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(Source: ECI / CVoter)

World Bank Remittances: भारतीयों ने विदेश से भेजे 100 अरब डॉलर, रेमिटेंस के मामले में बना रिकॉर्ड, FDI से भी है बड़ी रकम, जानें कैसे हुआ संभव

India Remittance: रेमिटेंस किसी भी देश के लिए कमाई का महत्वपूर्ण जरिया है. विदेश में रह रहे लोगों के परिजनों को आर्थिक सुरक्षा की गारंटी मिल जाती है और उस देश के डॉलर भंडार को मजबूती मिलती है.

India Remittance: भारत के लोग विज्ञान, तकनीक समेत हर क्षेत्र में दुनिया के कोने-कोने में बुलंदी के झंडे लहरा रहे हैं. भारतीयों ने विदेशों में कमाई कर डॉलर भेजने के मामले में भी नया रिकार्ड बना डाला है. Remittances भेजने के मामले में भारत इस साल नई ऊंचाई पर पहुंच गया है.  
 
माइग्रेशन और डेवलपमेंट पर वर्ल्ड बैंक (World bank) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में विदेशों में कमाई कर भारतीयों की ओर से 100 अरब डॉलर से ज्यादा की राशि भारत भेजने का अनुमान है. ये राशि करीब 8 लाख करोड़ रुपये है. 

पहली बार किसी देश को 100 अरब डॉलर रेमिटेंस

विश्व बैंक ने कहा है कि पहली बार कोई देश Remittances के तौर पर 100 अरब डॉलर की राशि पाने जा रहा है. ये ऐतिहासिक रिकॉर्ड भारत के नाम दर्ज हो गया है. अब तक किसी भी देश को Remittances के तौर पर 100 अरब डॉलर की राशि हासिल नहीं हुई है.

पिछले साल की तुलना में इस साल विदेशी कमाई से भारत में आई राशि 11 अरब डॉलर ज्यादा है. अमेरिका और खाड़ी देशों से भारत में सबसे ज्यादा रुपये आते हैं. हालांकि 2021 से ही खाड़ी देशों से भारत में आने वाली कमाई की राशि में कमी हो रही है और इस मामले में अमेरिका पहले पायदान पर पहुंच गया है. 

FDI से भी ज्यादा राशि विदेश से भेजे   

ये राशि कितनी बड़ी है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि ये भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का करीब तीन प्रतिशत है. भारतीयों के विदेश कमाई से आने वाली इस राशि ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के आंकड़े को भी काफी पीछे छोड़ दिया है. 2021-2022 में जितनी रकम FDI से आई थी, उससे ये राशि करीब 17 फीसदी ज्यादा है. 2021-22 में भारत में FDI से 83.57 अरब डॉलर की राशि आई थी.

वर्ल्ड बैंक (World bank) के अनुसार भारतीयों की भेजी जाने वाली राशि में वृद्धि दर भी काफी ज्यादा है. भारत में इस साल पिछली साल की तुलना में विदेशी कमाई से बारह फीसदी ज्यादा डॉलर आए हैं. निम्न और मध्यम आय वाले देशों में विदेशी कमाई से आने वाली राशि में इस साल सिर्फ पांच फीसदी ही बढ़ोतरी हुई है.

2021 में ये राशि 10 फीसदी की ज्यादा की दर से बढ़ी थी. 2022 में निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) को भेजी गई रकम बढ़कर 626 अरब डॉलर हो गई. विकसित देशों के आंकड़ों को भी मिला दें तो वैश्विक स्तर पर remittance का आंकड़ा 794 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा.  

चीन के रेमिटेंस में लगातार हो रही है कमी 

इस मामले में भारत ने चीन, मेक्सिको और फिलीपींस जैसे देशों को काफी पीछे छोड़ दिया है. भारत के बाद मेक्सिको, चीन और फिलीपींस का नंबर आता है. इस मद में मेक्सिको को 60 अरब डॉलर, चीन को 51 अरब डॉलर और फिलीपींस को 38 अरब डॉलर हासिल हुए हैं.

