिले. हालांकि मौजूदा हालात में ट्रैफिक से ज्यादा चिंता तालिबानी लड़ाकों  उस नाकेबंदी से को लेकर थी जो खुले वसूली के कारोबार की तरह काबुल में चल रही है.

सूत्रों के अनुसार भारत के निकासी मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका दूतावास में काम करने वाले स्थानीय कर्मचारियों ने भी निभाई. दूतावास से एयरपोर्ट तक पहुंचने के रास्ते में आगे की गाड़ियों में स्थानीय अफगान कर्मचारी बैठे थे. उन्होंने ही तालिबानी नाकेबंदी के बीच से निकलने का रास्ता बनाया. इस दौरान कई जगह इस काफिले को रुकना भी पड़ा. तालिबानी लड़ाके पूछताछ कर रहे थे कि कौन लोग हैं और कहां जा रहे हैं.

ऐसे में सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर थी कि कहीं कोई अप्रिय घटना ना हो जाए. सुरक्षा के लिए वाहनों में हथियारबंद आइटबीपी के जवान भी मौजूद थे. खतरा इस बात को लेकर भी था की हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों के साथ चल रहे इस काफिले के साथ होने वाली जरा सी चूक गंभीर परिणाम वाली घटना में भी बदल सकती है.

बाहरहाल मध्यरात्रि के बाद 150 से अधिक लोगों को लेकर काफिल काबुल एयरपोर्ट पहुंचा मगर चुनौती यहां खत्म नहीं हुई. जिस एयरपोर्ट पर ग्राउंड स्टाफ का प्रबंधन ना हो और जहां आम लोगों की भीड़ ने धार्मिक तक पर कब्जा जमा लिया हो वहां लोगों को सुरक्षित रखना और अपनी उड़ान सुनिश्चित करना कठिन काम था. खासकर ऐसे में जबकि यह भी पता लगाना मुश्किल हो कि किस भेष में कौन है. बाकायदा रिंग फेन्स कर लोगों को तब तक सुरक्षित रखा गया जब तक कि सुरक्षा जाँच पूरी नहीं हो जाती और लोग विमान में नहीं बैठ जाते. 

सुबह करीब 7 बजे जब सभी लोग विमान में सवार हो गए तो दिल्ली में भी इस निकासी अभियान को कोऑर्डिनेट कर रहे लोगों ने राहत की सांस ली. करीब 7:30 बजे इस विमान ने भारतीय वायुसेना विमान ने उड़ान भरी. हालांकि चिंताएं तब तक बरकरार रहीं जब तक कि भारतीय विमान अफ़ग़ान वायुसीमा सीमा से बाहर नहीं आ गया. 

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