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सिंधिया परिवार की तीसरी पीढ़ी ने भी की कांग्रेस से बगावत, दादी 'राजमाता' गिरा चुकी हैं सरकार

यह पहली बार नहीं है जब सिंधिया राजघराने के किसी सदस्य की वजह से कांग्रेस की कोई राज्य सरकार संकट में आई है.1967 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र से नाराज हो गईं थीं.

नई दिल्ली: देश में इस वक्त एक ही नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है- ज्योतिरादित्य सिंधिया. पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे ज्योतिरादित्य राजे, सिंधिया घराने की रियासत और सियासत दोनों माने जाने वाले मध्य प्रदेश के ग्वालियर से नाता रखते हैं. अब सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया है और अब वे बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. सिंधिया के इस्तीफे के बाद 22 कांग्रेस विधायकों ने भी पार्टी से किनारा कर लिया है. एक तरफ जहां कमलनाथ सरकार पर खतरा मंडरा रहा है, तो वहीं बीजेपी सरकार बनाने के लिए कदम आगे बढ़ाती दिखाई दे रही है. यहां दिलचस्प बात यही है कि बीजेपी, ज्योतिरादित्य सिंधिया के दम पर ही सत्ता में वापसी कर सकती है.

लेकिन यह पहली बार नहीं है जब सिंधिया राजघराने के किसी सदस्य की वजह से कांग्रेस की कोई राज्य सरकार संकट में आई है. इससे पहले भी सिंधिया घराना मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने में अहम भूमिका अदा कर चुका है.

दरअसल, 1950 के दशक में ग्वालियर में कांग्रेस की स्थिति काफी खराब थी. इसी दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी दिवंगत राजमाता विजयाराजे सिंधिया की मुलाकात देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से हुई. इसके बाद विजयाराजे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ीं. गुना लोकसभा सीट पर 1957 में हुए पहले चुनाव में राजमाता विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस के टिकट पर जीतीं. लेकिन उनकी दोस्ती ज्यादा दिनों तक कांग्रेस से चल नहीं पाई.

राजमाता ने गिरवा दी थी कांग्रेस की सरकार

1967 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र से नाराज हो गईं थीं और कांग्रेस पार्टी छोड़ दी. खबरों के मुताबिक मिश्र ने राजमाता को मिलने के लिए कुछ देर इंतजार करा दिया था. उस वक्त राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होते थे. राजमाता ने जनसंघ के टिकट पर विधानसभा और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा. दोनों ही चुनाव में उन्हें जीत मिली. इसके बाद कांग्रेस के 36 विधायकों ने पाला बदल दिया और मजबूरी में द्वारका प्रसाद मिश्र को इस्तीफा देना पड़ा. मध्य प्रदेश में फिर पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी.

माधवराव सिंधिया भी अपनी माता के बाद 1971 में जनसंघ में शामिल हो गये थे और साल 1971 के लोकसभा चुनाव में 'इंदिरा लहर' के बावजूद मां और पुत्र दोनों अपनी-अपनी सीटों पर विजयी हुए. साल 1980 में माधवराव सिंधिया, इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये. कांग्रेस ने आपातकाल के दौरान उनकी मां को जेल में बंद रखा था. माधवराव की बहनों वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे अपनी मां के पदचिह्नों पर चलते हुए बाद में बीजेपी में शामिल हुईं.

माधवराव सिंधिया कांग्रेस के टिकट पर लगातार गुना और ग्वालियर सीट से लोकसभा चुनाव जीत रहे थे. लेकिन साल 1993 में जब उन्हें मध्य प्रदेश का सीएम नहीं बनाया गया तो उन्होंने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया. माधवराव ने अपनी अलग पार्टी 'मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस बनाई. हालांकि बाद में वे कांग्रेस में वापस लौट गए थे.

2001 में हुई ज्योतिरादित्य की राजनीति में एंट्री

30 सितम्बर 2001 को ग्वालियर राजघराने के उत्तराधिकारी और कांग्रेस के दिग्गज नेता माधवराव सिंधिया की उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुए हेलीकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई. सिंधिया उस वक्त कानपुर में एक कार्यक्रम में जा रहे थे. 2001 में उनके निधन के बाद 2002 में हुए उपचुनाव में उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया को मैदान में उतरना पड़ा. अपने पहले ही चुनाव में ज्योतिरादित्य ने जीत हासिल की. 2014 की मोदी लहर में जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सारे दिग्गज नेता चुनाव हार गए थे और 29 में से केवल दो सीटें ही कांग्रेस को मिली थी, उस दौरान भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भारी अंतर से जीत दर्ज की थी. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

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