दिलचस्प बात है कि चीन के रेमिटेंस में पिछले चार साल से गिरावट देखी जा रही है. विदेशों से रेमिटेंस डॉलर के रूप में आते हैं. इससे भारत के डॉलर भंडार में भी इजाफा होता है. 

विदेशी कमाई पर कोरोना का भी नहीं पड़ा असर

भारत से हर साल बड़ी संख्या में लोग कमाने के लिए विदेश जाते हैं. पिछले ढाई साल से कोरोना की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर मंदी का खतरा मंडरा रहा है. इसके बावजूद भारत में विदेशी कमाई से आनेवाली राशि पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ा है. हालांकि जिस साल कोरोना का प्रकोप सबसे ज्यादा था, उस साल इस राशि में मामूली कमी दर्ज की गई थी, लेकिन 2021 में भारतीयों ने जमकर पैसा भेजा. इस साल तो रिकॉर्ड ही बना दिया.

2019 में भारत को मिलने वाली Remittances राशि 83.3 अरब डॉलर थी, तो कोरोना के शुरुआती वर्ष 2020 में ये राशि 83.1 अरब डॉलर थी. कोरोना महामारी के बावजूद अगले साल 2021 में भारतीयों ने 89.3 अरब डॉलर भेजे. इसमें से 20 फीसदी राशि भारतीयों ने अमेरिका से भेजा. 

14 साल से पहले पायदान पर  है भारत

पिछले 14 साल से भारत Remittances के मामले में पहले पायदान पर बरकरार है. इस दौरान भारत को मिलने वाली Remittances की राशि दोगुनी हो गई है. 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद इसमें और तेजी से वृद्धि हुई है. 2014 के मुकाबले 2022 में 30 अरब डॉलर ज्यादा की राशि हासिल हुई है. पिछले आठ साल में इसमें 42 फीसदी का इजाफा हुआ है. 

क्यों बढ़ी परदेश में भारतीयों की कमाई

भारत को अपवाद मान लें तो दक्षिण एशिया के बाकी देशों में Remittances में कोई खा़स बढ़ोतरी नहीं हुई है. सवाल उठता है कि वे कौन से कारक हैं, जिनकी वजह से कोरोना और बीते 10 महीनों से रूस-यूक्रेन के बीच संघर्ष का असर भी विदेश में भारतीयों की कमाई पर नहीं पड़ा.

इस साल अमेरिका और आर्थिक सहयोग और विकास संगठन यानी OECD के सदस्य देशों में वेतन और मजदूरी में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है. इन देशों में Labor market भी मजबूत हुआ है. इससे भारतीय कामगारों को भी फायदा मिला. इसके अलावा खाड़ी देशों ने अपने यहां प्रत्यक्ष समर्थन उपायों (direct support measures) के जरिए महंगाई दर को कम करके रखा, इससे इन देशों में काम करने वाले भारतीय कमाई का ज्यादा हिस्सा बचाने में कामयाब हुए. 

नौकरी के लिए अमीर देशों का रुख

पहले भारत से अकुशल (low skilled) श्रमिक बड़े पैमाने पर खाड़ी देशों में कमाई के लिए जाते थे. अब विदेश जाने वाले भारतीयों में हाई स्किल्‍ड लोगों की संख्‍या तेजी से बढ़ रही है. वर्ल्ड बैक की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ सालों से  विदेश में कमाई के लिए जाने के ट्रेंड में बदलाव देखा जा रहा है.

पहले भारतीय बड़ी संख्या में low-skilled जॉब के लिए सऊदी अरब, कुवैत और कतर जैसे खाड़ी देशों में जाते थे. अब भारतीय बड़ी संख्या में high-skilled जॉब के लिए अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्‍ट्रेलिया, न्‍यूजीलैंड और सिंगापुर का रुख कर रहे हैं. इसका नतीजा ये हो रहा है कि अब भारतीय इन देशों से ज्यादा राशि भेज रहे हैं. 

