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'India' को छोड़ कांग्रेस अकेले क्यों पहुंच गई 'अविश्वास प्रस्ताव' का नोटिस देने, जानिए पर्दे के पीछे क्या-क्या हुआ

कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी गठबंधन INDIA की ओर से अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है. अविश्वास प्रस्ताव को लाने का फैसला एक दिन पहले ही लिया गया था.

संसद के मानसून सत्र की शुरुआत 20 जुलाई से हो गई थी. सत्र शुरू होने के साथ ही विपक्षी पार्टियों ने जमकर हंगामा शुरू कर दिया था. विपक्ष मणिपुर में पिछले 2 महीने से जारी हिंसा पर बहस करने और पीएम नरेंद्र मोदी की जवाबदेही तय करने की मांग कर रहे हैं. वह चाहते हैं कि पीएम मोदी संसद में इस पर जवाब दें.

यही कारण है कि बीते बुधवार यानी 26 जुलाई को कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डिवेलपमेंटल इन्क्लुसिव अलायंस यानी INDIA की तरफ से अविश्वास प्रस्ताव पेश किया. यह अविश्वास प्रस्ताव स्पीकर के पास 9.20 बजे भेज दिया गया था.

नियम के अनुसार अगर स्पीकर के पास अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस 10 बजे के पहले चला जाता है तो माना जाता है कि इस पर संसद में उसी दिन चर्चा की जाएगी.

कांग्रेस अकेले क्यों पहुंच गई नोटिस देने

इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस की तरफ से इतनी जल्दबाजी में नोटिस भेजे जाने के कारण अलायंस की अन्य सहयोगी पार्टियां भड़क गई थी. कुछ नेताओं के मुताबिक, बुधवार सुबह INDIA में शामिल नेताओं की बैठक में सहयोगी दलों ने कांग्रेस के इस एकतरफा कदम पर आपत्ति जताई. 

उन्होंने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव लाने का निर्णय मंगलवार को सामूहिक रूप से लिया गया था, इसलिए नोटिस को भी इंडिया में शामिल सहयोगी दलों के नेताओं के हस्ताक्षर के साथ सामूहिक रूप भेजा जाना चाहिए था. कांग्रेस के अकेले नोटिस भेजने के इस फैसले का विरोध करने वाले नेताओं में डेरेक ओ'ब्रायन (एआईटीसी), टीआर बालू (डीएमके), रामगोपाल यादव (एसपी), संजय राउत (एसएस), एलामाराम करीम (सीपीआई-एम) और बिनॉय विश्वम (सीपीआई) शामिल थे.  

हालांकि मामले को शांत करने के लिए कांग्रेस ने अपनी गलती को मान ली. कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने विरोध कर रहे नेताओं को यह कहकर शांत कर दिया कि उनकी पार्टी ने जो किया वह एक चूक थी और इस पर उन्हें खेद है. 

बाद में, कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने मीडिया से किए गए आधिकारिक बातचीत में कहा, "हम इस तथ्य पर जोर देना चाहते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव अकेले कांग्रेस का नहीं है, बल्कि INDIA गठबंधन में शामिल सभी सहयोगी दलों की तरफ भेजा गया एक सामूहिक प्रस्ताव है."

अविश्वास प्रस्ताव में कांग्रेस ने क्या कहा

अविश्वास प्रस्ताव में कांग्रेस ने कहा कि देश की जनता का सरकार पर से भरोसा उठ रहा है. हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर में हो रहे हिंसा पर बोले लेकिन वह बात ही नहीं सुनते. कांग्रेस ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री सदन के बाहर तो इस मुद्दे पर बात कर रहे हैं लेकिन सदन में कुछ भी नहीं बोलते.

अविश्वास प्रस्ताव टिक पाएगा और इसे लाने का क्या नियम है? 

संविधान के अनुच्छेद 75(3) में कहा गया है कि कैबिनेट और सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी होगी. लोकसभा में अगर किसी दल को बहुमत नहीं है तो कोई भी विपक्षी दल सरकार अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है. लोकसभा के प्रक्रिया और कार्य संचालन नियम के नियम 198 में मंत्रिपरिषद में अविश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए प्रक्रिया निर्धारित की गई है.

कोई सदस्य लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावली के नियम 198(1) से 198(5) के तहत लोकसभा अध्यक्ष को सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकता है. 

क्या टिक पाएगा अविश्वास प्रस्ताव

फिलहाल मोदी सरकार लोकसभा में बहुमत में है. उसके पास 301 सांसद हैं, जबकि एनडीए के पास 333 सांसद हैं और पूरे विपक्ष के पास कुल सिर्फ 142 सांसद हैं. कांग्रेस के पास सबसे ज्यादा 50 सांसद हैं. ऐसे में स्पष्ट है कि विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव फेल हो जाएगा.

अविश्वास प्रस्ताव लाने के पीछे क्या है विपक्ष का प्लान?

विपक्ष का आरोप है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार अहम मुद्दों पर मौन साध लेते हैं. फिर चाहे वह राहुल की सदस्यता जाने का मामला हो, महिला पहलवानों का मुद्दा हो या अडानी-हिंडनबर्ग मामला हो.

पीएम इन सभी मुद्दों पर विपक्ष की मांगों के बाद भी चुप्पी साधे रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बोलने पर मजबूर करेंगे. इसके अलावा अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस भेजने का एक कारण ये ही है कि विपक्ष दिखाना चाहती है कि पीएम मोदी देश के कई गंभीर मुद्दों पर जवाब देने से बच रहे थे लेकिन विपक्षी एकता ने उन्हें जवाब देने पर मजबूर कर दिया.

मणिपुर मुद्दे पर माहौल बनाने की कोशिश में INDIA 

मणिपुर पिछले 3 मई से ही मैतेई और कुकी जनजाति के बीच खूनी संघर्ष जारी है. दोनों के बीच चल रहे मदभेद का कारण है कि मैतेई समाज खुद के लिए एसटी दर्जे की मांग कर रहा है और कुकी समाज इसका विरोध कर रहा है.

दोनों समुदायों के बीच हो रही हिंसा ने पिछले 2 महीने में 130 लोगों की जान ली है और लगभग 400 से ज्यादा लोग बुरी तरह जख्मी हो चुके हैं. इसके अलावा कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया पर दो कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र कर सड़क पर परेड कराने का वीडियो सामने आया था. इस वीडियो के बाद वहां का माहौल और उग्र हो गया है.

विपक्ष का कहना है कि राज्य में हालात बिगड़ने के बाद भी देश के प्रधानमंत्री ने 19 जुलाई तक किसी तरह का कोई बयान नहीं जारी किया था. हालांकि 20 जुलाई को महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने का वीडियो जारी किए जाने के बाद उन्होंने बयान दिया था लेकिन उसी दिन संसद के मॉनसून सत्र में इस घटना पर कोई बात नहीं की. 

मणिपुर मामले पर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल इसी बात को प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की जवाबदेही तय करने की मांग कर रहे हैं. 20 जुलाई को पीएम ने महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने का वीडियो सामने आने के बाद बयान दिया था लेकिन उसी दिन से शुरू हुए संसद के मॉनसून सत्र में घटना पर बात नहीं की.

इससे विपक्ष भड़क गए और सदन में मणिपुर हिंसा पर बहस के लिए और पीएम मोदी से जवाब चाहने के लिए आविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया है. विपक्ष मणिपुर मुद्दे को उठाकर संसद में सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है. विपक्ष जनता के सामने ये बताना चाहती है कि बीजेपी इस हिंसा को ठीक तरीके से हैंडल नहीं कर पा रही है. 

चुनाव से पहले INDIA दिखाना चाहती है अपनी ताकत 

कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव भेजने का एक कारण ये भी है कि साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर कुछ दिन पहले ही 26 दलों ने INDIA गठबंधन बनाया था. इस गठबंधन के बाद संसद का मानसून सत्र पहला मौका है, जहां INDIA अपनी ताकत दिखा सकती है.  

अगर विपक्ष अपनी शर्तों सरकार को जवाब देने पर मजबूर कर सके तो एक तरह से विपक्ष की जीत मानी जाएगी. फिलहाल स्पीकर ने भा कांग्रेस के इस अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया है. जिससे ये तो तय है कि प्रधानमंत्री को मणिपुर के मुद्दे पर जवाब देना पड़ेगा.

दूसरे कार्यकाल में पहली बार लाया गया अविश्वास प्रस्ताव 

बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल यानी साल 2019 के बाद पहली बार लाया गया है.

मोदी सरकार के खिलाफ 26 जुलाई 2023 से पहले 20 जुलाई 2018 को अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. वर्तमान में एनडीए के पास 325 सांसद हैं और अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट करने वाले महज़ 126 सांसद. सत्ताधारी पार्टी के पास फिलहाल संसद के दोनों सदनों में ही बहुमत है लेकिन इसके बावजूद अविश्वास प्रस्ताव लाना एकजुट विपक्ष के रूप में देखा जा रहा है. 

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