हर साल बड़ी संख्या में जा रहे हैं विदेश  

कोरोना के बाद दुनिया के कई बड़े अर्थव्यवस्थाओं में सुधार के संकत मिल रहे हैं. इन देशों में भारतीय कामगारों की मांग अब और बढ़ रही है. इनमें अकुशल श्रमिक के साथ ही हाई स्किल्ड लोग भी शामिल हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2020 और जुलाई 2022 के बीच 28 लाख से ज्यादा भारतीय रोजगार के लिए विदेश गए.

इस अवधि के दौरान 4 लाख से ज्यादा भारतीय नौकरी के लिए इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड (ECR) पासपोर्ट की जरूरत वाले 17 देशों में गए. इनमें उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा 1.31 लाख लोग (32%) थे. उसके बाद बिहार का नंबर था. बिहार से करीब 70 हजार लोग गए.

विदेश मंत्रालय के आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि नौकरी के लिए विदेश जाने वाले भारतीयों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. 2020 में 7.15 लाख भारतीय नौकरी के लिए बाहर गए थे. वहीं ये आंकड़ा 2021 में बढ़कर 8.33 लाख हो गया. इस साल जुलाई तक 13 लाख से ज्यादा भारतीय नौकरी के लिए विदेश जा चुके हैं. 

इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड (ECR) पासपोर्ट की जरूरत वाले 18 देशों में अब भी बड़ी संख्या में भारतीय काम के लिए जा रहे हैं. ECR पासपोर्ट ऐसे श्रमिकों को मिलता है जो 10वीं तक भी नहीं पढ़े हैं. विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2019 में ऐसे देशों में नौकरी के लिए जाने वाले भारतीयों की संख्या 94 हजार थी. कोरोना के बाद इसमें काफी वृद्धि हुई. इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड (ECR) पासपोर्ट की जरुरत वाले देशों में हर साल दो लाख भारतीय नौकरी के लिए जा रहे हैं. 

दुनिया के कोने-कोने में फैले हैं भारतीय

दुनिया के अलग-अलग देशों में प्रवासी भारतीयों की संख्या भी बहुत है. इनमें Non-Resident Indians (NRIs) और Persons of Indian Origin (PIOs) दोनों शामिल हैं. इन लोगों के जरिए बड़ी धनराशि भारत आती है. इनमें से बहुत सारे लोगों के रिश्तेदार अब भी इंडिया में हैं, जिनके लिए विदेशों से डॉलर भेजे जाते हैं. विदेश मंत्रालय के मुताबिक दुनिया में 3.2 करोड़ से ज्यादा प्रवासी भारतीय हैं. सबसे ज्यादा करीब 45 लाख भारतीय अमेरिका में हैं.   

वर्ल्ड बैंक के मुताबिक पिछले दो साल में गिरावट दर्ज होने के बाद इस साल ईस्ट एशिया और पैसिफिक रीजन (Pacific region) के देशों में Remittance राशि में बढ़ोतरी हुई है. लैटिन अमेरिका और कैरीबियन देशों में भी इस राशि में इजाफा हुआ है. ज्यादा आय वाले देशों (high-income economies) के हॉस्पिटैलिटी (hospitality) और हेल्थ सेक्टर में Labor shortages  और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से खाड़ी देशों को हो रहे फायदे की वजह से इस साल श्रमिकों की मांग बढ़ी.

इन वजहों से कम आय वाले देशों के remittances राशि में इस साल अच्छी खासी ग्रोथ देखी गई. विश्व बैंक के मुताबिक खाड़ी देशों में इस साल बड़े स्तर पर रोजगार के मौके बढ़े. दुनिया के कई अमीर देशों में भी रोजगार के मौके बढ़ रहे हैं. हालांकि विश्व बैंक का मानना है कि आने वाले दो सालों में दक्षिण एशिया और पैसिफिक क्षेत्र के देशों के लिए remittances राशि में कमी हो सकती है, लेकिन भारत के ऊपर इसका असर नहीं होगा.   

ये भी पढ़ें: India G20 Presidency: दुनिया का नया सिरमौर बनने की राह पर भारत, G20 अध्यक्ष के तौर पर क्या होगी भूमिका, जानें हर पहलू

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